इमरान का बस्ता -आदित्य चौधरी: Difference between revisions

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इमरान का बस्ता -आदित्य चौधरी

इमरान का बस्ता, इरफ़ान का टिफ़िन 
वहाँ है...
आइशा की घड़ी, नग़मा का कड़ा
वो इधर है, यहाँ है…

अरे ये अंगूठी ?
उफ़ ! अंगूठी के साथ उंगली भी
गोली से अलग हो गई
सक़ीना की है ये
अब क्या करना
दफ़ना भी दिया 
उसे तो ज़ुबेदा के साथ ही

ये तो गिफ़्ट पॅक है
स्टीवन एक क्रॉस लाया था
शायद 
क्रिसमस पर गिफ़्ट करने 
अपनी मां को
लिखा है इसमें
'माइ डार्लिंग डार्लिंग मॉम
हॅप्पी क्रिसमस !
...योर ओनली-ओनली सन’

क्रिसमस ही नहीं आया 
यहाँ तो…
ईद आएगी क्या ?
अब क्या ईद मनाना...

इस टिफ़िन में गोली का छेद है
अंदर तो खाने के साथ एक ख़त भी है।
जावेद की मां लिखती है-
‘आज बिना खाना खाए चला गया बेटा ?
खाने से क्या ग़ुस्सा ?
अल्लाह की रहमत है ये...
और फिर 
तेरे अब्बू भी तो नहीं हैं
तू ही तो मेरी इकलौती उम्मीद है
खाना ज़रूर खा लेना…

जनाब ! ये ताबीज़... 
इसकी डोर जल गई है
गोली गले में लगी होगी
देखिए ज़रा क्या लिखा है ?
वही…
सात सौ छियासी... बिसमिल्लाह !
और अंदर ?
कुल् हुबल्लाह अहद। अल्लाहुस्समद्।
लम् यलिद् व लम् यूलद। व लम् यकुन् कुफ़ुवन् अहद् ॥
अरे भाईऽऽऽ 
अरबी में नहीं
उर्दू में बता यार…उर्दू में
उर्दू में कहें तो
… मतलब कि अल्लाह एक है
और सबसे बड़ा है… 

एक मर्दाना पर्स भी है सर
इसमें भी एक चिट्ठी है जनाब !
'लिखा क्या है ?’
जनाब ! किसी ज़ाकिर का है…
लिखता है…
हराम है, हमारे मज़हब में
इस तरहा बेगुनाहों को मारना
लेकिन
मुझे अपना घर बनाना है
और रक़म चाहिए…
… इसलिए 
ये गुनाह कर रहा हूँ
नाजाइज़ है 
मगर मजबूरी है…
करते हुए भी
अल्लाह से डर रहा हूँ
जनाब ! लगता है 
दहशत गर्द का पर्स गिर गया है

जनाब ?
जनाब ?
कहाँ खो गए जनाब ?
‘कहीं नहीं, बस सोचता हूँ कि
कैसा होगा ये इब्लीस के औलाद
जिसने पैसे के लिए 
इतने बच्चों की जान ली… ?

जनाब !
मेरे और आप जैसा ही होगा
वही दो आंख दो कान
और एक दिमाग़ होगा
… बस उसके दिल में 
फ़र्क़ होगा
बाईं की जगह
दाईं तरफ़ होगा...