कभी ख़ुशी कभी ग़म -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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दोस्त बड़ा समझदार था, उसने छोटे पहलवान को समझाया- "मेरे भोले मित्र! अगर तुम उस समस्या से दु:खी हो जिसका कोई समाधान नहीं है तो तुम्हारा दु:खी होना बेकार है क्योंकि जिस समस्या का समाधान न हो वह समस्या नहीं होती। समस्या केवल वही होती है जिसका कोई न कोई समाधान हो। इसलिए दोनों ही स्थितियों में दु:खी होना बेकार ही हुआ न? लेकिन तेरी समस्या का मेरे पास एक समाधान है। अब तू मेरी मान पहलवान! तू इस शहर को छोड़कर दूसरे शहर में चला जा, वहाँ तू जो कुछ भी करेगा, तेरे सामने ये लोगों के कहने-सुनने वाली दिक़्क़त नहीं आएगी" | दोस्त बड़ा समझदार था, उसने छोटे पहलवान को समझाया- "मेरे भोले मित्र! अगर तुम उस समस्या से दु:खी हो जिसका कोई समाधान नहीं है तो तुम्हारा दु:खी होना बेकार है क्योंकि जिस समस्या का समाधान न हो वह समस्या नहीं होती। समस्या केवल वही होती है जिसका कोई न कोई समाधान हो। इसलिए दोनों ही स्थितियों में दु:खी होना बेकार ही हुआ न? लेकिन तेरी समस्या का मेरे पास एक समाधान है। अब तू मेरी मान पहलवान! तू इस शहर को छोड़कर दूसरे शहर में चला जा, वहाँ तू जो कुछ भी करेगा, तेरे सामने ये लोगों के कहने-सुनने वाली दिक़्क़त नहीं आएगी" | ||
वास्तव में छोटे पहलवान ने ऐसा ही किया और वह एक पूर्णत: सफल व्यक्ति कहलाया। | वास्तव में छोटे पहलवान ने ऐसा ही किया और वह एक पूर्णत: सफल व्यक्ति कहलाया। | ||
अनेक समस्याओं के कारण हमारे देश में दु:ख और अवसाद (डिप्रेशन) की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है। यह कहा जा रहा है कि हर तीसरा भारतीय नागरिक अवसाद ग्रसित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत दुनिया का पहला देश है जहाँ सबसे ज़्यादा लोग अवसाद के मरीज़ बन रहे हैं। भारत में 36 प्रतिशत लोग अवसाद के एक गंभीर रूप (मेजर डिप्रेसिव एपिसोड) के शिकार हैं। | अनेक समस्याओं के कारण हमारे देश में दु:ख और अवसाद (डिप्रेशन) की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है। यह कहा जा रहा है कि हर तीसरा भारतीय नागरिक अवसाद ग्रसित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत दुनिया का पहला देश है जहाँ सबसे ज़्यादा लोग अवसाद के मरीज़ बन रहे हैं। भारत में 36 प्रतिशत लोग अवसाद के एक गंभीर रूप (मेजर डिप्रेसिव एपिसोड) के शिकार हैं। इस अवस्था का परिणाम आत्महत्या भी हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार अवसाद के 15 प्रतिशत रोगी आत्महत्या कर लेते हैं। | ||
भारत में दु:खी लोगों के आँकड़े बहुत चौंकाने वाले हैं। इन आँकड़ों पर आप यूँ ही विश्वास कर लें तो यह भी ठीक नहीं क्योंकि आँकड़े अलग-अलग परिस्थिति में और अलग-अलग एजेंसियों द्वारा इकट्ठे किए जाते हैं जो बदलते रहते हैं फिर भी एक नज़र डालें... | भारत में दु:खी लोगों के आँकड़े बहुत चौंकाने वाले हैं। इन आँकड़ों पर आप यूँ ही विश्वास कर लें तो यह भी ठीक नहीं क्योंकि आँकड़े अलग-अलग परिस्थिति में और अलग-अलग एजेंसियों द्वारा इकट्ठे किए जाते हैं जो बदलते रहते हैं फिर भी एक नज़र डालें... | ||
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आंकड़े कह रहे हैं कि दुखी बढ़ रहे हैं या यह कहें कि सुखी कम हो रहे हैं। वैसे दोनों बातें एक ही | आंकड़े कह रहे हैं कि दुखी बढ़ रहे हैं या यह कहें कि सुखी कम हो रहे हैं। वैसे दोनों बातें एक ही हैं लेकिन एक प्रश्न है 'सुख को बढ़ाने से दु:ख कम होगा या दु:ख को घटाने से सुख बढ़ेगा ?' इन दोनों में से कौन सी बात सही है ? असल में मनुष्य का दु:ख कम करने के लिए उसे सुखी करना आवश्यक है। इसलिए सुखी करने के उपाय करना ही अर्थपूर्ण है न कि दु:ख कम करने का। दु:ख कम करने के लिए इसके अलावा, कोई उपाय है भी नहीं। सारी दुनिया में सभी व्यक्ति सुख की तलाश में रहते हैं शायद ईश्वर से भी ज़्यादा किसी की तलाश यदि की गई है तो वह है सुख। वैसे यदि ये कहें कि सुख प्राप्ति के लिए ही ईश्वर की तलाश की जाती है तो कुछ ग़लत नहीं होगा। | ||
दु:ख और अवसाद के अनेक-अनेक कारण हो सकते हैं। कुछ कारणों पर चर्चा कर रहा हूँ- | दु:ख और अवसाद के अनेक-अनेक कारण हो सकते हैं। कुछ कारणों पर चर्चा कर रहा हूँ- | ||
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पुरानी कहावत है 'ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर'। यह कहावत बहुत ही वैज्ञानिक परीक्षण का नतीजा है। मनुष्य का मस्तिष्क ख़ाली रहने पर नकारात्मक बातें ज़्यादा सोचता है। कभी इस प्रयोग को करके देखें कि ख़ुद को कुछ समय के लिए ख़ाली छोड़ दें। आप देखेंगे कि आपको बार-बार अपने दिमाग़ को रचनात्मक सोच की ओर मोड़ना पड़ रहा है वरना दिमाग़ तो अधिकतर बुरे विचारों से घिरने लगता है। ये विचार ही हमें पहले दु:ख और फिर अवसाद की ओर ले जाते हैं। | पुरानी कहावत है 'ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर'। यह कहावत बहुत ही वैज्ञानिक परीक्षण का नतीजा है। मनुष्य का मस्तिष्क ख़ाली रहने पर नकारात्मक बातें ज़्यादा सोचता है। कभी इस प्रयोग को करके देखें कि ख़ुद को कुछ समय के लिए ख़ाली छोड़ दें। आप देखेंगे कि आपको बार-बार अपने दिमाग़ को रचनात्मक सोच की ओर मोड़ना पड़ रहा है वरना दिमाग़ तो अधिकतर बुरे विचारों से घिरने लगता है। ये विचार ही हमें पहले दु:ख और फिर अवसाद की ओर ले जाते हैं। | ||
कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य अपनी स्थिति के लिए स्वयं ही ज़िम्मेदार होता है। दु:ख की उपस्थिति सुख के साथ वैसे ही है जैसे प्रकाश के साथ अंधकार, अमीरी के साथ ग़रीबी, ज्ञान के साथ अज्ञान, प्रेम के साथ घृणा, मिलन के साथ विछोह आदि जुड़े रहते हैं। | कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य अपनी स्थिति के लिए स्वयं ही ज़िम्मेदार होता है। दु:ख की उपस्थिति सुख के साथ वैसे ही है जैसे प्रकाश के साथ अंधकार, अमीरी के साथ ग़रीबी, ज्ञान के साथ अज्ञान, प्रेम के साथ घृणा, मिलन के साथ विछोह आदि जुड़े रहते हैं। | ||
इसे थोड़ा और विस्तार दें तो- | |||
प्रकाश की उपस्थिति सदैव अंधकार से प्रभावित रहती है। प्रकाश का सुख वही अनुभव कर सकता है जिसने अंधकार का अनुभव किया हो। इसलिए प्रकाश में अंधकार का भय समाहित है। कोई अमीर ऐसा नहीं है जिसे ग़रीब हो जाने का भय दु:खी न करता हो। हम जितने ज्ञानी होते जाते हैं उतना ही अपने अज्ञान का अहसास बढ़ता जाता है। प्रेम का सुख और घृणा का दु:ख समानान्तर चलते रहते हैं। असल में प्रेम और घृणा एक दूसरे के आवरण मात्र हैं। मिलन के सुख को विछोह का दु:ख हमेशा प्रभावित करता रहता है। यदि यह कहें तो और भी उचित होगा कि विछोह का दु:ख क्या है, यह समझ में तभी आता है जब मिलन का सुख मिलता है। | प्रकाश की उपस्थिति सदैव अंधकार