तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) ('{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;" |- | <noinclude>[[चित्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " मां " to " माँ ") |
||
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 14: | Line 14: | ||
गुनाहों को छुपाने का हुनर उनका निराला है | गुनाहों को छुपाने का हुनर उनका निराला है | ||
तेरा ही ख़ून होता है हाथ तेरे ही सनते हैं | |||
न जाने कौनसी खिड़की से तू खाते बनाता है | न जाने कौनसी खिड़की से तू खाते बनाता है | ||
जो तेरी जेब के पैसे से उनके चॅक भुनते हैं | जो तेरी जेब के पैसे से उनके चॅक भुनते हैं | ||
बना है तेरी ही छत से | बना है तेरी ही छत से सुनहरा आसमां उनका | ||
मिलेगी छत चुनावों में, वहाँ तम्बू जो तनते हैं | मिलेगी छत चुनावों में, वहाँ तम्बू जो तनते हैं | ||
न जाने किस तरह भगवान ने इनको बनाया था | न जाने किस तरह भगवान ने इनको बनाया था | ||
नहीं जनती है इनको मां, यही अब | नहीं जनती है इनको मां, यही अब माँ को जनते हैं | ||
</poem> | </poem> |
Latest revision as of 14:10, 2 June 2017
तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