User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 90: | Line 90: | ||
-[[च्यवन]] | -[[च्यवन]] | ||
-[[मार्कण्डेय]] | -[[मार्कण्डेय]] | ||
||'किन्दम' ऋषि का उल्लेख [[महाभारत]] में हुआ है। एक बार [[हस्तिनापुर]] के राजा [[पाण्डु]] वन में घूम रहे थे। तभी उन्हें हिरनों का एक जोड़ा दिखाई दिया। पाण्डु ने निशाना साधकर उन पर पाँच [[बाण अस्त्र|बाण]] मारे, जिससे हिरन घायल हो गए। वास्तव में वह हिरन [[किन्दम]] नामक एक [[ऋषि]] थे, जो अपनी पत्नी के साथ प्रणय विहार कर रहे थे। तब किन्दम ऋषि ने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर पाण्डु को शाप दिया कि तुमने अकारण मुझ पर और मेरी तपस्विनी पत्नी पर बाण चलाए हैं, जब हम विहार कर रहे थे। अब तुम जब कभी भी अपनी पत्नी के साथ सहवास करोगे तो उसी समय तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी तथा वह पत्नी तुम्हारे साथ [[सती प्रथा|सती]] हो जाएगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[किन्दम]] | |||
{[[द्रोणाचार्य]] को दिव्यास्त्र किसने दिये थे?(हि.ध.प्र.- 136) | {[[द्रोणाचार्य]] को दिव्यास्त्र किसने दिये थे?(हि.ध.प्र.- 136) | ||
Line 97: | Line 98: | ||
-[[शिव]] | -[[शिव]] | ||
-[[इन्द्र|इन्द्र देव]] | -[[इन्द्र|इन्द्र देव]] | ||
||[[चित्र:Parashurama.jpg|right|100px|परशुराम]]'परशुराम' राजा प्रसेनजित की पुत्री [[रेणुका]] और भृगुवंशीय [[जमदग्नि]] के पुत्र, [[विष्णु]] के [[अवतार]] और [[शिव]] के परम [[भक्त]] थे। इन्हें शिव से विशेष '[[परशु अस्त्र|परशु]]' प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो 'राम' था, किन्तु शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये '[[परशुराम]]' कहलाते थे। ये विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार थे, जो [[वामन अवतार|वामन]] एवं [[रामचन्द्र]] के मध्य में गिने जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं। इनका जन्म [[अक्षय तृतीया]], ([[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]], [[तृतीया]]) को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। परम्परा के अनुसार इन्होंने [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए ही इनका जन्म हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[परशुराम]] | |||
{किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को शाप दिया था कि उसे एक [[वर्ष]] तक नंपुसक के रूप में रहना पड़ेगा?(हि.ध.प्र.- 136) | {किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को शाप दिया था कि उसे एक [[वर्ष]] तक नंपुसक के रूप में रहना पड़ेगा?(हि.ध.प्र.- 136) | ||
Line 104: | Line 106: | ||
-[[मेनका]] | -[[मेनका]] | ||
-तिलोत्तमा | -तिलोत्तमा | ||
||'[[श्रीमद्भागवत]]' के अनुसार [[उर्वशी]] स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। एक दिन जब चित्रसेन [[अर्जुन]] को [[संगीत]] और [[नृत्य]] की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई। अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा- 'हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें।' [[उर्वशी]] के वचन सुनकर अर्जुन बोले- 'हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे [[विवाह]] करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं। अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा- 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक [[वर्ष]] तक पुंसत्वहीन रहोगे।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[उर्वशी]], [[अर्जुन]] | |||
{[[यक्ष]] के रूप में [[युधिष्ठिर]] के सामने कौन आया था, जिसने उनसे विभिन्न दार्शनिक प्रश्न पूछे थे?(हि.ध.प्र.- 136) | {[[यक्ष]] के रूप में [[युधिष्ठिर]] के सामने कौन आया था, जिसने उनसे विभिन्न दार्शनिक प्रश्न पूछे थे?(हि.ध.प्र.- 136) |
Revision as of 07:52, 29 May 2013
|