प्राण: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 3: Line 3:
|चित्र=Pran.jpg
|चित्र=Pran.jpg
|पूरा नाम=प्राण कृष्ण सिकंद
|पूरा नाम=प्राण कृष्ण सिकंद
|अन्य नाम=प्राण साहब
|प्रसिद्ध नाम=प्राण  
|जन्म=[[12 फ़रवरी]], [[1920]]
|जन्म=[[12 फ़रवरी]], [[1920]]
|जन्म भूमि=[[दिल्ली]]
|जन्म भूमि=[[दिल्ली]]

Revision as of 11:39, 16 June 2011

चित्र:Disamb2.jpg प्राण एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- प्राण (बहुविकल्पी)
प्राण
पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद
प्रसिद्ध नाम प्राण
जन्म 12 फ़रवरी, 1920
जन्म भूमि दिल्ली
पति/पत्नी शुक्ला सिकंद
संतान अरविन्द, सुनील (पुत्र) और पिंकी (पुत्री)
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता
मुख्य फ़िल्में जिस देश में गंगा बहती है, उपकार, जंजीर आदि।
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, विलेन ऑफ़ द मिलेनियम अवार्ड[1]
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी प्राण को तीन बार फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला है।
बाहरी कड़ियाँ प्राण

प्राण कृष्ण सिकंद, हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने नायक, खलनायक और चरित्र अभिनेता हैं। प्राण ऐसे अभिनेता हैं जिनके चेहरे पर हमेशा मेकअप रहता है और भावनाओं का तूफ़ान नज़र आता है जो अपने हर किरदार में जान डालते हुए यह अहसास करा जाता है कि उसके बिना यह किरदार बेकार हो जाता। उनकी संवाद अदायगी की शैली को आज भी लोग भूले नहीं हैं।

जीवन परिचय

प्राण साहब का जन्म 12 फ़रवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में बसे एक रईस परिवार में प्राण का जन्म हुआ। बचपन में उनका नाम 'प्राण कृष्ण सिकंद' था। उनका परिवार बेहद समृद्ध था। प्राण बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे। बड़े होकर उनका फोटोग्राफर बनने का इरादा था। 1940 में जब मोहम्मद वली ने पहली बार पान की दुकान पर प्राण को देखा तो उन्हें फ़िल्मों में उतारने की सोची और एक पंजाबी फ़िल्म “यमला जट” बनाई जो बेहद सफल रही। फिर क्या था इसके बाद प्राण ने कभी मुड़कर देखा ही नहीं। 1947 तक वह 20 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम कर चुके थे और एक हीरो की इमेज के साथ इंड्रस्ट्री में काम कर रहे थे हालंकि लोग उन्हें विलेन के रुप में देखना ज़्यादा पसंद करते थे।[2]

व्यक्तित्व

अभिनेता प्राण को दशकों तक बुरे आदमी (खलनायक) के तौर पर जाना जाता रहा और ऐसा हो भी क्यों ना, पर्दे पर उनकी विकरालता इतनी जीवंत थी कि लोग उसे ही उसकी वास्तविक छवि मानते रहे, लेकिन फ़िल्मी पर्दे से इतर प्राण असल जिंदगी में वे बेहद सरल, ईमानदार और दयालु व्यक्ति थे। समाज सेवा और सबसे अच्छा व्यवहार करना उनका गुण था।[2]

प्रारंभिक जीवन

प्राण की शुरूआती फ़िल्में हों या बाद की फ़िल्में उन्होंने अपने आप को कभी दोहराया नहीं। उन्होंने अपने हर किरदार के साथ पूरी ईमानदारी से न्याय किया। फिर चाहे भूमिका छोटी हो या बडी उन्होंने समानता ही रखी। प्राण को सबसे बडी सफलता 1956 में हलाकू फ़िल्म से मिली जिसमें उन्होंने डकैत हलाकू का सशक्त किरदार निभाया था। प्राण ने राज कपूर निर्मित निर्देशित जिस देश में गंगा बहती है में राका डाकू की भूमिका निभाई थी जिसमें उन्होंने केवल अपनी आँखों से ही क्रूरता जाहिर कर दी थी। कभी ऐसा वक़्त भी था जब हर फ़िल्म में प्राण नज़र आते थे खलनायक के रूप में। उनके इस रूप को परिवर्तित किया था भारत कुमार यानी मनोज कुमार ने जिन्होंने अपनी निर्मित निर्देशित पहली फ़िल्म उपकार में उन्हें मलंग बाबा का रोल दिया। जिसमें वे अपाहिज की भूमिका में थे भूमिका कुछ छोटी जरूर थी लेकिन थी बहुत दमदार। इस फ़िल्म के लिए उनको पुरस्कृत भी किया गया था। उन पर फ़िल्माया गया कस्में वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में छाया हुआ है। भूले भटके जब कभी यह गीत बजता हुआ कानों को सुनाई देता है तो तुरन्त याद आते हैं प्राण। ऐसा ही कुछ अमिताभ अभिनीत जंजीर में भी हुआ था। नायक के पठान दोस्त की भूमिका में उन्होंने अपने चेहरे के हाव भावों और संवाद अदायगी से जबरदस्त प्रभाव छो़डा था। इस फ़िल्म का गीत यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिन्दगी सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके नृत्य की वजह से याद किया जाता है।[3]

