सफलता का शॉर्ट-कट -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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"बहुत दिन बाद मिले हो गुरू आजकल क्या कर रहे हो ?" | "बहुत दिन बाद मिले हो गुरू ! आजकल क्या कर रहे हो ?" | ||
"अरे यार मैंने कई किताबें लिखी हैं, लेखक हूँ।" | "अरे यार ! मैंने कई किताबें लिखी हैं, मैं अब बहुत बड़ा लेखक हूँ।" | ||
"कौन सी किताबें ?" | "कौन सी किताबें ?" | ||
"'सफलता का राज़ !', 'सफल कैसे हों ?', 'पैसा कैसे कमाएँ ?', 'करोड़ पति बनने के आसान तरीक़े', 'महान व्यक्तियों की सोच और आदतें', 'अपने अंदर के महान बिज़नेसमॅन को जगाएँ' 'दुनियाँ जीत लो' वग़ैरा-वग़ैरा, ये किताबें मेरी ही हैं" | "'सफलता का राज़ !', 'सफल कैसे हों ?', 'पैसा कैसे कमाएँ ?', 'करोड़ पति बनने के आसान तरीक़े', 'महान व्यक्तियों की सोच और आदतें', 'अपने अंदर के महान बिज़नेसमॅन को जगाएँ' 'दुनियाँ जीत लो' वग़ैरा-वग़ैरा, ये किताबें मेरी ही हैं" | ||
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"अच्छाऽऽऽ ! तो ये बात है... लेकिन तुमने और भी तो कुछ किया होगा ?" | "अच्छाऽऽऽ ! तो ये बात है... लेकिन तुमने और भी तो कुछ किया होगा ?" | ||
"जो भी किया उसी में असफल हुआ... फिर ये आइडिया आया... अब दुनियाँ को सिखाता हूँ कि सफल कैसे हों ?" | "जो भी किया उसी में असफल हुआ... फिर ये आइडिया आया... अब दुनियाँ को सिखाता हूँ कि सफल कैसे हों ?" | ||
ख़ैर इन दो दोस्तों की बातचीत में जो मुद्दा है वह है 'सफलता'। | |||
... असल में बात कुछ और ही है। जिस तरह सभी जानते हैं कि; स्वस्थ कैसे रहें, पतले कैसे हों, पड़ोसी से कैसा व्यवहार करें, पत्नी या पति से कैसा व्यवहार करें, आदि-आदि, फिर भी इन बातों को औरों से पूछते रहते हैं और किताबें टटोलते रहते हैं। ठीक इसी तरह हम सब यह भी जानते हैं कि सफल कैसे हुआ जाता है। समस्या तो | ख़ैर इन दो दोस्तों की बातचीत में जो मुद्दा है वह है 'सफलता'। इस विषय पर हज़ारों किताबें मिलती हैं और 'सफल कैसे हों ?' विषय पर जो भी किताब आती है वो अक़्सर बॅस्ट सेलर कही जाती है और बहुदा हो भी जाती है। इससे ऐसा लगता है कि सभी सफल व्यक्ति इन किताबों को पढ़ कर ही सफल हुए हैं और जो रह गए हैं वे इन किताबों की मदद से सफल होने को तैयार बैठे हैं। | ||
... असल में बात कुछ और ही है। जिस तरह सभी जानते हैं कि; स्वस्थ कैसे रहें, पतले कैसे हों, पड़ोसी से कैसा व्यवहार करें, पत्नी या पति से कैसा व्यवहार करें, आदि-आदि, फिर भी इन बातों को औरों से पूछते रहते हैं और किताबें टटोलते रहते हैं। ठीक इसी तरह हम सब यह भी जानते हैं कि सफल कैसे हुआ जाता है। समस्या तो तब आती है जब हमको 'सफलता का शॉर्ट-कट' चाहिए होता है और जब शॉर्ट-कट चाहिए होता है तो फिर किताब की ज़रूरत पड़ती है। | |||
आख़िर सफलता मिलती कैसे है ? क्या कोई ऐसा मंत्र, तंत्र, युक्ति या किताब है जो सफलता दिला दे ? | आख़िर सफलता मिलती कैसे है ? क्या कोई ऐसा मंत्र, तंत्र, युक्ति या किताब है जो सफलता दिला दे ? | ||
हाँ है... निश्चित है! जिस तरह 'भूख में स्वाद' और 'शारीरिक श्रम में नींद' को छुपा माना जाता है उसी तरह 'जुनून' में सफलता छुपी होती | हाँ है... निश्चित है ! जिस तरह 'भूख में स्वाद' और 'शारीरिक श्रम में नींद' को छुपा माना जाता है उसी तरह 'जुनून' में सफलता छुपी होती है। जुनून कहिए या पैशन, यही है एक मात्र रास्ता, सफलता का। | ||
... लेकिन किस तरह... | ... लेकिन किस तरह... | ||
असल में जिस ढांचे में हम ढले हुए होते हैं उसमें हमारी सोच एक सीमित दायरे में घूमती रहती है। इसी सोच की वजह से जो हमारी 'पसंद' या 'इच्छा' होती है उससे हम चुनते हैं अपना 'कॅरियर' जबकि अपने जुनून को हम सही तरह से पहचान ही नहीं पाते। आपने देखा होगा कि लोग अपनी 'हॉबी' में ही अपने 'जुनून' की संतुष्टि पाते हैं। काश ! उन लोगों ने अपना कॅरियर भी अपने जुनून को समझते हुए चुना होता तो सफलता के साथ-साथ आत्म संतुष्टि भी पायी होती...। | असल में जिस ढांचे में हम ढले हुए होते हैं उसमें हमारी सोच एक सीमित दायरे में घूमती रहती है। इसी सोच की वजह से जो हमारी 'पसंद' या 'इच्छा' होती है उससे हम चुनते हैं अपना 'कॅरियर'। जबकि अपने जुनून को हम सही तरह से पहचान ही नहीं पाते। आपने देखा होगा कि लोग अपनी 'हॉबी' में ही अपने 'जुनून' की संतुष्टि पाते हैं। काश ! उन लोगों ने अपना कॅरियर भी अपने जुनून को समझते हुए चुना होता तो सफलता के साथ-साथ आत्म संतुष्टि भी पायी होती...। | ||
लेकिन नहीं...ऐसा होता नहीं है... | लेकिन नहीं...ऐसा होता नहीं है... | ||
बच्चों से पूछा जाता है कि उन्हें क्या 'पसंद' है जबकि ज़रूरत यह जानने की है कि वो क्या 'काम' या 'शौक़' है जिसे | बच्चों से पूछा जाता है कि उन्हें क्या 'पसंद' है जबकि ज़रूरत यह जानने की है कि वो क्या 'काम' या 'शौक़' है जिसे वे दीवानों की तरह करना चाहते हैं और करते भी हैं। | ||
एक सच्ची घटना का ज़िक्र करना चाहता हूँ- | एक सच्ची घटना का ज़िक्र करना चाहता हूँ- | ||
ओ'नील नाम का एक अंग्रेज़ अध्यापक था। उसने एक ऐसा स्कूल खोला था जिसमें ज़्यादातर उन बच्चों को दाख़िला दिलाया जाता था जो बेहद शैतान होते थे और पढ़ना नहीं चाहते थे। फ़ीस भी भरपूर वसूल की जाती थी। एक बहुत शैतान लड़का भी इसके स्कूल में लाया गया। इस लड़के ने पहले दिन ही पत्थर मारकर प्रधानाचार्य (ओ'नील) के कमरे का काँच तोड़ दिया। | ओ'नील नाम का एक अंग्रेज़ अध्यापक था। उसने एक ऐसा स्कूल खोला था जिसमें ज़्यादातर उन बच्चों को दाख़िला दिलाया जाता था जो बेहद शैतान होते थे और पढ़ना नहीं चाहते थे। फ़ीस भी भरपूर वसूल की जाती थी। एक बहुत शैतान लड़का भी इसके स्कूल में लाया गया। इस लड़के ने पहले दिन ही पत्थर मारकर प्रधानाचार्य (ओ'नील) के कमरे का काँच तोड़ दिया। | ||
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"मुझे कपड़ों का बेहद शौक़ है, मैं सिर्फ़ अपने ही डिज़ाइन के बने हुए कपड़े पहनना चाहता हूँ, क्योंकि कोई और वैसे कपड़े सिल ही नहीं सकता जैसे कि मै बना सकता हूँ। मैं कपड़े बनाना सीखना चाहता हूँ।" | "मुझे कपड़ों का बेहद शौक़ है, मैं सिर्फ़ अपने ही डिज़ाइन के बने हुए कपड़े पहनना चाहता हूँ, क्योंकि कोई और वैसे कपड़े सिल ही नहीं सकता जैसे कि मै बना सकता हूँ। मैं कपड़े बनाना सीखना चाहता हूँ।" | ||
इसके बाद इस लड़के को एक अच्छे फ़ॅशन डिज़ाइनर के पास भेजा गया। वहाँ पता चला कि कपड़ा काटने के लिए तो 'ज्यामिती' आनी चाहिए, ज्यामिती के लिए गणित और गणित सीखने के लिए सामान्य अंग्रेज़ी का ज्ञान अनिवार्य है। कुल मिला कर बात यह है कि फ़ॅशन डिज़ाइनर बनने के 'जुनून' में इस लड़के ने पढ़ाई भी की और बाद में मशहूर फ़ॅशन डिज़ाइनर भी बना। | इसके बाद इस लड़के को एक अच्छे फ़ॅशन डिज़ाइनर के पास भेजा गया। वहाँ पता चला कि कपड़ा काटने के लिए तो 'ज्यामिती' आनी चाहिए, ज्यामिती के लिए गणित और गणित सीखने के लिए सामान्य अंग्रेज़ी का ज्ञान अनिवार्य है। कुल मिला कर बात यह है कि फ़ॅशन डिज़ाइनर बनने के 'जुनून' में इस लड़के ने पढ़ाई भी की और बाद में मशहूर फ़ॅशन डिज़ाइनर भी बना। | ||
सफलता का कोई शॉर्ट-कट नहीं है। कलाकारों के संबंध में भी आपने यह सुना होगा कि जब कला जवान होती है तो कलाकार बूढ़ा हो जाता है। इस संबंध में एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि जब हम सफलता के लिए प्रयासरत होते हैं तो हम संघर्ष को सीढ़ी दर सीढ़ी पार कर रहे होते हैं। यूँ मानिए कि यदि सफलता बीसवीं सीढ़ी के बाद है... अर्थात जो सफलता का मंच है वह बीसवीं सीढ़ी चढ़ कर मिलेगा और इस मंच | सफलता का कोई शॉर्ट-कट नहीं है। कलाकारों के संबंध में भी आपने यह सुना होगा कि जब कला जवान होती है तो कलाकार बूढ़ा हो जाता है। इस संबंध में एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि जब हम सफलता के लिए प्रयासरत होते हैं तो हम संघर्ष को सीढ़ी दर सीढ़ी पार कर रहे होते हैं। यूँ मानिए कि यदि सफलता बीसवीं सीढ़ी के बाद है... अर्थात जो सफलता का मंच है वह बीसवीं सीढ़ी चढ़ कर मिलेगा और इस मंच पर हम उन्नीस सीढ़ी चढ़ने के बाद भी नहीं पहुँच सकते क्योंकि बीसवीं तो ज़रूरी ही है। अब एक बात यह भी होती है कि उन्नीसवीं सीढ़ी से नीचे देखते हैं तो लगता है कि हमने कितनी सारी सीढ़ियाँ चढ़ ली हैं और न जाने कितनी और भी चढ़नी पड़ेंगी। इसलिए हताश हो जाना स्वाभाविक ही होता है। जबकि हम मात्र एक सीढ़ी नीचे ही होते हैं। ये आख़री सीढ़ी कोई भी कभी भी हो सकती है। क्योंकि सफलता कभी आती हुई नहीं दिखती सिर्फ़ जाती हुई दिखती है। सफलता पाने से पहले उसे भांप लेना किसी के बस की बात नहीं है। इसलिए सफलता के शॉर्ट-कट तलाशने की बजाय अपने जुनून को पहचानिए। | ||
किसी ने ठीक ही कहा है- | |||
... जीने का शॉक़ तो मरने को हो जा तैयार... | ... जीने का शॉक़ तो मरने को हो जा तैयार... |
Revision as of 14:00, 21 April 2012
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टीका टिप्पणी और संदर्भ