से प्रभावित रहती है। प्रकाश का सुख वही अनुभव कर सकता है जिसने अंधकार का अनुभव किया हो। इसलिए प्रकाश में अंधकार का भय समाहित है। कोई अमीर ऐसा नहीं है जिसे ग़रीब हो जाने का भय दु:खी न करता हो। हम जितने ज्ञानी होते जाते हैं उतना ही अपने अज्ञान का अहसास बढ़ता जाता है। प्रेम का सुख और घृणा का दु:ख समानान्तर चलते रहते हैं। असल में प्रेम और घृणा एक दूसरे के आवरण मात्र हैं। मिलन के सुख को विछोह का दु:ख हमेशा प्रभावित करता रहता है। यदि यह कहें तो और भी उचित होगा कि विछोह का दु:ख क्या है, यह समझ में तभी आता है जब मिलन का सुख मिलता है। | ||
दु:ख को शाश्वत कहा गया है, अंधकार की तरह और सुख को क्षणिक कहा जाता है, प्रकाश की तरह। लेकिन मैं सहमत नहीं हूँ इससे क्योंकि यदि दु:ख शाश्वत है तो सुख भी शाश्वत ही होगा अन्यथा सुख, कभी भी दु:ख का विलोम नहीं को सकता। सभी विलोम अपने अनुलोम के समानान्तर होते हैं और अपने भीतर एक-दूसरे को छुपाए रहते हैं। | दु:ख को शाश्वत कहा गया है, अंधकार की तरह और सुख को क्षणिक कहा जाता है, प्रकाश की तरह। लेकिन मैं सहमत नहीं हूँ इससे क्योंकि यदि दु:ख शाश्वत है तो सुख भी शाश्वत ही होगा अन्यथा सुख, कभी भी दु:ख का विलोम नहीं को सकता। सभी विलोम अपने अनुलोम के समानान्तर होते हैं और अपने भीतर एक-दूसरे को छुपाए रहते हैं। |
Revision as of 15:43, 8 November 2013
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश कभी ख़ुशी कभी ग़म -आदित्य चौधरी "छोटे पहलवान! क्या बात है इतने उदास क्यों हो यार?"
लोगों ने कहा "पैसा तो तिकड़मबाज़ी और बेईमानी से ही आता है, किया होगा कोई घपला।"
आंकड़े कह रहे हैं कि दुखी बढ़ रहे हैं या यह कहें कि सुखी कम हो रहे हैं। वैसे दोनों बातें एक ही हैं लेकिन एक प्रश्न है 'सुख को बढ़ाने से दु:ख कम होगा या दु:ख को घटाने से सुख बढ़ेगा ?' इन दोनों में से कौन सी बात सही है ? असल में मनुष्य का दु:ख कम करने के लिए उसे सुखी करना आवश्यक है। इसलिए सुखी करने के उपाय करना ही अर्थपूर्ण है न कि दु:ख कम करने का। दु:ख कम करने के लिए इसके अलावा, कोई उपाय है भी नहीं। सारी दुनिया में सभी व्यक्ति सुख की तलाश में रहते हैं शायद ईश्वर से भी ज़्यादा किसी की तलाश यदि की गई है तो वह है सुख। वैसे यदि ये कहें कि सुख प्राप्ति के लिए ही ईश्वर की तलाश की जाती है तो कुछ ग़लत नहीं होगा।
दु:ख और अवसाद का कारण 'ग़रीबी'-
एक अच्छे नागरिक के लिए लिए शासन की ओर से मात्र यह व्यवस्था है कि जब कभी वह निरपराध पकड़ा जाएगा तो उसे बचाने का प्रयास किया जाएगा। यह क्या व्यवस्था हुई? एक अच्छे नागरिक को राज्य की ओर से सम्मानित करने या कम से कम ससम्मान जीने की कोई व्यवस्था राज्य नहीं करता। कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि कोई एक ऐसा नागरिक जिसने अपना पूरा जीवन सभी प्रकार के सामाजिक और राज्य प्रदत्त नियमों को मानते हुए व्यतीत किया हो और उसे उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुँच कर और वरिष्ठ नागरिक बनकर कोई किसी प्रकार का सम्मान राज्य द्वारा दिया गया हो। वरिष्ठ नागरिक या प्रचलित भाषा में कहें कि सीनियर सिटीज़न को जो यात्रा किराए में जो रियायतें मिलती हैं वे तो सभी के लिए समान हैं भले ही वह कोई 'अवकाश प्राप्त आतंकवादी' ही क्यों न हो।
दु:ख और अवसाद का कारण 'ख़ाली दिमाग़'- |
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