अभिभावक -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) ('{| width="100%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; margin-left:5px; border-radius:5px; padding:10px;" |- | चि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
(4 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
Line 7: | Line 7: | ||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>अभिभावक<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>अभिभावक<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
---- | ---- | ||
[[चित्र:Parents. | [[चित्र:Parents.png|right|250px]] | ||
<poem> | <poem> | ||
एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। | एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। | ||
इसके बावजूद भी स्कूल कॉलेजों में दाख़िले के लिए जो मारा-मारी होती है उससे हम सभी गुज़र चुके हैं। आइए इस विषय पर एक व्यंग्य पढ़ें जो मैंने 1993 के आस-पास लिखा था ( ऊपर लिखे | इसके बावजूद भी स्कूल कॉलेजों में दाख़िले के लिए जो मारा-मारी होती है उससे हम सभी गुज़र चुके हैं। आइए इस विषय पर एक व्यंग्य पढ़ें जो मैंने 1993 के आस-पास लिखा था ( ऊपर लिखे आँकड़ों को छोड़कर ) लेकिन लगता है जैसे आज ही लिखा हो… | ||
पुराने समय में, हमारे स्कूल, देश को मेधावी छात्राएँ-छात्र देते थे। आजकल स्कूल देश को मेधावी अभिभावक याने ‘पेरेन्ट्स’ देते हैं। पहले बच्चे को पहली बार स्कूल में एडमीशन के लिए ले जाते वक़्त नए-नए माता-पिता बड़ी ख़ुशी से हाथ में हाथ डालकर सीटी बजाते हुए स्कूल में घुसते हैं और जब वापस लौटते हैं तो बेचारे अभिभावक बन चुके होते हैं। बड़ा ही कारूणिक दृश्य होता है। पिता अभिभावक के बाल बिखरे होते हैं और कमीज़ एक तरफ़ से पैन्ट के बाहर निकली होती है। दोनों कान एल्सेशियनिज़्म से रिक्त देशी कुत्तों की तरह लटक जाते हैं। माता अभिभावक का पर्स पिता अभिभावक के मुँह की तरह खुला रह जाता है। साड़ी के पल्लू से सिर ढँक जाता है, चुटिया मरी साँपिन-सी लटक जाती है। दोनों अभिभावक अबला नारी और निर्बल नर के रूप में लौटते हैं और उनका सारा उत्साह ठण्डा हो जाता है। बच्चे को स्कूल भेजने की सारी ख़ुशी हवा हो जाती है। इसके बाद वे अपना शेष जीवन अभिभावकी में ही गुज़ारते हैं। क्या कमाल है, एक झटके में अच्छा ख़ासा इंसान अभिभावक बन कर रह जाता है। | पुराने समय में, हमारे स्कूल, देश को मेधावी छात्राएँ-छात्र देते थे। आजकल स्कूल देश को मेधावी अभिभावक याने ‘पेरेन्ट्स’ देते हैं। पहले बच्चे को पहली बार स्कूल में एडमीशन के लिए ले जाते वक़्त नए-नए माता-पिता बड़ी ख़ुशी से हाथ में हाथ डालकर सीटी बजाते हुए स्कूल में घुसते हैं और जब वापस लौटते हैं तो बेचारे अभिभावक बन चुके होते हैं। बड़ा ही कारूणिक दृश्य होता है। पिता अभिभावक के बाल बिखरे होते हैं और कमीज़ एक तरफ़ से पैन्ट के बाहर निकली होती है। दोनों कान एल्सेशियनिज़्म से रिक्त देशी कुत्तों की तरह लटक जाते हैं। माता अभिभावक का पर्स पिता अभिभावक के मुँह की तरह खुला रह जाता है। साड़ी के पल्लू से सिर ढँक जाता है, चुटिया मरी साँपिन-सी लटक जाती है। दोनों अभिभावक अबला नारी और निर्बल नर के रूप में लौटते हैं और उनका सारा उत्साह ठण्डा हो जाता है। बच्चे को स्कूल भेजने की सारी ख़ुशी हवा हो जाती है। इसके बाद वे अपना शेष जीवन अभिभावकी में ही गुज़ारते हैं। क्या कमाल है, एक झटके में अच्छा ख़ासा इंसान अभिभावक बन कर रह जाता है। | ||
एक अच्छे स्कूल में आप अपने बच्चे का एडमीशन करा चुके हैं और आपको “कुछ” नहीं हुआ है तो आप बधाई के पात्र हैं। एक से ज़्यादा बच्चों का एडमीशन करा चुके हैं तो आप सहज ही ‘पद्मश्री’ के दावेदार बन गए हैं। आज की दुनिया में शहर में रहने वाले इंसान का सबसे बड़ा सपना होता है, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना। आप चाहे जहाँ कहीं किसी को भी रास्ते में रोककर पूछ सकते हैं कि “आप के जीवन का उद्देश्य क्या है?” हमेशा एक ही उत्तर मिलेगा “बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना।“ हाँ यह बात अलग है कि इस उत्तर को देने वाला व्यक्ति उत्तर देते वक़्त व्यवहार क्या करता है। मैंने भी यही सवाल एक दोस्त से किया। पहले तो उसने मेरी तरफ़ आश्चर्य से ऐसे देखा जैसे मैंने कोई बेहद निरर्थक क़िस्म का सवाल किया है, फिर सजल नेत्रों से भर्राए गले के साथ बोला- | एक अच्छे स्कूल में आप अपने बच्चे का एडमीशन करा चुके हैं और आपको “कुछ” नहीं हुआ है तो आप बधाई के पात्र हैं। एक से ज़्यादा बच्चों का एडमीशन करा चुके हैं तो आप सहज ही ‘पद्मश्री’ के दावेदार बन गए हैं। आज की दुनिया में शहर में रहने वाले इंसान का सबसे बड़ा सपना होता है, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना। आप चाहे जहाँ कहीं किसी को भी रास्ते में रोककर पूछ सकते हैं कि “आप के जीवन का उद्देश्य क्या है?” हमेशा एक ही उत्तर मिलेगा “बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना।“ हाँ यह बात अलग है कि इस उत्तर को देने वाला व्यक्ति उत्तर देते वक़्त व्यवहार क्या करता है। मैंने भी यही सवाल एक दोस्त से किया। पहले तो उसने मेरी तरफ़ आश्चर्य से ऐसे देखा जैसे मैंने कोई बेहद निरर्थक क़िस्म का सवाल किया है, फिर सजल नेत्रों से भर्राए गले के साथ बोला- | ||
Line 21: | Line 21: | ||
“जिस दिन से मेरे पहले बच्चे ने स्कूल में क़दम रखा, उसी दिन से मैं अभिभावक बन गया हूँ।” | “जिस दिन से मेरे पहले बच्चे ने स्कूल में क़दम रखा, उसी दिन से मैं अभिभावक बन गया हूँ।” | ||
उस दिन मुझे पता चला कि मैं अपने आप को न जाने क्या-क्या समझता हूँ पर सब बकवास है। असल में, मैं एक अभिभावक हूँ और इससे ज़्यादा कुछ नहीं। | उस दिन मुझे पता चला कि मैं अपने आप को न जाने क्या-क्या समझता हूँ पर सब बकवास है। असल में, मैं एक अभिभावक हूँ और इससे ज़्यादा कुछ नहीं। | ||
हमारी पृथ्वी अभिभावकों से भरी पड़ी है। जहाँ भी ढेला फेंकेगे अभिभावक को ही लगेगा। अभिभावक वो होता है जिसे स्कूलों के फ़ादर, मदर, सुपीरियर और “सिस्टर”, “पेरेन्ट-पेरेन्ट” कहकर फुसलाते हैं। इन फुसले हुए अभिभावकों की हालत उन दिनों बड़ी दयनीय होती है, जिन दिनों में स्कूलों में दाख़िले होते हैं। दूर से देखकर ही पहचाना जा सकता है कि कौन अभिभावक है और कौन नहीं। इन दिनों भोले-भाले माता-पिता अचानक अभिभावक बनने के | हमारी पृथ्वी अभिभावकों से भरी पड़ी है। जहाँ भी ढेला फेंकेगे अभिभावक को ही लगेगा। अभिभावक वो होता है जिसे स्कूलों के फ़ादर, मदर, सुपीरियर और “सिस्टर”, “पेरेन्ट-पेरेन्ट” कहकर फुसलाते हैं। इन फुसले हुए अभिभावकों की हालत उन दिनों बड़ी दयनीय होती है, जिन दिनों में स्कूलों में दाख़िले होते हैं। दूर से देखकर ही पहचाना जा सकता है कि कौन अभिभावक है और कौन नहीं। इन दिनों भोले-भाले माता-पिता अचानक अभिभावक बनने के सदमे से होश खो बैठते हैं। स्कूलों के चक्कर लगाने लगते हैं। बच्चे के एडमीशन के लिए उनका इंटरव्यू होना है… सोच-सोच कर पगलैट हो जाते हैं। दिन-रात पढ़ाई करते हैं। आपस में लड़ते हैं। सिफ़ारिशों के जुगाड़ लगाते हैं। इसके बाद बच्चे का एडमीशन कराने में सफल हो जाते हैं तो डर के मारे काफ़ी दिनों तक अभिभावक ही बने रहते हैं। | ||
एक अभिभावक दूसरे अभिभावक के प्रति, प्रचलित शैली में ईर्ष्या भाव रखता है। किसी अभिभावक को दूसरे अभिभावक से ईर्ष्या नहीं है तो वो आदर्श अभिभावक नहीं हो सकता। दिन-रात तरह-तरह के ईर्ष्यालु सवाल अभिभावक के मन में घुमड़ते रहते हैं, “शुक्ला के बेटे का ए ग्रेड?”, “सक्सैना की बेटी के नाइंटी टू परसैन्ट मार्क्स?”, “चड्ढा का लड़का स्कूल का कैप्टन?” असल में हमारे देश में ईर्ष्या का “फ़ैशन” अभिभावकों ने ही चलाया है। | एक अभिभावक दूसरे अभिभावक के प्रति, प्रचलित शैली में ईर्ष्या भाव रखता है। किसी अभिभावक को दूसरे अभिभावक से ईर्ष्या नहीं है तो वो आदर्श अभिभावक नहीं हो सकता। दिन-रात तरह-तरह के ईर्ष्यालु सवाल अभिभावक के मन में घुमड़ते रहते हैं, “शुक्ला के बेटे का ए ग्रेड?”, “सक्सैना की बेटी के नाइंटी टू परसैन्ट मार्क्स?”, “चड्ढा का लड़का स्कूल का कैप्टन?” असल में हमारे देश में ईर्ष्या का “फ़ैशन” अभिभावकों ने ही चलाया है। | ||
पहले यह माना जाता था कि इंसान और जानवर में सबसे बड़ा अंतर है “हँसी”। इंसान जब ख़ुश होता है तो अपनी ख़ुशी को बड़े हास्यास्पद तरीक़े से ज़ाहिर करता है। इस तरीक़े को हँसना कहते हैं। जानवर ने इस तरीक़े को हमेशा हेय दृष्टि से देखा है। जानवर चूंकि इंसान की तरह छिछोरी प्रकृति के नहीं होते इसीलिए ख़ुशी को हँसकर ज़ाहिर नहीं करते हैं। | पहले यह माना जाता था कि इंसान और जानवर में सबसे बड़ा अंतर है “हँसी”। इंसान जब ख़ुश होता है तो अपनी ख़ुशी को बड़े हास्यास्पद तरीक़े से ज़ाहिर करता है। इस तरीक़े को हँसना कहते हैं। जानवर ने इस तरीक़े को हमेशा हेय दृष्टि से देखा है। जानवर चूंकि इंसान की तरह छिछोरी प्रकृति के नहीं होते इसीलिए ख़ुशी को हँसकर ज़ाहिर नहीं करते हैं। |
Latest revision as of 14:29, 10 July 2015
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश अभिभावक -आदित्य चौधरी एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी, 6 लाख 38 हज़ार से अधिक गाँवों और क़रीब 18 सौ नगर-क़स्बों वाले हमारे देश में क़रीब 35 करोड़ छात्राएँ-छात्र हैं। जो 16 लाख से अधिक शिक्षण संस्थानों और 700 विश्वविद्यालयों में समाते हैं। दु:खद यह है कि विश्व के मुख्य 100 शिक्षण संस्थानों में किसी भी भारतीय शिक्षण संस्थान का नाम-ओ-निशां नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पिछले सम्पादकीय