नासिक: Difference between revisions

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नासिक का मानचित्र
Nashik Map|thumb|250px

नामकरण

नासिक भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक शहर है। नासिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम मे, मुम्बई से 150 किलोमीटर, और पूना से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम रेलवे के नासिक रोड स्टेशन से 5 मील दूर गोदावरी नदी के तट पर यह प्राचीन नगर बसा है। कहा जाता है कि रामायण में वर्णित पंचवटी जहाँ श्री राम, लक्ष्मण और सीता वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। किंवदंती है कि इसी स्थान पर रावण की भगिनी शूर्पणखा को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था जिसके कारण इस स्थान को नासिक कहा जाता है।

इतिहास और दर्शनीय स्थल

  • नासिक के पास सीता गुफा नामक एक नीची गुफा है, जिसके अंदर दो गुफाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं और दूसरी पंचरत्नेश्वर महादेव का मंदिर है।
  • नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम है।
  • गोदावरी का उद्गम त्र्यम्बकेश्वर की पहाड़ी में है। जो नासिक से प्रायः बीस मील दूर है।
  • नासिक में 200 ई. पू. से द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक बौद्ध गुफाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त जैनों के आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभुस्वामी और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहाँ होने का उल्लेख जैन लेखक जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है।

[[चित्र:Nasik-Maharashtra.jpg|thumb|300px|left|गोदावरी नदी, नासिक, महाराष्ट्र- 1848]]

  • 1680 ई. में लिखित तारीखे-औरंग़जेब के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर औरंगज़ेब की धर्माधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और महालक्ष्मी के मंदिर उल्लखेनीय है। इन मंदिरों की सामग्री से यहाँ की जामा मस्जिद की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था। नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट जो असरा फाटक के पास था। अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है।
  • नासिक के प्रायः सभी मंदिर मुस्लिम शासनकाल के अंतिम दिनों के बने हुए हैं औरस्वयं पेशवाओं तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और श्री संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर द्वारा 1747 ई. में, 18 लाख की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में पुर्तग़ाल से बनकर आया था।
  • कालाराम नामक दूसरा मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह वर्षों में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर है जहां श्रीराम ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय, सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की हैं।
  • सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे।
  • नासिक में त्रयंबकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का मामात्म्य और भी बढ़ जाता है।
  • पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम सतयुग में पद्यनगर, त्रेता में त्रिकंटक, द्वापर में जनस्थान और कलियुग में नासिक है।
  • 'कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम्, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते'। नासिक को शिव पूजा का केंद्र होने के कारण दक्षिण काशी भी कहा जाता है। यहाँ आज भी साठ के लगभग मंदिर हैं।

त्र्यंम्बकेश्वर मंदिर, नासिक
Trimbakeshwar Temple, Nasik|thumb|250px

  • 'कलौ गोदावरी गंगा' के अनुसार कलियुग में गोदावरी गंगा के समान ही पवित्र मानी गई है।
  • मराठा साम्राज्य में महत्त्व की दृष्टि से पूना के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता है।
  • एक किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों पर इस नगरी की स्थिति होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं-
  1. जूनीगढ़ी,
  2. नवी गढ़ी,
  3. कोंकणीटेक,
  4. जोगीवाड़ा टेक,
  5. म्हास टेक,
  6. महालक्ष्मी टेक,
  7. सुनार टेक,
  8. गणपति टेक और
  9. चित्रघंट टेक।
  • मराठी की प्रचलित कहावत की 'नासिक नव टेका वर वसाविले' अर्थात नासिक नौ टेकरियों पर बसा है नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।
  • नासिक के निकट एक गुफा में क्षहरात नरेश नहपान के जमाता उशवदात का एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी भारत के द्वितीय शती ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह अभिलेख शक संवत् संबंधित नारियल के कुंज के दान में दिए जाने का उल्लेख है।
  • नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका उल्लेख महावस्तु[1] में है।
  • जैन तीर्थों में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीबिहार कहा गया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सेनार्ट पृ0 363
  2. कुंती पल्लबिहार तारणगढ़े

बाहरी कड़ियाँ

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