यादगार फ़िल्में

प्राण 1942 में बनी ‘खानदान’ में नायक बन कर आए और नायिका थीं नूरजहाँ। 1947 में भारत आज़ाद हुआ और विभाजित भी। प्राण लाहौर से मुंबई आ गए। यहाँ क़रीब एक साल के संघर्ष के बाद उन्हें बॉम्बे टॉकीज की फ़िल्म ‘जिद्दी’ मिली। अभिनय का सफर फिर चलने लगा। पत्थर के सनम, तुमसा नहीं देखा, बड़ी बहन, मुनीम जी, गंवार, गोपी, हमजोली, दस नंबरी, अमर अकबर एंथनी, दोस्ताना, कर्ज, अंधा कानून, पाप की दुनिया, मत्युदाता क़रीब 350 से अधिक फ़िल्मों में प्राण साहब ने अपने अभिनय के अलग-अलग रंग बिखेरे।[4] इसके अतिरिक्त प्राण कई सामाजिक संगठनों से जुड़े हैं और उनकी अपनी एक फुटबॉल टीम बॉम्बे डायनेमस फुटबॉल क्लब भी है।[4]

फ़िल्म समीक्षकों की दृष्टि से

प्रख्यात फ़िल्म समीक्षक अनिरूद्ध शर्मा कहते हैं ‘‘प्राण की शुरूआती फ़िल्में देखें या बाद की फ़िल्में, उनकी अदाकारी में दोहराव कहीं नज़र नहीं आता। उनके मुंह से निकलने वाले संवाद दर्शक को गहरे तक प्रभावित करते हैं। भूमिका चाहे मामूली लुटेरे की हो या किसी बड़े गिरोह के मुखिया की हो या फिर कोई लाचार पिता हो, प्राण ने सभी के साथ न्याय किया है।’’ फ़िल्म आलोचक मनस्विनी देशपांडे कहती हैं कि वर्ष 1956 में फ़िल्म हलाकू मुख्य भूमिका निभाने वाले प्राण ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में राका डाकू बने और केवल अपनी आंखों से क्रूरता जाहिर की। लेकिन 1973 में ‘जंजीर’ फ़िल्म में अमिताभ बच्चन के मित्र शेरखान के रूप में उन्होंने अपनी आंखों से ही दोस्ती का भरपूर संदेश दिया। वह कहती हैं ‘‘उनकी संवाद अदायगी की विशिष्ट शैली लोग अभी तक नहीं भूले हैं। कुछ फ़िल्में ऐसी भी हैं जिनमें नायक पर खलनायक प्राण भारी पड़ गए। चरित्र भूमिकाओं में भी उन्होंने अमिट छाप छोड़ी है।’’।[4]

सम्मान एवं पुरस्कार

प्राण को तीन बार फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला। और 1997 में उन्हें फ़िल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से नवाजा गया। आज भी लोग प्राण की अदाकारी को याद करते हैं। [2] क़रीब 350 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय के अलग अलग रंग बिखेरने वाले प्राण को हिन्दी सिनेमा में उनके योगदान के लिए 2001 में भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।[3]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आधिकारिक वेबसाइट
  2. 2.0 2.1 2.2 हिन्दी सिनेमा का एक तारा – प्राण (हिन्दी) (पी.एच.पी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2011
  3. 3.0 3.1 संवाद अदायगी के गुरु रहे हैं प्राण (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) ख़ास खबर। अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी, 2011
  4. 4.0 4.1 4.2 प्राण की संवाद अदायगी के कायल लोग (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) समय लाइव। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2011

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख