अजितनाथ: Difference between revisions
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*अजितनाथ अपने पूर्वभव में महाराज विमलवाहन थे। | *अजितनाथ अपने पूर्वभव में महाराज विमलवाहन थे। |
Revision as of 11:17, 27 February 2012
अजितनाथ एक जैन तीर्थकर थे, जिनका जन्म अयोध्या के राजपरिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया था। इनका जन्म माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी और निर्वाण शुक्ल पक्ष के चैत्र मास की पंचमी के दिन 'सम्मेद शिखर' (सम्मेत शिखर) पर हुआ था। अजितनाथ जैन धर्म के द्वितीय तीर्थकर माने जाते हैं।
- अजितनाथ अपने पूर्वभव में महाराज विमलवाहन थे।
- कर्त्तव्यपरायण, प्रजावत्सल, शौर्य पराक्रम और भक्तिभाव से परिपूर्ण प्रचुर धन वैभव के स्वामी थे।
- वे आचार्य अरिदमन के प्रभाव से विरक्त हो गये थे।
- अपने पुण्य कर्मों से वे राजा जितशत्रु की पत्नी विजया के गर्भ में प्रतिष्ठित हुए।
- स्वप्नफल वेत्ताओं ने घोषणा की थी, कि यह बालक या तो चक्रवर्ती राजा होगा या तीर्थकर बनेगा।
- जितनाथ का विवाह माता-पिता की इच्छा से हुआ था, लेकिन वे आरम्भ से ही विरक्त रहे।
- युवावस्था में घरबार छोड़कर बारह वर्ष कठोर तप किया।
- उनके धर्म परिवार में 95 गणधर, 22000 केवली, 1 लाख साधु, 3 लाख 30 हज़ार साध्वियाँ, 2 लाख 98 हज़ार श्रावक और 5 लाख 45 हज़ार श्राविकाएँ थीं।[1]
- 'पउम चरिय' के अनुसार अजितनाथ का जन्म जितशत्रु के यहाँ हुआ था, जो साकेत के राजा थे। बड़े होने पर राजश्री से विरक्त हुए और प्रव्रज्या अंगीकृत कर तीर्थकर हुए।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 30 |