कौऔं का वायरस -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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दूसरा उदाहरण- अगर हम काम करते-करते काग़ज़ की गेंद बना कर रद्दी की टोकरी में बिना ध्यान दिए ही फेंक देते हैं, तो अक्सर हम चौंक जाते हैं, यह देखकर कि गेंद सीधी टोकरी में चली गई। बाद में निशाना बना-बना कर फेंकी तो सफलता कम मिलती है। | दूसरा उदाहरण- अगर हम काम करते-करते काग़ज़ की गेंद बना कर रद्दी की टोकरी में बिना ध्यान दिए ही फेंक देते हैं, तो अक्सर हम चौंक जाते हैं, यह देखकर कि गेंद सीधी टोकरी में चली गई। बाद में निशाना बना-बना कर फेंकी तो सफलता कम मिलती है। | ||
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यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ''ऍमिग्डाला'' (''Amygdala'') कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ''ऍमिग्डाला'' की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब ''इमोशनल इंटेलीजेन्स'' में बहुत अच्छी तरह समझाया है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=OgXxhmGiRB0C&dq=emotional+intelligence+goleman&hl=en&sa=X&ei=jRROT4j-A4TkrAeM1qS1Dw&redir_esc=y 'इमोशनल इंटेलीजेन्स' लेखक- डेनियल गोलमॅन]</ref> | यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ''ऍमिग्डाला'' (''Amygdala'') कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ''ऍमिग्डाला'' की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब ''इमोशनल इंटेलीजेन्स'' में बहुत अच्छी तरह समझाया है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=OgXxhmGiRB0C&dq=emotional+intelligence+goleman&hl=en&sa=X&ei=jRROT4j-A4TkrAeM1qS1Dw&redir_esc=y 'इमोशनल इंटेलीजेन्स' लेखक- डेनियल गोलमॅन]</ref> | ||
Revision as of 10:39, 17 March 2012
'कौऔं का वायरस' -आदित्य चौधरी एक बहुत ही सयाना कौआ अपने तीन बच्चों को दुनियादारी की ट्रेनिंग देते हुए गूढ़-ज्ञान की बातें बता रहा था। "सुनो ध्यान से! भगवान ने हमको ही सबसे ज़्यादा चालाक बनाया हो ऐसा नहीं है। असल में दूसरी तरह के कौए हमसे भी ज़्यादा चालाक हैं और हमको चैन से खाने-पीने और जीने नहीं देते। हमारी जान इसीलिए बची हुई है कि हमने जान बचाने की आदत डाल रखी है। इन ख़तरनाक कौऔं से बचने के लिए एक बहुत ज़रूरी आदत तुमको डालनी ही होगी। हमेशा-हमेशा याद रखो! अगर इस दुनियाँ में सरवाइव करना है तो जान बचाने की आदत डाल लेनी चाहिए, तो जान बचाने के लिए... " यह एक तरह की ध्यानावस्था ही है। यह एक ऐसा ध्यान है जो किया नहीं जाता या धारण नहीं करना होता बल्कि स्वत: ही धारित हो जाता है... बस लग जाता है। मनोविश्लेषण की पुरानी अवधारणा के अनुसार कहें तो अवचेतन मस्तिष्क (सब कॉन्शस) में कहीं स्थापित हो जाता है। दिमाग़ में बादाम जितने आकार के दो हिस्से, जिन्हें ऍमिग्डाला (Amygdala) कहते हैं, कुछ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ये दोनों कभी-कभी दिमाग़ को अनदेखा कर शरीर के किसी भी हिस्से को सक्रिय कर देते हैं। असल में इनकी मुख्य भूमिका संवेदनात्मक आपातकालिक संदेश देने की होती है। इस तरह की ही कोई प्रणाली संभवत: अवचेतन के संदेशों के निगमन को संचालित करती है। ऍमिग्डाला की प्रक्रिया को 'डेनियल गोलमॅन' ने अपनी किताब इमोशनल इंटेलीजेन्स में बहुत अच्छी तरह समझाया है।[1] |