स्वांग: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - " शृंगार " to " श्रृंगार ")
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 2: Line 2:
==स्वांग का अर्थ==
==स्वांग का अर्थ==
स्वांग में किसी प्रसिद्ध रूप की '''नकल''' रहती है। इस प्रकार से स्वांग का अर्थ किसी विशेष, ऐतिहासिक या पौराणिक चरित्र, लोकसमाज में प्रसिद्ध चरित्र या देवी, [[देवता]] की नकल में स्वयं का श्रृंगार करना, उसी के अनुसार वेशभूषा धारण करना एवं उसी के चरित्र विशेष के अनुरूप अभिनय करना है। यह स्वांग विशेष व्यक्तित्व की नकल होते हुए भी बहुत जीवंत होते हैं कि इनसे असली चरित्र होने का भ्रम भी हो जाता है। कुछ जातियों और जनजाति के लोग तो स्वांग करने का कार्य ही अपनाए हुए हैं। इस विधा में व्यक्ति एक ही चरित्र सम्पन्न करता है। आधुनिक प्रचार माध्यमों के विकसित हो जाने से लोकनाट्य का यह रूप नगरों से दूर ग्रामों की ही धरोहर रह गया है और इसे केवल शादी और त्यौहार के अवसर पर ही दिखलाया जाता है। राजस्थान के स्वांग के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है-
स्वांग में किसी प्रसिद्ध रूप की '''नकल''' रहती है। इस प्रकार से स्वांग का अर्थ किसी विशेष, ऐतिहासिक या पौराणिक चरित्र, लोकसमाज में प्रसिद्ध चरित्र या देवी, [[देवता]] की नकल में स्वयं का श्रृंगार करना, उसी के अनुसार वेशभूषा धारण करना एवं उसी के चरित्र विशेष के अनुरूप अभिनय करना है। यह स्वांग विशेष व्यक्तित्व की नकल होते हुए भी बहुत जीवंत होते हैं कि इनसे असली चरित्र होने का भ्रम भी हो जाता है। कुछ जातियों और जनजाति के लोग तो स्वांग करने का कार्य ही अपनाए हुए हैं। इस विधा में व्यक्ति एक ही चरित्र सम्पन्न करता है। आधुनिक प्रचार माध्यमों के विकसित हो जाने से लोकनाट्य का यह रूप नगरों से दूर ग्रामों की ही धरोहर रह गया है और इसे केवल शादी और त्यौहार के अवसर पर ही दिखलाया जाता है। राजस्थान के स्वांग के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है-
*[[होली]] के अवसर पर पूरे शेखावटी क्षेत्र में  विविध स्वांग रचे जाते हैं।
*[[होली]] के अवसर पर पूरे [[शेखावाटी]] क्षेत्र में  विविध स्वांग रचे जाते हैं।
*होली के दूसरे दिन होली खेलने के साथ ही कई [[नगरीय बस्ती|नगरों]] में लोग स्वांग रचकर सवारी भी निकालते हैं। जैसे- [[उदयपुर]] में तेली लोगों की 'डाकी की सवारी।'  
*होली के दूसरे दिन होली खेलने के साथ ही कई [[नगरीय बस्ती|नगरों]] में लोग स्वांग रचकर सवारी भी निकालते हैं। जैसे- [[उदयपुर]] में तेली लोगों की 'डाकी की सवारी।'  
*नाथद्वारा में होली के दूसरे दिन शाम को 'बादशाह की सवारी' निकाली जाती है।  
*नाथद्वारा में होली के दूसरे दिन शाम को 'बादशाह की सवारी' निकाली जाती है।  
Line 17: Line 17:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.sarokar.net/2011/09/%E0%A4%B5%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%94%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BC-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%87/  वक्त के औराक़ बनते हंसी के अलंबरदार]
*[http://www.sarokar.net/2011/09/%E0%A4%B5%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%94%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BC-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%87/  वक्त के औराक़ बनते हंसी के अलंबरदार]
Line 23: Line 22:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{नृत्य कला}}
{{नृत्य कला}}
[[Category:लोक नृत्य]] [[Category:कला कोश]]
[[Category:लोक नृत्य]][[Category:कला कोश]][[Category:नृत्य कला]][[Category:संस्कृति कोश]][[Category:राजस्थान]]
[[Category:नृत्य कला]]
__INDEX__
[[Category:संस्कृति कोश]]
[[Category:राजस्थान]]__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 08:53, 17 July 2017

भारत के राजस्थान राज्य के लोकनाट्य रूपों में एक परम्परा 'स्वांग' की भी है। किसी रूप को स्वयं में आरोपित कर उसे प्रस्तुत करना ही स्वांग कहलाता है।

स्वांग का अर्थ

स्वांग में किसी प्रसिद्ध रूप की नकल रहती है। इस प्रकार से स्वांग का अर्थ किसी विशेष, ऐतिहासिक या पौराणिक चरित्र, लोकसमाज में प्रसिद्ध चरित्र या देवी, देवता की नकल में स्वयं का श्रृंगार करना, उसी के अनुसार वेशभूषा धारण करना एवं उसी के चरित्र विशेष के अनुरूप अभिनय करना है। यह स्वांग विशेष व्यक्तित्व की नकल होते हुए भी बहुत जीवंत होते हैं कि इनसे असली चरित्र होने का भ्रम भी हो जाता है। कुछ जातियों और जनजाति के लोग तो स्वांग करने का कार्य ही अपनाए हुए हैं। इस विधा में व्यक्ति एक ही चरित्र सम्पन्न करता है। आधुनिक प्रचार माध्यमों के विकसित हो जाने से लोकनाट्य का यह रूप नगरों से दूर ग्रामों की ही धरोहर रह गया है और इसे केवल शादी और त्यौहार के अवसर पर ही दिखलाया जाता है। राजस्थान के स्वांग के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है-

  • होली के अवसर पर पूरे शेखावाटी क्षेत्र में विविध स्वांग रचे जाते हैं।
  • होली के दूसरे दिन होली खेलने के साथ ही कई नगरों में लोग स्वांग रचकर सवारी भी निकालते हैं। जैसे- उदयपुर में तेली लोगों की 'डाकी की सवारी।'
  • नाथद्वारा में होली के दूसरे दिन शाम को 'बादशाह की सवारी' निकाली जाती है।
  • उदयपुर में जमरा बीज पर मीणा औरतों द्वारा रीछशेर का स्वांग किया जाता है।
  • चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को भीलवाड़ा के 'मांडल' में निकाला जाने वाला नाहरों या शेरों का स्वांग बहुत प्रसिद्ध है। इसमें आदिवासी लोग शेर का स्वांग करते हैं तथा उनके पीछे - पीछे शिकारी तीर-कमान लेकर चलते हैं। वाद्य के रूप में बड़े - बड़े ढोल बजाए जाते हैं जो इतने बड़े होते हैं कि इन्हें चार लोगों को पकड़ना पड़ता है।
भरतपुर की स्वांग विधा -

स्वांग भरतपुर की एक पुरानी लोकनाट्य कला है।

हास्य प्रधान

इस विधा में हास्य की प्रधानता होती है जिसमें विचित्र वेशभूषाओं में कलाकार हँसी मज़ाक के द्वारा दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। भरतपुर की यह कला संगीत, नृत्य, अभिनय और वाद्य यंत्रों के उपयोग के कारण नौटंकी कला की भाँति लगती है।

मंचन

स्वांग विधा का मंचन भी नौटंकी की भाँति खुले स्थान में किया जाता है। स्वांग कलाकारों के अभिनय के लिए दो तख्त डाल कर उस पर चादर बिछा दी जाती है जिस पर हारमोनियम, ढोलक, नक्कारा व ढपली वादक एक कोने में बैठ जाते हैं और स्वांग कलाकार विभिन्न वेशभूषा में स्वांग भर कर आपसी संवादों व गीतों के द्वारा लोगों का मनोरंजन करते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख