छापाख़ाने का आभार -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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यह लेख मैंने इसी 23 फ़रवरी को लिखा क्योंकि 23 फ़रवरी को ही इस लेख का लिखा जाना शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। 23 फ़रवरी का दिन उन लोगों के लिए सम्भवत: सबसे महत्त्वपूर्ण है जो किताबों में रुचि रखते हैं, अध्ययन करते हैं और उसके अलावा भी शायद ही कोई ऐसा हो जिसके जीवन में यह दिन सबसे महत्त्वपूर्ण ना हो। क्या हुआ था इस दिन? | यह लेख मैंने इसी 23 फ़रवरी को लिखा क्योंकि 23 फ़रवरी को ही इस लेख का लिखा जाना शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। 23 फ़रवरी का दिन उन लोगों के लिए सम्भवत: सबसे महत्त्वपूर्ण है जो किताबों में रुचि रखते हैं, अध्ययन करते हैं और उसके अलावा भी शायद ही कोई ऐसा हो जिसके जीवन में यह दिन सबसे महत्त्वपूर्ण ना हो। क्या हुआ था इस दिन? | ||
1455 में इस दिन गुटिनबर्ग की पहली किताब छपकर दुनिया के सामने आयी थी, जो सचमुच ही इधर उधर जा सकती थी। लोग उसे देख सकते थे, पढ़ सकते थे और उसके पन्ने पलट सकते थे। इस किताब को 'गुटिनबर्ग बाइबिल' कहा गया। सब जानते हैं गुटिनबर्ग ने 'छपाई का आविष्कार' किया था। ऐसा नहीं है कि छ्पाई पहले नहीं होती थी, होती थी लेकिन किताब के रूप में | 1455 में इस दिन गुटिनबर्ग की पहली किताब छपकर दुनिया के सामने आयी थी, जो सचमुच ही इधर उधर जा सकती थी। लोग उसे देख सकते थे, पढ़ सकते थे और उसके पन्ने पलट सकते थे। इस किताब को 'गुटिनबर्ग बाइबिल' कहा गया। सब जानते हैं गुटिनबर्ग ने 'छपाई का आविष्कार' किया था। ऐसा नहीं है कि छ्पाई पहले नहीं होती थी, होती थी लेकिन किताब के रूप में शुरुआत सबसे पहले गुटिनबर्ग ने की और गुटिनबर्ग का नाम इस 'सहस्त्राब्दी के महानतम लोगों की सूची में पहला' है। इस तरह की कोई सर्वमान्य सूची तो कभी नहीं बनी लेकिन फिर भी प्रतिशत के हिसाब से अधिकतम लोग इसी सूची को मानते हैं। इस सूची में गुटिनबर्ग को 'मैन ऑफ़ द मिलेनियम' या 'सहस्त्राब्दी पुरुष' माना गया है। हम सब बहुत आभारी हैं गुटिनबर्ग के कि उसने यह विलक्षण खोज की... 'छापाख़ाना'। दु:ख की बात ये है कि गुटिनबर्ग का जीवन अभावों में गुज़रा उसके सहयोगी ने ही पूरा पैसा कमाया। | ||
पहली प्रिंटिंग प्रेस शुरू हुई और गुटिनबर्ग के कारण दुनिया के सामने किताबें आ पाईं। किताबें आने से पहले लेखन का कुछ ना कुछ काम चलता रहता था, जो हाथों से लिखा जाता था, कभी भुर्जपत्रों पर लिखा गया, तो कभी पत्थर पर महीन छैनी-हथौड़े से उकेरा गया। दुनिया में लेखन सम्बंधी अनेक प्रयोग होते रहे। 'बोली' को लिखने के लिए लिपि और वर्तनी की आवश्यकता हुई और इस तरह 'भाषा' बन गई। भाषा और लिपि अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की बनीं। भारत में भी व्याकरण और लिपि का कार्य चल रहा था जो सम्भवत: 500 ईसा पूर्व में पाणिनी द्वारा किया गया माना जाता है। यह समय गौतम बुद्ध के आसपास का ही रहा होगा और सिकंदर के पंजाब पर हमले से पहले का। | पहली प्रिंटिंग प्रेस शुरू हुई और गुटिनबर्ग के कारण दुनिया के सामने किताबें आ पाईं। किताबें आने से पहले लेखन का कुछ ना कुछ काम चलता रहता था, जो हाथों से लिखा जाता था, कभी भुर्जपत्रों पर लिखा गया, तो कभी पत्थर पर महीन छैनी-हथौड़े से उकेरा गया। दुनिया में लेखन सम्बंधी अनेक प्रयोग होते रहे। 'बोली' को लिखने के लिए लिपि और वर्तनी की आवश्यकता हुई और इस तरह 'भाषा' बन गई। भाषा और लिपि अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की बनीं। भारत में भी व्याकरण और लिपि का कार्य चल रहा था जो सम्भवत: 500 ईसा पूर्व में पाणिनी द्वारा किया गया माना जाता है। यह समय गौतम बुद्ध के आसपास का ही रहा होगा और सिकंदर के पंजाब पर हमले से पहले का। |
Revision as of 13:08, 24 March 2012
'छापाख़ाने का आभार' -आदित्य चौधरी यह लेख मैंने इसी 23 फ़रवरी को लिखा क्योंकि 23 फ़रवरी को ही इस लेख का लिखा जाना शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। 23 फ़रवरी का दिन उन लोगों के लिए सम्भवत: सबसे महत्त्वपूर्ण है जो किताबों में रुचि रखते हैं, अध्ययन करते हैं और उसके अलावा भी शायद ही कोई ऐसा हो जिसके जीवन में यह दिन सबसे महत्त्वपूर्ण ना हो। क्या हुआ था इस दिन? इतिहासकारों के साथ-साथ हम भी यह मानते हैं कि विश्व के एक हिस्से, देश, कुल, झुंड, या क़बीले में क्या हो रहा था, वह सही रूप से जानने के लिए उस समय पृथ्वी के दूसरे हिस्सों में क्या घट रहा था? यह जानना बहुत ज़रूरी है। पं. जवाहरलाल नेहरू ने लिखा भी है कि अगर हम किसी एक देश का इतिहास जानना चाहें तो यह जानना बहुत ज़रूरी है कि उस कालक्रम में दूसरे देशों में क्या घट रहा था, अगर हम यह नहीं जानेंगे तो अपने देश का या जिस देश का इतिहास हम जानना चाहते हैं, सही रूप से नहीं जान पायेंगे। भगवतशरण उपाध्याय जी और दामोदर धर्मानंद कोसंबी जी के दृष्टिकोण से भी विश्व की सभी संस्कृतियाँ प्रारम्भ से ही एक दूसरे से बहुत गहरे में मिली-जुली हैं और कोई एक अलग प्रकार का, एक अलग क्षेत्र में, कोई विकास हो पाना सम्भव नहीं है। इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... -आदित्य चौधरी प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक |