बन्दा बहादुर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 9: | Line 9: | ||
1708 ई. में सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने बन्दा के आश्रम को देखा। उन्होंने माधोदास को [[सिक्ख धर्म]] में दीक्षित किया और उसका नाम 'बन्दा सिंह' रख दिया। गुरु गोविन्द सिंह जी के सात और नौ वर्ष के बच्चों की जब [[सरहिन्द]] के फ़ौजदार वज़ीर ख़ाँ ने क्रूरता के साथ हत्या कर दी, तो बन्दा सिंह पर इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। उसने वज़ीर ख़ाँ से बदला लेना अपना मुख्य कर्तव्य मान लिया। उसने [[पंजाब]] आकर बड़ी संख्या में सिक्खों को संगठित किया और [[सरहिन्द]] पर क़ब्ज़ा करके वज़ीर ख़ाँ को मार डाला। | 1708 ई. में सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने बन्दा के आश्रम को देखा। उन्होंने माधोदास को [[सिक्ख धर्म]] में दीक्षित किया और उसका नाम 'बन्दा सिंह' रख दिया। गुरु गोविन्द सिंह जी के सात और नौ वर्ष के बच्चों की जब [[सरहिन्द]] के फ़ौजदार वज़ीर ख़ाँ ने क्रूरता के साथ हत्या कर दी, तो बन्दा सिंह पर इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। उसने वज़ीर ख़ाँ से बदला लेना अपना मुख्य कर्तव्य मान लिया। उसने [[पंजाब]] आकर बड़ी संख्या में सिक्खों को संगठित किया और [[सरहिन्द]] पर क़ब्ज़ा करके वज़ीर ख़ाँ को मार डाला। | ||
====राज्य विस्तार एवं अज्ञातवास==== | ====राज्य विस्तार एवं अज्ञातवास==== | ||
बन्दा बहादुर ने [[यमुना नदी|यमुना]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] के प्रदेश को अपने अधीन कर लिया और | बन्दा बहादुर ने [[यमुना नदी|यमुना]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] के प्रदेश को अपने अधीन कर लिया और मुखलिशपुर में लोहागढ़ (लोहगढ़ अथवा लौहगढ़) नामक एक मज़बूत क़िला निर्मित कराया, इसके साथ ही राजा की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम से सिक्के भी जारी करा दिये। कुछ काल बाद सम्राट [[बहादुर शाह प्रथम]] (1707-12) ने शीघ्र ही लोहगढ़ पर घेरा डालकर उसे अपने अधीन कर लिया। बन्दा तथा उसके अनेक अनुयायियों को बाध्य होकर शाह प्रथम की मृत्यु तक अज्ञातवास करना पड़ा। | ||
==मुग़लों से सामना== | ==मुग़लों से सामना== | ||
बन्दा बहादुर ने 1706 में [[मुग़ल|मुग़लों]] पर हमला करके बहुत बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके उपरान्त बन्दा ने लोहगढ़ को फिर से अपने अधिकार में कर लिया और सरहिन्द के सूबे में लूटपाट आरम्भ कर दी। दक्कन क्षेत्र में अनेक द्वारा लूटपाट और क़त्लेआम से मुग़लों को उन पर पूरी ताकत से हमला करना पड़ा। किन्तु 1715 ई. में मुग़लों ने [[गुरदासपुर]] के क़िले पर घेरा डाल दिया। बन्दा उस समय उसी क़िले में था। कई माह की घेराबन्दी के बाद खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन लोगों को आत्म समर्पण करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुग़लों ने क़िले पर अधिकार करने के साथ ही बन्दा तथा उसके अनेक साथियों को बन्दी बना लिया। | बन्दा बहादुर ने 1706 में [[मुग़ल|मुग़लों]] पर हमला करके बहुत बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके उपरान्त बन्दा ने लोहगढ़ को फिर से अपने अधिकार में कर लिया और सरहिन्द के सूबे में लूटपाट आरम्भ कर दी। दक्कन क्षेत्र में अनेक द्वारा लूटपाट और क़त्लेआम से मुग़लों को उन पर पूरी ताकत से हमला करना पड़ा। किन्तु 1715 ई. में मुग़लों ने [[गुरदासपुर]] के क़िले पर घेरा डाल दिया। बन्दा उस समय उसी क़िले में था। कई माह की घेराबन्दी के बाद खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन लोगों को आत्म समर्पण करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुग़लों ने क़िले पर अधिकार करने के साथ ही बन्दा तथा उसके अनेक साथियों को बन्दी बना लिया। |
Revision as of 09:32, 9 January 2018
- बन्दा बहादुर / बंदा सिंह बहादुर / लछमन दास / लछमन देव / माधो दास
बन्दा बहादुर (जन्म - 16 अक्टूबर 1670, राजौरी; मृत्यु - जून 1716, दिल्ली) प्रसिद्ध सिक्ख सैनिक और राजनीतिक नेता थे। भारत के मुग़ल शासकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाले पहले सिक्ख सैन्य प्रमुख, जिन्होंने सिक्खों के राज्य का अस्थायी विस्तार भी किया।
जीवन परिचय
बन्दा बहादुर का जन्म 1670 ई. में कश्मीर के पुंछ ज़िले के राजौरी क्षेत्र में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उसका बचपन का नाम 'लक्ष्मण देव' था। 15 वर्ष की उम्र में वह एक बैरागी का शिष्य बना और उसका नाम 'माधोदास' हो गया। कुछ समय तक पंचवटी (नासिक) में रहने के बाद दक्षिण की ओर चला गया और उसने वहाँ एक आश्रम की स्थापना की। दसवें गुरु गोविन्द सिंह की 1708 ई. में हत्या हो जाने के बाद बन्दा सिक्खों का नेता बना। वह सिक्खों का आध्यात्मिक नेता नहीं था, किन्तु 1708 से 1715 ई. तक अपनी मृत्यु पर्यन्त उनका राजनीतिक नेता रहा।
अन्य नाम
युवावस्था में उन्होंने पहले समन (योगी) बनने का निश्चय किया और 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का शिष्य बनने तक वह माधो दास के नाम से जाने जाते रहे। सिक्ख बिरादरी में शामिल होने के बाद उनका नाम बंदा सिंह बहादुर हो गया और वह लोकप्रिय तो नहीं, सम्मानित सेनानी अवश्य बन गए, उनके तटस्थ, ठंडे और अवैयक्तिक स्वभाव ने उन्हें उनके लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं बनने दिया।
प्रतिशोध
1708 ई. में सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने बन्दा के आश्रम को देखा। उन्होंने माधोदास को सिक्ख धर्म में दीक्षित किया और उसका नाम 'बन्दा सिंह' रख दिया। गुरु गोविन्द सिंह जी के सात और नौ वर्ष के बच्चों की जब सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर ख़ाँ ने क्रूरता के साथ हत्या कर दी, तो बन्दा सिंह पर इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। उसने वज़ीर ख़ाँ से बदला लेना अपना मुख्य कर्तव्य मान लिया। उसने पंजाब आकर बड़ी संख्या में सिक्खों को संगठित किया और सरहिन्द पर क़ब्ज़ा करके वज़ीर ख़ाँ को मार डाला।
राज्य विस्तार एवं अज्ञातवास
बन्दा बहादुर ने यमुना और सतलुज के प्रदेश को अपने अधीन कर लिया और मुखलिशपुर में लोहागढ़ (लोहगढ़ अथवा लौहगढ़) नामक एक मज़बूत क़िला निर्मित कराया, इसके साथ ही राजा की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम से सिक्के भी जारी करा दिये। कुछ काल बाद सम्राट बहादुर शाह प्रथम (1707-12) ने शीघ्र ही लोहगढ़ पर घेरा डालकर उसे अपने अधीन कर लिया। बन्दा तथा उसके अनेक अनुयायियों को बाध्य होकर शाह प्रथम की मृत्यु तक अज्ञातवास करना पड़ा।
मुग़लों से सामना
बन्दा बहादुर ने 1706 में मुग़लों पर हमला करके बहुत बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके उपरान्त बन्दा ने लोहगढ़ को फिर से अपने अधिकार में कर लिया और सरहिन्द के सूबे में लूटपाट आरम्भ कर दी। दक्कन क्षेत्र में अनेक द्वारा लूटपाट और क़त्लेआम से मुग़लों को उन पर पूरी ताकत से हमला करना पड़ा। किन्तु 1715 ई. में मुग़लों ने गुरदासपुर के क़िले पर घेरा डाल दिया। बन्दा उस समय उसी क़िले में था। कई माह की घेराबन्दी के बाद खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन लोगों को आत्म समर्पण करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुग़लों ने क़िले पर अधिकार करने के साथ ही बन्दा तथा उसके अनेक साथियों को बन्दी बना लिया।
शहादत
फ़रवरी, 1716 में बन्दा और उसके 794 साथियों को कैद करके दिल्ली ले जाया गया। उन्हें अमानुषिक यातनाएँ दी गईं। प्रतिदिन 100 की संख्या में सिक्ख फाँसी पर लटकाए गए। बन्दा के सामने उसके पुत्र को मार डाला गया। जब उनकी बारी आई, तो बंदा सिंह ने मुसलमान न्यायाधीश से कहा कि उनका यही हाल होना था, क्योंकि अपने प्यारे गुरु गोबिंद सिंह की इच्छाओं को पूरा करने में वह नाक़ाम रहे। उन्हें लाल गर्म लोहे की छड़ों से यातना देकर मार डाला गया। फ़र्रुख़सियर के आदेश पर बन्दा के शरीर को गर्म चिमटों से नुचवाया गया और फिर हाथी से कुचलवाकर उसे मार डाला गया। यह घटना 16 जून, 1716 ई. को हुई थी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख