पितृ पक्ष: Difference between revisions

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==महत्त्व==
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'पितृ पक्ष' अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्ति करने का महापर्व है। इस अवधि में पितृगण अपने परिजनों के समीप विविध रूपों में मंडराते हैं और अपने मोक्ष की कामना करते हैं। परिजनों से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देकर हमें अनिष्ट घटनाओं से बचाते हैं। ज्योतिष मान्यताओं के आधार पर [[सूर्य देव]] जब कन्या राशि में गोचर करते हैं, तब हमारे [[पितर]] अपने पुत्र-पौत्रों के यहाँ विचरण करते हैं। विशेष रूप से वे [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] की कामना करते हैं। [[श्राद्ध]] से पितृगण प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वालों को सुख-समृद्धि, सफलता, आरोग्य और संतान रूपी फल देते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion-occasion-shradh/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-1110912038_1.htm|title=पूर्वजों के प्रति श्रृद्धा का महापर्व|accessmonthday=02 अगस्त|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> पितृ पक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार 'ब्रह्मवैवर्तपुराण' में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते है, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। वे उच्च शुद्ध कर्मों के कारण अपनी [[आत्मा]] के भीतर एक तेज और प्रकाश से आलोकित होते है। मृत्यु के उपरांत भी श्राद्ध करने वाले सदगृहस्थ को स्वर्गलोक, विष्णुलोक और ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।<ref>{{cite web |url=http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/aasthaaurchintan/entry/potradosh-and-shradh-5|title=पितृदोष निवारण के लिए पितृपक्ष के श्राद्ध|accessmonthday=02 अगस्त|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
'पितृ पक्ष' अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्ति करने का महापर्व है। इस अवधि में पितृगण अपने परिजनों के समीप विविध रूपों में मंडराते हैं और अपने मोक्ष की कामना करते हैं। परिजनों से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देकर हमें अनिष्ट घटनाओं से बचाते हैं। ज्योतिष मान्यताओं के आधार पर [[सूर्य देव]] जब कन्या राशि में गोचर करते हैं, तब हमारे [[पितर]] अपने पुत्र-पौत्रों के यहाँ विचरण करते हैं। विशेष रूप से वे [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] की कामना करते हैं। [[श्राद्ध]] से पितृगण प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वालों को सुख-समृद्धि, सफलता, आरोग्य और संतान रूपी फल देते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion-occasion-shradh/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%83%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-1110912038_1.htm|title=पूर्वजों के प्रति श्रृद्धा का महापर्व|accessmonthday=02 अगस्त|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> पितृ पक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार 'ब्रह्मवैवर्तपुराण' में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक पितृ पक्ष के दौरान [[पिंडदान]], तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते है, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। वे उच्च शुद्ध कर्मों के कारण अपनी [[आत्मा]] के भीतर एक तेज और प्रकाश से आलोकित होते है। मृत्यु के उपरांत भी श्राद्ध करने वाले सदगृहस्थ को स्वर्गलोक, विष्णुलोक और ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।<ref name="bb">{{cite web |url=http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/aasthaaurchintan/entry/potradosh-and-shradh-5|title=पितृदोष निवारण के लिए पितृपक्ष के श्राद्ध|accessmonthday=02 अगस्त|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==तीन ऋण==
भारतीय वैदिक वांगमय के अनुसार प्रत्येक मनुष्य पर इस धरती पर जीवन लेने के पश्चात तीन प्रकार के ऋण होते हैं-
#देव ऋण
#ऋषि ऋण
#पितृ ऋण
 
पितृ पक्ष के श्राद्ध यानी 16 श्राद्ध साल के ऐसे सुनहरे दिन हैं। इन दिनों में व्यक्ति [[श्राद्ध]] प्रक्रिया में शामिल होकर उपरोक्त तीनों ऋणों से मुक्त हो सकता है। [[महाभारत]] के प्रसंग के अनुसार, मृत्यु के उपरांत [[कर्ण]] को चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इनकार कर दिया था। कर्ण ने कहा कि- "मैंने तो अपनी सारी सम्पदा सदैव दान-पुण्य में ही समर्पित की है, फिर मेरे ऊपर यह कैसा ऋण बचा हुआ है? चित्रगुप्त ने जवाब दिया कि- "राजन, आपने देव ऋण और ऋषि ऋण तो चुका दिया है, लेकिन आपके उपर अभी पितृऋण बाकी है। जब तक आप इस ऋण से मुक्त नहीं होंगे, तब तक आपको मोक्ष मिलना कठिन होगा।" इसके उपरांत धर्मराज ने कर्ण को यह व्यवस्था दी कि आप 16 दिन के लिए पुनः [[पृथ्वी]] पर जाइए और अपने ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्ध-तर्पण तथा पिंडदान विधिवत करके आइए। तभी आपको मोक्ष यानी स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी।
==प्रमुख श्राद्ध स्थल==
जो लोग दान श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं करते, [[माता]]-[[पिता]] और बडे बुजुर्गो का आदर सत्कार नहीं करते, पितृगण उनसे हमेशा नाराज रहते हैं। इसके कारण वे या उनके परिवार के अन्य सदस्य रोगी, दु:खी और मानसिक और आर्थिक कष्ट से पीड़ित रहते है। वे निःसंतान भी हो सकते हैं। अथवा पितृदोष के कारण उनको संन्तान का सुख भी दुर्लभ रहता है। [[भारत]] की पावन भूमि में ऐसे कई स्थान हैं, जहाँ ऐसे भूले-भटके लोग पितृदोष की निवृत्ति के लिए अनुष्ठान कर सकते हैं। जैसे कि [[बिहार]] में [[गया]] के घाट पर, [[गंगासागर]] तथा [[महाराष्ट्र]] में [[त्र्यम्बकेश्वर]], [[हरियाणा]] में पिहोवा, [[उत्तर प्रदेश]] में गडगंगा, [[उत्तराखंड]] में [[हरिद्वार]] भी पितृ दोष के निवारण के लिए श्राद्धकर्म को आरंभ करने हेतु उपयुक्त स्थल हैं। इन स्थलों में जाकर वे श्रद्धालु भी पितृ पक्ष के श्राद्ध आरंभ कर सकते हैं, जिन्होंने पहले कभी भी श्राद्घ न किया हो। वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है, लेकिन जो भी श्रद्धालु अपने दिवंगत पिता, माता दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर [[ब्राह्मण]] को भोजन कराकर दक्षिणा आदि देते हैं, उनके घर [[लक्ष्मी]] और [[विष्णु]] भगवान सदैव ही बने रहते हैं। अर्थात वे सदैव ही धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं।<ref name="bb"/>


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Revision as of 13:10, 2 August 2013

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिन पितृ पक्ष ('पितृ' अथवा 'पिता') के नाम से जाने जाते है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध आदि सम्पन करते हैं। पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं। प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और दूसरा 'पितृ पक्ष' में। जिस मास और तिथि को पितृ की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उनका दाह संस्कार हुआ है, वर्ष में उस तिथि को 'एकोदिष्ट श्राद्ध' किया जाता है। पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को 'पितृ श्राद्ध' कहते हैं।

महत्त्व

'पितृ पक्ष' अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्ति करने का महापर्व है। इस अवधि में पितृगण अपने परिजनों के समीप विविध रूपों में मंडराते हैं और अपने मोक्ष की कामना करते हैं। परिजनों से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देकर हमें अनिष्ट घटनाओं से बचाते हैं। ज्योतिष मान्यताओं के आधार पर सूर्य देव जब कन्या राशि में गोचर करते हैं, तब हमारे पितर अपने पुत्र-पौत्रों के यहाँ विचरण करते हैं। विशेष रूप से वे तर्पण की कामना करते हैं। श्राद्ध से पितृगण प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वालों को सुख-समृद्धि, सफलता, आरोग्य और संतान रूपी फल देते हैं।[1] पितृ पक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार 'ब्रह्मवैवर्तपुराण' में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते है, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। वे उच्च शुद्ध कर्मों के कारण अपनी आत्मा के भीतर एक तेज और प्रकाश से आलोकित होते है। मृत्यु के उपरांत भी श्राद्ध करने वाले सदगृहस्थ को स्वर्गलोक, विष्णुलोक और ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।[2]

तीन ऋण

भारतीय वैदिक वांगमय के अनुसार प्रत्येक मनुष्य पर इस धरती पर जीवन लेने के पश्चात तीन प्रकार के ऋण होते हैं-

  1. देव ऋण
  2. ऋषि ऋण
  3. पितृ ऋण

पितृ पक्ष के श्राद्ध यानी 16 श्राद्ध साल के ऐसे सुनहरे दिन हैं। इन दिनों में व्यक्ति श्राद्ध प्रक्रिया में शामिल होकर उपरोक्त तीनों ऋणों से मुक्त हो सकता है। महाभारत के प्रसंग के अनुसार, मृत्यु के उपरांत कर्ण को चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इनकार कर दिया था। कर्ण ने कहा कि- "मैंने तो अपनी सारी सम्पदा सदैव दान-पुण्य में ही समर्पित की है, फिर मेरे ऊपर यह कैसा ऋण बचा हुआ है? चित्रगुप्त ने जवाब दिया कि- "राजन, आपने देव ऋण और ऋषि ऋण तो चुका दिया है, लेकिन आपके उपर अभी पितृऋण बाकी है। जब तक आप इस ऋण से मुक्त नहीं होंगे, तब तक आपको मोक्ष मिलना कठिन होगा।" इसके उपरांत धर्मराज ने कर्ण को यह व्यवस्था दी कि आप 16 दिन के लिए पुनः पृथ्वी पर जाइए और अपने ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्ध-तर्पण तथा पिंडदान विधिवत करके आइए। तभी आपको मोक्ष यानी स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी।

प्रमुख श्राद्ध स्थल

जो लोग दान श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं करते, माता-पिता और बडे बुजुर्गो का आदर सत्कार नहीं करते, पितृगण उनसे हमेशा नाराज रहते हैं। इसके कारण वे या उनके परिवार के अन्य सदस्य रोगी, दु:खी और मानसिक और आर्थिक कष्ट से पीड़ित रहते है। वे निःसंतान भी हो सकते हैं। अथवा पितृदोष के कारण उनको संन्तान का सुख भी दुर्लभ रहता है। भारत की पावन भूमि में ऐसे कई स्थान हैं, जहाँ ऐसे भूले-भटके लोग पितृदोष की निवृत्ति के लिए अनुष्ठान कर सकते हैं। जैसे कि बिहार में गया के घाट पर, गंगासागर तथा महाराष्ट्र में त्र्यम्बकेश्वर, हरियाणा में पिहोवा, उत्तर प्रदेश में गडगंगा, उत्तराखंड में हरिद्वार भी पितृ दोष के निवारण के लिए श्राद्धकर्म को आरंभ करने हेतु उपयुक्त स्थल हैं। इन स्थलों में जाकर वे श्रद्धालु भी पितृ पक्ष के श्राद्ध आरंभ कर सकते हैं, जिन्होंने पहले कभी भी श्राद्घ न किया हो। वैसे तो पितृ पक्ष के श्राद्ध की महिमा अपार है, लेकिन जो भी श्रद्धालु अपने दिवंगत पिता, माता दादा, परदादा, नाना, नानी आदि का इन 16 श्राद्धों में व्रत उपवास रखकर ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा आदि देते हैं, उनके घर लक्ष्मी और विष्णु भगवान सदैव ही बने रहते हैं। अर्थात वे सदैव ही धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूर्वजों के प्रति श्रृद्धा का महापर्व (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 02 अगस्त, 2013।
  2. 2.0 2.1 पितृदोष निवारण के लिए पितृपक्ष के श्राद्ध (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 02 अगस्त, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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