मन्नत्तु पद्मनाभन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
||
Line 59: | Line 59: | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://www.nss.org.in/about.html नायर सर्विस सोसाइटी] | |||
*[http://www.indianpost.com/viewstamp.php/Color/Brown%20and%20Green/M.%20PADMANABHAN M. PADMANABHAN] | *[http://www.indianpost.com/viewstamp.php/Color/Brown%20and%20Green/M.%20PADMANABHAN M. PADMANABHAN] | ||
*[http://philaindia.info/kerasocialreformers.html MANNATHU PADMANABHAN (1878-1970)] | *[http://philaindia.info/kerasocialreformers.html MANNATHU PADMANABHAN (1878-1970)] | ||
*[http://hindu.com/2002/01/03/stories/2002010303670300.htm NSS call to emulate Mannathu ] | *[http://hindu.com/2002/01/03/stories/2002010303670300.htm NSS call to emulate Mannathu ] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{समाज सुधारक}} | {{समाज सुधारक}} |
Revision as of 14:20, 28 December 2012
मन्नत्तु पद्मनाभन
| |
पूरा नाम | मन्नत्तु पद्मनाभन |
जन्म | 2 जनवरी, 1878 |
जन्म भूमि | चंगनाशेरी गाँव, कोट्टायम ज़िला, केरल |
मृत्यु | 25 फ़रवरी, 1970 |
कर्म-क्षेत्र | समाज सुधारक |
शिक्षा | वकालत |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मभूषण (1966) |
विशेष योगदान | नायर समाज में व्याप्त अंध विश्वास और पाखण्डता को दूर करने के लिए मन्नत्तु पद्मनाभन ने 'नायर सर्विस सोसाइटी' नामक एक संस्था की स्थापना की थी। |
नागरिकता | भारतीय |
मन्नत्तु पद्मनाभन (अंग्रेज़ी: Mannathu Padmanabhan, जन्म- 2 जनवरी, 1878 ई. - मृत्यु- 25 फ़रवरी, 1970 ई.) केरल के प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से एक थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। कई कठिनाइयों का सामना करते हुए इन्होंने मजिस्ट्रेटी की परीक्षा पास की थी, जिससे वकालत शुरू कर सकें। उस समय नायर समाज में जो अंध विश्वास और पाखण्ड व्याप्त था, उसे दूर करने के लिए मन्नत्तु पद्मनाभन ने 'नायर सर्विस सोसाइटी' नामक एक संस्था की स्थापना की थी। केरल का भारत में विलय कराने के आन्दोलन में उन्हें 68 साल की उम्र में जेल भी जाना पड़ा। बहुमुखी सेवा कार्यों के लिए इन्हें 1966 में 'पद्मभूषण' सम्मान प्रदान किया गया था।
जीवन परिचय
केरल के प्रसिद्ध समाज सुधारक मन्नत्तु पद्मनाभन का जन्म 2 जनवरी, 1878 ई. को कोट्टायम ज़िले के चंगनाशेरी गाँव में एक ग़रीब नायर परिवार में हुआ था। प्यार से लोग उन्हें 'मन्नम' कहते थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने और उनके जन्म के कुछ महीने बाद ही माता-पिता में सम्बन्ध विच्छेद हो जाने के कारण मन्नम का बचपन बड़े अभाव की स्थिति में बीता। शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाए। 16 वर्ष की उम्र में पांच रुपये प्रतिमाह वेतन पर मन्नम ने एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक का काम आरम्भ किया और दस वर्षों तक इस पद पर रहे।
व्यवसाय
इसके बाद मन्नत्तु पद्मनाभन ने वकालत करने का निश्चय किया। उस समय मजिस्ट्रेटी की परीक्षा पास करने पर वकालत कर सकते थे। उन्होंने परीक्षा पास की और वकालत करने लगे। पांच रुपये प्रतिमाह वेतन के स्थान पर अब उनकी आमदनी चार सौ रुपये प्रतिमाह होने लगी। अब मन्नम ने अपने नायर समाज की ओर ध्यान दिया।
समाज सुधार कार्य
समाज में अंध विश्वास, आडंबर और पाखंड आदि का बोलबाला था। विवाह सम्बन्धी अनेक अनुचित प्रथाएँ प्रचलित थीं। इन सब कारणों से किसी समय का उन्नत नायर समाज बड़ी दीन-हीन दशा को पहुँच चुका था। मन्नत्तु पद्मनाभन ने इस स्थिति को सुधारने के लिए अपने कुछ सहयोगियों के साथ 1914 ई. में 'नायर सर्विस सोसाइटी' नामक एक संस्था बनाई। आरम्भ से ही मन्नम इस संस्था के सचिव थे। फिर उन्होंने अपनी वकालत भी छोड़ दी और पूरा समय सोसाइटी के कार्यों में लगा दिया। उनके प्रयत्न से नायर समाज की अनेक बुराइयाँ दूर हुईं। समाज के अनेक दोषों को दूर करने के लिए उन्हें सरकार से क़ानून बनवाने में भी सफलता मिली। परन्तु मन्नम का कार्यक्षेत्र केवल नायर जाति सुधार तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने छुआछूत की कुप्रथा को दूर करने में भी आगे बढ़कर भाग लिया। पहले 'अवर्णों' को नायर सोसाइटी के मन्दिरों में पूजा करने का अधिकार प्रदान किया गया। फिर गांधी जी की अनुमति लेकर अन्य मन्दिरों में हरिजन प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया। फलस्वरूप 1936 में त्रावनकोर के महाराजा ने सबके लिए मन्दिर खोल दिये।
शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा
[[चित्र:Mannathu Padmanabhan-postal-stamp.jpg|thumb|मन्नत्तु पद्मनाभन के सम्मान में जारी डाक टिकट]] अपने समाजसेवा के कार्य में मन्नत्तु पद्मनाभन ने शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं को भी सम्मिलित किया। उन्होंने केरल के अनेक भागों में विद्यालयों की स्थापना की। केरल का भारत में विलय कराने के आन्दोलन में उन्हें 68 साल की उम्र में जेल भी जाना पड़ा था। 1948 में वे राज्य विधान सभा के सदस्य बने। स्वतंत्रता के बाद केरल में बनी प्रथम साम्यवादी सरकार के जनविरोधी कार्यों का उन्होंने इतना ज़ोरदार विरोध किया कि सरकार को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। इस आन्दोलन के बाद मन्नम भारत केसरी के नाम से भी विख्यात हुए।
सम्मान
मन्नत्तु पद्मनाभन के बहुमुखी सेवा कार्यों के सम्मान में भारत सरकार ने 1966 में उन्हें 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया था।
निधन
मलयालम भाषा के लेखक के रूप में भी उनकी ख्याति थी। साधारण स्थिति में जन्मा व्यक्ति भी अपने समाज और देश की कितनी सेवा कर सकता है, पद्मनाभन का जीवन इसका उदाहरण है। 25 फ़रवरी, 1970 को उनका देहान्त हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 598 |
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख