बन्दा बहादुर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''बन्दा बहादुर''' दसवें [[गुरु गोविन्द सिंह]] की 1708 ई. में हत्या हो जाने के बाद [[सिक्ख|सिक्खों]] का नेता बना। वह सिक्खों का आध्यात्मिक नेता नहीं था, किन्तु 1708 से 1715 ई. तक अपनी मृत्यु पर्यन्त उनका राजनीतिक नेता रहा।
'''बन्दा बहादुर''' प्रसिद्ध [[सिक्ख]] सैनिक और राजनीतिक नेता था। बन्दा बहादुर का जन्म 1670 ई. में [[कश्मीर]] के [[पुंछ ज़िला|पुंछ ज़िले]] के [[राजौरी ज़िला|राजौरी]] क्षेत्र में एक [[राजपूत]] परिवार में हुआ था। उसका बचपन का नाम 'लक्ष्मण देव' था। 15 वर्ष की उम्र में वह एक बैरागी का शिष्य बना और उसका नाम 'माधोदास' हो गया। कुछ समय तक [[पंचवटी]] ([[नासिक]]) में रहने के बाद दक्षिण की ओर चला गया और उसने वहाँ एक आश्रम की स्थापना की। दसवें [[गुरु गोविन्द सिंह]] की 1708 ई. में हत्या हो जाने के बाद बन्दा सिक्खों का नेता बना। वह सिक्खों का आध्यात्मिक नेता नहीं था, किन्तु 1708 से 1715 ई. तक अपनी मृत्यु पर्यन्त उनका राजनीतिक नेता रहा।
====प्रतिशोध====
==प्रतिशोध==
'''गुरु गोविन्द सिंह''' के बच्चों को [[सरहिन्द]] के फ़ौजदार [[वज़ीर ख़ाँ]] ने बड़ी क्रूरता से मार डाला था। वज़ीर ख़ाँ से बदला लेना बन्दा अपना मुख्य कर्तव्य मानता था। इस कार्य को उसने बड़ी ही शीघ्रता से पूरा किया। उसने बड़ी संख्या में सिक्खों को एकत्र किया और उनकी मदद से सरहिन्द पर अधिकार कर फ़ौजदार वज़ीर ख़ाँ को मार डाला।
1708 ई. में सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने बन्दा के आश्रम को देखा। उन्होंने माधोदास को [[सिक्ख धर्म]] में दीक्षित किया और उसका नाम 'बन्दा सिंह' रख दिया। गुरु गोविन्द सिंह जी के सात और नौ वर्ष के बच्चों की जब [[सरहिन्द]] के फौजदार वज़ीर ख़ाँ ने क्रूरता के साथ हत्या कर दी, तो बन्दा सिंह पर इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। उसने वज़ीर ख़ाँ से बदला लेना अपना मुख्य कर्तव्य मान लिया। उसने [[पंजाब]] आकर बड़ी संख्या में सिक्खों को संगठित किया और [[सरहिन्द]] पर क़ब्ज़ा करके वज़ीर ख़ाँ को मार डाला।
====राज्य विस्तार एवं अज्ञातवास====
====राज्य विस्तार एवं अज्ञातवास====
'''बन्दा बहादुर ने''' [[यमुना नदी|यमुना]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] के प्रदेश को अपने अधीन कर लिया और [[मुखीशपुर]] में लोहागढ़ (लोहगढ़ अथवा लौहगढ़) नामक एक मज़बूत क़िला निर्मित कराया, इसके साथ ही राजा की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम से सिक्के भी जारी करा दिये। कुछ काल बाद सम्राट [[बहादुर शाह प्रथम]] (1707-12) ने शीघ्र ही लोहगढ़ पर घेरा डालकर उसे अपने अधीन कर लिया। बन्दा तथा उसके अनेक अनुयायियों को बाध्य होकर शाह प्रथम की मृत्यु तक अज्ञातवास करना पड़ा।
बन्दा बहादुर ने [[यमुना नदी|यमुना]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] के प्रदेश को अपने अधीन कर लिया और मुखीशपुर में लोहागढ़ (लोहगढ़ अथवा लौहगढ़) नामक एक मज़बूत क़िला निर्मित कराया, इसके साथ ही राजा की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम से सिक्के भी जारी करा दिये। कुछ काल बाद सम्राट [[बहादुर शाह प्रथम]] (1707-12) ने शीघ्र ही लोहगढ़ पर घेरा डालकर उसे अपने अधीन कर लिया। बन्दा तथा उसके अनेक अनुयायियों को बाध्य होकर शाह प्रथम की मृत्यु तक अज्ञातवास करना पड़ा।
====मुग़लों से सामना====
==मुग़लों से सामना==
'''इसके उपरान्त बन्दा ने लोहगढ़''' को फिर से अपने अधिकार में कर लिया और सरहिन्द के सूबे में लूटपाट आरम्भ कर दी। किन्तु 1715 ई. में मुग़लों ने [[गुरदासपुर]] के क़िले पर घेरा डाल दिया। बन्दा उस समय उसी क़िले में था। मुग़लों ने क़िले पर अधिकार करने के साथ ही बन्दा तथा उसके अनेक साथियों को बन्दी बना लिया।
इसके उपरान्त बन्दा ने लोहगढ़ को फिर से अपने अधिकार में कर लिया और सरहिन्द के सूबे में लूटपाट आरम्भ कर दी। किन्तु 1715 ई. में मुग़लों ने [[गुरदासपुर]] के क़िले पर घेरा डाल दिया। बन्दा उस समय उसी क़िले में था। कई माह की घेराबन्दी के बाद खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन लोगों को आत्म समर्पण करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुग़लों ने क़िले पर अधिकार करने के साथ ही बन्दा तथा उसके अनेक साथियों को बन्दी बना लिया।
====शहादत====
====शहादत====
'''बन्दा को क़ैद के रूप में''' [[दिल्ली]] भेजा गया, जहाँ उसे अमानवीय यत्रंणाएँ दी गईं। आँखों के सामने ही उसके पुत्र को मार डाला गया और स्वयं उसे गर्म चिमटों से नोचकर 1715 ई. में [[हाथी]] के पैरों से कुचलवा दिया गया। बन्दा की शहादत वर्षों तक [[सिक्ख|सिक्खों]] के लिए प्रेरणादायक रही।
[[फ़रवरी]], 1716 में बन्दा और उसके 794 साथी [[दिल्ली]] लाए गए। उन्हें अमानुषिक यातनाएँ दी गईं। प्रतिदिन 100 की संख्या में [[सिक्ख]] फाँसी पर लटकाए गए। बन्दा के सामने उसके पुत्र को मार डाला गया। [[फ़र्रुख़सियर]] के आदेश पर बन्दा के शरीर को गर्म चिमटों से नुचवाया गया और फिर [[हाथी]] से कुचलवाकर उसे मार डाला गया। यह घटना [[16 जून]], 1716 ई. को हुई थी।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{{cite book | last = भट्टाचार्य| first = सच्चिदानन्द | title = भारतीय इतिहास कोश | edition = द्वितीय संस्करण-1989| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location =  भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =  हिन्दी| pages = 270 | chapter =}}
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

Revision as of 13:27, 19 March 2012

बन्दा बहादुर प्रसिद्ध सिक्ख सैनिक और राजनीतिक नेता था। बन्दा बहादुर का जन्म 1670 ई. में कश्मीर के पुंछ ज़िले के राजौरी क्षेत्र में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उसका बचपन का नाम 'लक्ष्मण देव' था। 15 वर्ष की उम्र में वह एक बैरागी का शिष्य बना और उसका नाम 'माधोदास' हो गया। कुछ समय तक पंचवटी (नासिक) में रहने के बाद दक्षिण की ओर चला गया और उसने वहाँ एक आश्रम की स्थापना की। दसवें गुरु गोविन्द सिंह की 1708 ई. में हत्या हो जाने के बाद बन्दा सिक्खों का नेता बना। वह सिक्खों का आध्यात्मिक नेता नहीं था, किन्तु 1708 से 1715 ई. तक अपनी मृत्यु पर्यन्त उनका राजनीतिक नेता रहा।

प्रतिशोध

1708 ई. में सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने बन्दा के आश्रम को देखा। उन्होंने माधोदास को सिक्ख धर्म में दीक्षित किया और उसका नाम 'बन्दा सिंह' रख दिया। गुरु गोविन्द सिंह जी के सात और नौ वर्ष के बच्चों की जब सरहिन्द के फौजदार वज़ीर ख़ाँ ने क्रूरता के साथ हत्या कर दी, तो बन्दा सिंह पर इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। उसने वज़ीर ख़ाँ से बदला लेना अपना मुख्य कर्तव्य मान लिया। उसने पंजाब आकर बड़ी संख्या में सिक्खों को संगठित किया और सरहिन्द पर क़ब्ज़ा करके वज़ीर ख़ाँ को मार डाला।

राज्य विस्तार एवं अज्ञातवास

बन्दा बहादुर ने यमुना और सतलुज के प्रदेश को अपने अधीन कर लिया और मुखीशपुर में लोहागढ़ (लोहगढ़ अथवा लौहगढ़) नामक एक मज़बूत क़िला निर्मित कराया, इसके साथ ही राजा की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम से सिक्के भी जारी करा दिये। कुछ काल बाद सम्राट बहादुर शाह प्रथम (1707-12) ने शीघ्र ही लोहगढ़ पर घेरा डालकर उसे अपने अधीन कर लिया। बन्दा तथा उसके अनेक अनुयायियों को बाध्य होकर शाह प्रथम की मृत्यु तक अज्ञातवास करना पड़ा।

मुग़लों से सामना

इसके उपरान्त बन्दा ने लोहगढ़ को फिर से अपने अधिकार में कर लिया और सरहिन्द के सूबे में लूटपाट आरम्भ कर दी। किन्तु 1715 ई. में मुग़लों ने गुरदासपुर के क़िले पर घेरा डाल दिया। बन्दा उस समय उसी क़िले में था। कई माह की घेराबन्दी के बाद खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन लोगों को आत्म समर्पण करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुग़लों ने क़िले पर अधिकार करने के साथ ही बन्दा तथा उसके अनेक साथियों को बन्दी बना लिया।

शहादत

फ़रवरी, 1716 में बन्दा और उसके 794 साथी दिल्ली लाए गए। उन्हें अमानुषिक यातनाएँ दी गईं। प्रतिदिन 100 की संख्या में सिक्ख फाँसी पर लटकाए गए। बन्दा के सामने उसके पुत्र को मार डाला गया। फ़र्रुख़सियर के आदेश पर बन्दा के शरीर को गर्म चिमटों से नुचवाया गया और फिर हाथी से कुचलवाकर उसे मार डाला गया। यह घटना 16 जून, 1716 ई. को हुई थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख