वात्स्यायन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:ऋषि मुनि" to "Category:ऋषि मुनिCategory:संस्कृत साहित्यकार") |
||
Line 19: | Line 19: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ॠषि-मुनि2}}{{ॠषि-मुनि}} | {{ॠषि-मुनि2}}{{ॠषि-मुनि}} | ||
[[Category:ऋषि मुनि]] | [[Category:ऋषि मुनि]][[Category:संस्कृत साहित्यकार]] | ||
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | [[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | ||
[[Category:पौराणिक कोश]] | [[Category:पौराणिक कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 11:16, 14 October 2011
विश्वविख्यात 'कामसूत्र' ग्रन्थ के रचयिता वात्स्यायन का समय तीसरी शताब्दी ई.पू. माना जाता है। इनका नाम 'मल्लनाग' था, किन्तु ये अपने गोत्रनाम ‘वात्स्यायन’ के रूप में ही विख्यात हुए। कामसूत्र में जिन प्रदेशों के रीति-रिवाजों का विशेष उल्लेख किया गया है, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि, वात्स्यायन पश्चिम अथवा दक्षिण भारत के निवासी रहे होंगे। कामसूत्र के अन्तिम श्लोक से यह जानकारी मिलती है कि, वात्स्यायन ब्रह्मचारी थे। कामसूत्र काम विषयक विश्व की बेजोड़ रचना है। पंचतंत्र में इन्हें 'वैद्यकशास्त्रज्ञ' बताया गया है। मधुसूदन शास्त्री ने कामसूत्रों को आयुर्वेदशास्त्र के अन्तर्गत माना है। वात्स्यायन ने प्राचीन भारतीय विचारों के अनुरूप, काम को पुरुषार्थ माना है। अत: धर्म व अर्थ के साथ ही मनुष्य को काम (पुरुषार्थ) की साधना कर जितेन्द्रिय बनना चाहिए।
कामसूत्र का विभाजन
वात्स्यायन के कामसूत्र सात अधिकरणों में विभाजित हैं-
- सामान्य
- सांप्रयोगिक
- कन्यासंप्रयुक्त
- भार्याधिकारिक
- पारदारिक
- वैशिक और
- औपनिषदिक
पूर्वाचार्य
वात्स्यायन ने अपने ग्रन्थ में कुछ पूर्वाचार्यों का उल्लेख किया है, जिनसे यह जानकारी मिलती है कि, सर्वप्रथम नंदी ने एक हज़ार अध्यायों के बृहद् कामशास्त्र की रचना की, जिसे आगे चलकर औद्दालिकी श्वेतकेतु और बाभ्रव्य पांचाल ने क्रमश: संक्षिप्त रूपों में प्रस्तुत किया। वात्स्यायन का कामसूत्र इनका अधिक संक्षिप्त रूप ही है। कामसूत्रों से तत्कालीन (1700 वर्ष पूर्व के) समाज के रीति-रिवाजों की जानकारी भी मिलती है। 'कामसूत्र' पर वीरभद्र कृत 'कंदर्पचूड़ामणि', भास्करनृसिंह कृत 'कामसूत्र-टीका' तथा यशोधर कृत 'कंदर्पचूड़ामणि' नामक टीकाएँ उपलब्ध हैं।
वात्स्यायन का विचार
आचार्य वात्स्यायन से पहले भी इस विषय पर ग्रन्थ लिखे गये थे, तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कल्पना की जा चुकी है। परन्तु इन सब ग्रन्थों को छोड़कर केवल वात्स्यायन के इस ग्रन्थ को ही महान शास्त्रीय दर्जा प्राप्त हुआ है। 1870 ई. में ‘कामसूत्र’ का अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ। उसके बाद संसार भर के लोग इस ग्रन्थ से परिचित हो गए। वात्स्यायन कहते हैं कि, महिलाओं को 64 कलाओं में प्रवीण होना चाहिए। इसमें केवल खाना पकाना, सीना-पिरोना और सेज सजाना ही नहीं, उन्हें नृत्य, संगीत, अध्ययन, रसायन, उद्यान कला और कविता करने में भी महारत हासिल होनी चाहिए। उन्होंने अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में अनेक आसनों के साथ यह भी बताया है कि, किस प्रकार की महिला से विवाह अथवा प्रेम करना चाहिए और शयनागार को कैसे सजाया जाना चाहिए तथा स्त्री से कैसे व्यवहार करना चाहिए। आश्चर्य इस बात का है कि उन्हें इस प्रकार की इतनी बातों का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख