नीबू: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(नींबू को अनुप्रेषित)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
#REDIRECT[[नींबू ]]
{{पुनरीक्षण}}[[चित्र:Lemon-2.jpg|thumb|250px|कटा हुआ नीबू ]]
[[विटामिन]] सी से भरपूर नीबू स्फूर्तिदायक और रोग निवारक फल है। इसका [[रंग]] [[पीला रंग|पीला]] या [[हरा रंग|हरा]] तथा स्वाद खट्टा होता है। नीबू छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन, या बिल्कुल सफेद होती है। प्रारूपिक नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह [[पीला रंग|पीले रंग]] का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं।
==प्राप्ति==
नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: [[भारत]] ही है। यह [[हिमालय]] की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है।
==किस्म==
नीबू की कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। सन्‌ [[1953]] की गणना के अनुसार [[भारत]] में नीबू प्रजाति के फलों के अंतर्गत अनुमानित क्षेत्र 1,28,068 एकड़ था, जिसमें 79 प्रतिशत तथा 16.2 प्रतिशत क्षेत्र क्रमश: [[संतरा|संतरे]] तथा नीबू के अंतर्गत थे। इसके उत्पादन के स्थान [[मद्रास]], [[मुम्बई|बंबई]], [[बंगाल]], [[पंजाब]], [[मध्य प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]], [[हैदराबाद]], [[दिल्ली]], [[पटियाला]], [[उत्तर प्रदेश]], [[मैसूर]] तथा [[बड़ौदा]] हैं।
[[चित्र:Lemon-Tree.jpg|thumb|left|250px|नीबू के पेड़]]
==जलवायु==
नीबू के पौधे के लिए पाला अत्यंत हानिकारक है। यह दक्षिण [[भारत]] में अच्छी तरह पैदा हो सकता है, क्योंकि वहाँ का जलवायु उष्ण होता है और पाला तथा शीतवायु का नितांत अभाव रहता है। पौधे विभिन्न प्रकार की भूमि में भली प्रकार उगते हैं, परंतु उपजाऊ तथा समान बनावट की दोमट मिट्टी, जो आठ फुट की गहराई तक एक सी हो, आदर्श समझी जाती है। स्थायी रूप से पानी एकत्रित रहना, अथवा सदैव ऊँचे स्तर तक पानी विद्यमान रहना, या जहाँ पानी का स्तर घटता-बढ़ता रहे, ऐसे स्थान पौधों की वृद्धि के लिए अनुपयुक्त हैं।
==रोपण==
नीबू के पौधे साधारणतया बीज तथा गूटी से उत्पन्न किए जाते हैं। नियमानुसार पौधों को 20-20 फुट के अंतर पर लगाना चाहिए। इसके लिए 2' x 2' x 2' के गड्ढे उपयुक्त हैं। इनमें बरसात के ठीक पहले गोबर की सड़ी हुई खाद, या कंपोस्ट खाद, एक मन प्रति गड्ढे के हिसाब से डालनी चाहिए। पौधे लगाते समय गड्ढे के मध्य से थोड़ी मिट्टी हटाकर उसमें पौधा लगा देना चाहिए और उस स्थान से निकली हुई मिट्टी जड़ के चारों ओर लगाकर दबा देनी चाहिए। जुलाई की [[वर्षा]] के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए तभी पौधा लगाना चाहिए। पौधे लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जमीन में इनकी गहराई उतनी ही रहे जितनी रोप में थी। पौधे लगाने के बाद तुंरत ही पानी दे देना चाहिए। जलवृष्टि पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में कई बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई का परिमाण जलवृष्टि के वितरण एवं मात्रा पर निर्भर है।
[[चित्र:Lemon-1.jpg|thumb|250px|कच्चे नीबू ]]
====सिंचाई में उपयुक्त सावधानियाँ====
*हर सिंचाई में पानी इतनी ही मात्रा में देना चाहिए जिससे भूमि में पानी की आर्द्रता 4-6 प्रतिशत तक विद्यमान रहे। सिंचाई करने की सबसे उपयुक्त विधि 'रिंग' रीति है।
*नीबू प्रजाति के सभी प्रकार के फलों के लिए खाद की कोई निश्चित मात्रा अभिस्तावित नहीं की जा सकती है। पर साधारण रूप से नीबू के लिए 40 सेर गोबर की खाद, एक सेर सुपरफॉस्फेट तथा आधा सेर पॉटेशियम सल्फेट पर्याप्त होता है। गौण तत्वों की भी इसको आवश्यकता पड़ती है, जिनमें मुख्य जस्ता, बोरन, [[ताँबा]] तथा [[मैंगनीज़]] हैं।
*जहाँ पर सिंचाई के साधन हैं, वहाँ पर अंतराशस्य लगाना लाभप्रद होगा। दक्षिण [[भारत]] तथा [[असम]] में अनन्नास तथा [[पपीता]] नीबू के पेड़ों के बीच में लगाते हैं। इनके अतिरिक्त तरकारियाँ जैसे [[गाजर]], [[टमाटर]], [[मूली]], मिर्च तथा बैंगन आदि भी सरलतापूर्वक उत्पन्न किए जा सकते हैं।
*नीबू प्रजाति के पौधों को सिद्धांत: कम काट-छाँट की आवश्यकता पड़ती है। जो कुछ काट छाँट की भी जाती है, वह पेड़ों की वांछनीय आकार देने के लिए और अच्छी दशा में रखने के लिए की जाती है।
[[चित्र:Lemon.jpg|thumb|left|250px|नीबू व शिकंजी]]
====नीबू के फूलने का समय====
उत्तरी भारत में साधारणत: फल साल में दो बार आते हैं, परंतु इनके फूलने का प्रमुख समय वसंत ऋतु ([[फरवरी]]-[[मार्च]]) है। इसके उत्पादन की कोई विश्वसनीय संख्या प्राप्त नहीं है, किंतु नीबू की विभिन्न किस्मों का उत्पादन प्रति पेड़ 150 से 1000 फलों के लगभग होता है।
====उपयोगिता====
नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकता से भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार आदि तैयार किए जाते हैं।
====नीबू के रोग व हानि====
नीबू को अनेक प्रकार के रोग तथा कीड़े भी हानि पहुँचाते हैं। इनमें से शल्क, नीबू कैंकर, साइट्रस रेड माइट, ग्रीन मोल्ड, मीली बग इत्यादि प्रमुख हैं।
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{{cite book | last = लाल | first =अवधोबिहारी  | title =हिन्दी विश्वकोश | edition =[[1966]] | publisher =नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =392-393| chapter =खण्ड 6 }}
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{फल}}
[[Category:फल]]
[[Category:वनस्पति कोश]]
[[Category:वनस्पति]]
__INDEX__
__NOTOC__
[[Category:नया पन्ना]]

Revision as of 06:37, 31 May 2011

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

thumb|250px|कटा हुआ नीबू

विटामिन सी से भरपूर नीबू स्फूर्तिदायक और रोग निवारक फल है। इसका रंग पीला या हरा तथा स्वाद खट्टा होता है। नीबू छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन, या बिल्कुल सफेद होती है। प्रारूपिक नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं।

प्राप्ति

नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है।

किस्म

नीबू की कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। सन्‌ 1953 की गणना के अनुसार भारत में नीबू प्रजाति के फलों के अंतर्गत अनुमानित क्षेत्र 1,28,068 एकड़ था, जिसमें 79 प्रतिशत तथा 16.2 प्रतिशत क्षेत्र क्रमश: संतरे तथा नीबू के अंतर्गत थे। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं। thumb|left|250px|नीबू के पेड़

जलवायु

नीबू के पौधे के लिए पाला अत्यंत हानिकारक है। यह दक्षिण भारत में अच्छी तरह पैदा हो सकता है, क्योंकि वहाँ का जलवायु उष्ण होता है और पाला तथा शीतवायु का नितांत अभाव रहता है। पौधे विभिन्न प्रकार की भूमि में भली प्रकार उगते हैं, परंतु उपजाऊ तथा समान बनावट की दोमट मिट्टी, जो आठ फुट की गहराई तक एक सी हो, आदर्श समझी जाती है। स्थायी रूप से पानी एकत्रित रहना, अथवा सदैव ऊँचे स्तर तक पानी विद्यमान रहना, या जहाँ पानी का स्तर घटता-बढ़ता रहे, ऐसे स्थान पौधों की वृद्धि के लिए अनुपयुक्त हैं।

रोपण

नीबू के पौधे साधारणतया बीज तथा गूटी से उत्पन्न किए जाते हैं। नियमानुसार पौधों को 20-20 फुट के अंतर पर लगाना चाहिए। इसके लिए 2' x 2' x 2' के गड्ढे उपयुक्त हैं। इनमें बरसात के ठीक पहले गोबर की सड़ी हुई खाद, या कंपोस्ट खाद, एक मन प्रति गड्ढे के हिसाब से डालनी चाहिए। पौधे लगाते समय गड्ढे के मध्य से थोड़ी मिट्टी हटाकर उसमें पौधा लगा देना चाहिए और उस स्थान से निकली हुई मिट्टी जड़ के चारों ओर लगाकर दबा देनी चाहिए। जुलाई की वर्षा के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए तभी पौधा लगाना चाहिए। पौधे लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जमीन में इनकी गहराई उतनी ही रहे जितनी रोप में थी। पौधे लगाने के बाद तुंरत ही पानी दे देना चाहिए। जलवृष्टि पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में कई बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई का परिमाण जलवृष्टि के वितरण एवं मात्रा पर निर्भर है। thumb|250px|कच्चे नीबू

सिंचाई में उपयुक्त सावधानियाँ

  • हर सिंचाई में पानी इतनी ही मात्रा में देना चाहिए जिससे भूमि में पानी की आर्द्रता 4-6 प्रतिशत तक विद्यमान रहे। सिंचाई करने की सबसे उपयुक्त विधि 'रिंग' रीति है।
  • नीबू प्रजाति के सभी प्रकार के फलों के लिए खाद की कोई निश्चित मात्रा अभिस्तावित नहीं की जा सकती है। पर साधारण रूप से नीबू के लिए 40 सेर गोबर की खाद, एक सेर सुपरफॉस्फेट तथा आधा सेर पॉटेशियम सल्फेट पर्याप्त होता है। गौण तत्वों की भी इसको आवश्यकता पड़ती है, जिनमें मुख्य जस्ता, बोरन, ताँबा तथा मैंगनीज़ हैं।
  • जहाँ पर सिंचाई के साधन हैं, वहाँ पर अंतराशस्य लगाना लाभप्रद होगा। दक्षिण भारत तथा असम में अनन्नास तथा पपीता नीबू के पेड़ों के बीच में लगाते हैं। इनके अतिरिक्त तरकारियाँ जैसे गाजर, टमाटर, मूली, मिर्च तथा बैंगन आदि भी सरलतापूर्वक उत्पन्न किए जा सकते हैं।
  • नीबू प्रजाति के पौधों को सिद्धांत: कम काट-छाँट की आवश्यकता पड़ती है। जो कुछ काट छाँट की भी जाती है, वह पेड़ों की वांछनीय आकार देने के लिए और अच्छी दशा में रखने के लिए की जाती है।

thumb|left|250px|नीबू व शिकंजी

नीबू के फूलने का समय

उत्तरी भारत में साधारणत: फल साल में दो बार आते हैं, परंतु इनके फूलने का प्रमुख समय वसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) है। इसके उत्पादन की कोई विश्वसनीय संख्या प्राप्त नहीं है, किंतु नीबू की विभिन्न किस्मों का उत्पादन प्रति पेड़ 150 से 1000 फलों के लगभग होता है।

उपयोगिता

नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकता से भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार आदि तैयार किए जाते हैं।

नीबू के रोग व हानि

नीबू को अनेक प्रकार के रोग तथा कीड़े भी हानि पहुँचाते हैं। इनमें से शल्क, नीबू कैंकर, साइट्रस रेड माइट, ग्रीन मोल्ड, मीली बग इत्यादि प्रमुख हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

लाल, अवधोबिहारी “खण्ड 6”, हिन्दी विश्वकोश, 1966 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 392-393।


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख