चमचारथी -आदित्य चौधरी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 31: Line 31:
अधिकारी और कर्मचारी सब कुछ 'ठीक-ठाक' करने में जुट गए। पत्रकार 'सॅट' कर दिए गए। धरने प्रदर्शन करने वाले महारथियों को 'संतुष्ट' कर दिया गया। शासक पार्टी के अध्यक्ष का भतीजा 'ऐडहॉक नियुक्ति' पा गया। महिला-समाज प्रतिनिधि मंडल सज-सँवर कर तैयार हो गया। 
अधिकारी और कर्मचारी सब कुछ 'ठीक-ठाक' करने में जुट गए। पत्रकार 'सॅट' कर दिए गए। धरने प्रदर्शन करने वाले महारथियों को 'संतुष्ट' कर दिया गया। शासक पार्टी के अध्यक्ष का भतीजा 'ऐडहॉक नियुक्ति' पा गया। महिला-समाज प्रतिनिधि मंडल सज-सँवर कर तैयार हो गया। 
वंदनवार और स्वागतद्वार सजने लगे, माला और हार बनने लगे और अधिकारियों के साथ-साथ ठेकेदार भी सहमने लगे... फिर  वी.आई.पी आ गए... 
वंदनवार और स्वागतद्वार सजने लगे, माला और हार बनने लगे और अधिकारियों के साथ-साथ ठेकेदार भी सहमने लगे... फिर  वी.आई.पी आ गए... 
"सर एक डेलीगेशन आपसे मिलना चाहता है।" मंत्री जी के सचिव ने पूछा
"सर एक डेलीगेशन आपसे मिलना चाहता है।" वी.आई.पी. के सचिव ने पूछा
"बुलाओ" मंत्री जी ने सचिव से कहा
"बुलाओ" वी.आई.पी. ने सचिव से कहा
"नमस्कार सर ! सर ! हम आपके दादाजी पर रिसर्च कर रहे हैं रिसर्च पूरी हो चुकी है... 
"नमस्कार सर ! सर ! हम आपके दादाजी पर रिसर्च कर रहे हैं रिसर्च पूरी हो चुकी है... 
"अच्छा ? क्या रिसर्च की है आपने ?"
"अच्छा ? क्या रिसर्च की है आपने ?"
"सर आपके दादा जी एक महान समाज सेवी, दार्शनिक, विचारक थे। सादा जीवन उच्च विचार उनका मूल मंत्र था। बहुत महान व्यक्तित्व था उनका सर !"
"सर आपके दादा जी एक महान समाज सेवी, दार्शनिक, विचारक थे। सादा जीवन उच्च विचार उनका मूल मंत्र था। बहुत महान व्यक्तित्व था उनका सर !"
"लेकिन मेरे मदर-फ़ादर ने कभी बताया नहीं दादाजी के बारे में...लगता है आपने काफ़ी रिसर्च की है, दादाजी पर" मंत्री जी के चेहरे पर मासूमियत का वह भाव था
"लेकिन मेरे मदर-फ़ादर ने कभी बताया नहीं दादाजी के बारे में...लगता है आपने काफ़ी रिसर्च की है, दादाजी पर" वी.आई.पी. के चेहरे पर मासूमियत का वह भाव था
जो कि नागरिक अभिनंदन के समय 'अभिनंदित' होने वाले 'नागरिक महोदय', अपनी उस प्रशंसा के समय इस्तेमाल करते हैं, जो कि प्रत्येक नागरिक अभिनंदन में, एक पुराने और पिटे हुए रिवाज़ के चलते की जाती है।
जो कि नागरिक अभिनंदन के समय 'अभिनंदित' होने वाले 'नागरिक महोदय', अपनी उस प्रशंसा के समय इस्तेमाल करते हैं, जो कि प्रत्येक नागरिक अभिनंदन में, एक पुराने और पिटे हुए रिवाज़ के चलते की जाती है।
"बड़े लोग कहाँ कुछ बताते हैं सर ! ये तो औरों को ही खोजना होता है... उनकी मूर्ति भी बन चुकी है..."
"बड़े लोग कहाँ कुछ बताते हैं सर ! ये तो औरों को ही खोजना होता है... उनकी मूर्ति भी बन चुकी है..."

Revision as of 15:28, 17 June 2012

50px|right|link=|

चमचारथी -आदित्य चौधरी


        छोटे शहरों की नालियाँ सूचना तंत्र का काम करती हैं। यदि किसी घर की नाली काफ़ी दिन से सूखी है तो चोरों को सूचना देती हैं कि इस घर में दो-चार दिन से कोई नहीं है। यदि बरसात में रुक गई हैं तो पर्यावरण वालों को सूचना देती हैं कि पॉलीथिन का इस्तेमाल, इस शहर में अभी तक जारी है। यदि नालियों के किनारे सफ़ेद चूने की लाइन बनी हों तो किसी वी.आई.पी के आने की सूचना देती हैं।
        सुबह उठे टहलने गए तो देखा चूना पड़ा था। सुबह-सुबह बिजली भी नहीं गई तो पक्का ही हो गया कि राजधानी से कोई वी.आई.पी. आने वाला है। ज़िला केन्द्र होने के कारण अधिकारियों ने वही सब करना शुरू कर दिया जो ऐसे मौक़े पर किया जाता है और विभिन्न लेखक और पत्रकार उसे अपने-अपने तरीक़े से लिखते हैं। एक अख़बार ने लिखा 'हड़कम्प मचा' दूसरे ने लिखा 'आपाधापी शुरू' तीसरे ने 'सरगर्मी चालू' चौथे ने 'मारा-मारी शुरू'... , और अधिकारी गण भी, बैठक, आदेश, निर्देश, समाचार, पत्राचार, अत्याचार के साथ-साथ भ्रष्टाचार में भी लग गए। 
इस तरह की आवाज़ों से शासकीय परिसर गूँजने लगे-border|right|300px
बड़े बाबू को बुलाओ...
तहसीलदार कहाँ है... 
हॅलीपॅड का 'H' कब बनेगा...
लेखपाल को भेजो...
प्रेस को संभालो...
धरने वालों को रोको…
        पुलिस कप्तान थानों की परफ़ॉरमेंस रिपोर्ट सुधरवाने लगे-
"तुम हरेक मर्डर को मर्डर ही मान लेते हो... लोग आत्महत्या नहीं करते क्या तुम्हारे थाने में... अब सिर्फ़ आत्महत्या होनी चाहिए तुम्हारे थाने में समझे ?" एक दरोग़ा को हड़काया गया।
"तुम्हारे थाने में, जिसे देखो वो ही लुट रहा है ... ? अरे सारी डक़ैती अपने यहाँ ही डलवाके मानेगा क्या ?...अरे !... चोरी होती है... राहज़नी होती है... सारे क्राइम का ठेका लेकर बैठ गए हो तुम... अब सोच समझ कर ऐफ़.आई.आर लिखना... आया कुछ खोपड़ी में ?" दूसरे दरोग़ा को समझाया गया। इसी तरह क्राइम कन्ट्रोल मीटिंग भी हो गई।  
        ज़िलाधिकारी निवास पर छाँट-छाँट कर वे अधिकारी बुला लिए गए जो विकास-कार्य 'करने' में नहीं बल्कि विकास-कार्य 'दिखाने' में गोल्ड मॅडल ले चुके थे। ये अधिकारी और कर्मचारी इतनी सधी हुई प्रतिभा के साथ  चमचागिरी कर सकने में समर्थ थे कि वी.आई.पी को दौरा करके लौट जाने के बाद ही पता चलता था कि उसके साथ क्या हुआ। ये चमचागिरी में महारथ हासिल करके 'चमचारथी' बन जाते हैं। चापलूसी की ऐसी-ऐसी 'अदाएँ' इन्होंने सीख रखी थीं कि जिनका ज़िक्र कर पाना बड़ा मुश्किल है जैसे कि-
सर ! मेरा बेटा आपका फ़ॅन है, ऑटो-ग्राफ़ लेने आया है...
सर ! इनसे मिलिए, ये क्षेत्र के माने हुए ज्योतिषी हैं... सिद्ध पुरुष हैं...
सर ! हम लोगों को तो अब आप जैसे ख़ानदानी लोग ही रिकगनाइज़ करते हैं...
सर ! मेरे साले की सुसराल आपकी कॉन्सटेन्सी में पड़ती है... 10 हज़ार वोट को इफ़ेक्ट करते हैं...
सर ! आपका माइंड तो कंप्यूटर की तरह है... एक्सट्राऑरडिनरी मॅमोरी है सर आपकी...
... न जाने ऐसे कितने हथकण्डे हैं जो अपनाए जाते हैं...
        "बड़े बाबू ! उस ठेकेदार को बुलाओ... रात-रात में रोड कम्पलीट होनी है... वी.आई.वी को खाटेसुरी बाबा के यहाँ भी जाना है... वहाँ की रोड बनवाने के लिए ही तो वी.आई.पी को वहाँ बुलाया जा रहा है... सी.डी.ओ कहाँ है ?" जब वी.आई.पी. के आने की भी सूचना मिली तो ज़िलाधिकारी तुरंत ही आदेश जारी करने के विश्व-कीर्तिमान बनाने में जुट गए।
अधिकारी और कर्मचारी सब कुछ 'ठीक-ठाक' करने में जुट गए। पत्रकार 'सॅट' कर दिए गए। धरने प्रदर्शन करने वाले महारथियों को 'संतुष्ट' कर दिया गया। शासक पार्टी के अध्यक्ष का भतीजा 'ऐडहॉक नियुक्ति' पा गया। महिला-समाज प्रतिनिधि मंडल सज-सँवर कर तैयार हो गया। 
वंदनवार और स्वागतद्वार सजने लगे, माला और हार बनने लगे और अधिकारियों के साथ-साथ ठेकेदार भी सहमने लगे... फिर  वी.आई.पी आ गए... 
"सर एक डेलीगेशन आपसे मिलना चाहता है।" वी.आई.पी. के सचिव ने पूछा
"बुलाओ" वी.आई.पी. ने सचिव से कहा
"नमस्कार सर ! सर ! हम आपके दादाजी पर रिसर्च कर रहे हैं रिसर्च पूरी हो चुकी है... 
"अच्छा ? क्या रिसर्च की है आपने ?"
"सर आपके दादा जी एक महान समाज सेवी, दार्शनिक, विचारक थे। सादा जीवन उच्च विचार उनका मूल मंत्र था। बहुत महान व्यक्तित्व था उनका सर !"
"लेकिन मेरे मदर-फ़ादर ने कभी बताया नहीं दादाजी के बारे में...लगता है आपने काफ़ी रिसर्च की है, दादाजी पर" वी.आई.पी. के चेहरे पर मासूमियत का वह भाव था
जो कि नागरिक अभिनंदन के समय 'अभिनंदित' होने वाले 'नागरिक महोदय', अपनी उस प्रशंसा के समय इस्तेमाल करते हैं, जो कि प्रत्येक नागरिक अभिनंदन में, एक पुराने और पिटे हुए रिवाज़ के चलते की जाती है।
"बड़े लोग कहाँ कुछ बताते हैं सर ! ये तो औरों को ही खोजना होता है... उनकी मूर्ति भी बन चुकी है..."
"मूर्ति ? लेकिन उनका फ़ोटो या तस्वीर कहाँ से मिली आपको ? मैंने कभी देखी नहीं !" वी.आई.पी. ने आश्चर्य से पूछा
"सर बड़े समाजसेवी तो सब एक जैसे ही होते हैं... सिर पर टोपी... चश्मा... छड़ी... कुर्ता-धोती... मूछें... और शक्ल का क्या है... वो तो कोई ख़ास बात नहीं है सर! असली बात तो ये है कि उनकी मूर्ति लगने से लोगों को कितनी प्रेरणा मिलेगी..." उस प्रतिनिधि मंडल के सबसे समझदार सदस्य ने समझाया।
"अच्छा-अच्छा... ठीक है। तो अब तो सब कुछ तैयार है... मूर्ति लगा दीजिए... अब देर किस बात की ?"
"सर वो बात ये है कि..."
"हाँ-हाँ बोलिए क्या बात है ?"
"सर आपके दादा जी का नाम नहीं मालूम हम लोगों को..." 
"हमारे दादा जी का नाम... लेकिन उनका नाम तो हमें भी नहीं मालूम... अरे भई क्या था हमारे दादा जी का नाम ?" वी.आई.पी ने सचिव से पूछा।
"अभी पता लगाते हैं सर !" सचिव ने सकपका कर कहा।
        इस समस्या के समाधान में तमाम अधिकारी लग गए। क्योंकि किसी को वी.आई.पी. के दादाजी तो क्या पिताजी का नाम भी मालूम नहीं था तो पहले उनके पिताजी का नाम खोजा गया फिर एक नाम ऐसा 'बनाया' गया जो कि 'फ़िट' बैठता हो और वी.आई.पी को बता दिया गया। इसके बाद दादाजी के नाम पर स्कूल कॉलेज खुलने लगे। समाचार छपने लगे। मूर्तियाँ लगने लगीं और भी बहुत कुछ होने लगा जो कि होता है। 
आइए इन मूर्तियों के अनावरण से चलें वापस...
        इस दुनियाँ में कोई ऐसा नहीं है जिसे अपनी प्रशंसा अच्छी न लगती हो। अपनी प्रशंसा से सभी प्रसन्न होते हैं लेकिन अपनी चापलूसी से केवल मंदबुद्धि और अहंकारी व्यक्ति ही प्रसन्न होते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति चापलूसी से प्रसन्न होने के बजाय अप्रसन्न हो जाता है। देखना यह है कि इन दोनों बातों मे अंतर क्या है... प्रशंसा क्या है और चापलूसी क्या है ?
आपको मिलने वाला सम्मान या प्रशंसा यदि इस कारण है कि-
आप पैसे वाले हैं
आप उम्र में बड़े हैं
आप रिश्ते में बड़े हैं
आप रूपवान हैं
आपके पास किसी संस्था का कोई पद है 
आदि-आदि
... तो समझ लीजिए कि अभी तक आपने कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया है। ये सभी सम्मान या तो झूठे हैं या अस्थाई। इन कारणों से होने वाली प्रशंसा में झूठ का तड़का भी होगा। जैसे ही प्रशंसा में झूठ का तड़का लगता है, वह चापलूसी बन जाती है। पैसा, पद, सौन्दर्य या आयु के कारण मिलने वाला सम्मान अर्थहीन है।
विद्वता, सृजन-शीलता, सहज-स्वभाव, साहस, त्याग, साधना, कर्मठता, सेवा आदि जैसे कारणों से मिलने वाला सम्मान सच्चा सम्मान होता है और इन गुणों की प्रशंसा वास्तविक होती है नक़ली या चापलूसी नहीं। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप सम्मानित हो रहे हैं, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आप क्यों सम्मानित हो रहे हैं और कौन कर रहा है। आपकी प्रशंसा किसने और क्यों की, यह बात महत्व रखती है।
ऍम.ऍस. सुब्बालक्ष्मी के गायन का कार्यक्रम था। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी थे। जब नेहरू जी के दो शब्द कहने का समय आया तो वे बोले-
"Who am I, a mere Prime Minister before a Queen, a Queen of Music" (मैं एक साधारण सा प्रधानमंत्री एक साम्राज्ञी के सामने क्या हूँ और साम्राज्ञी भी संगीत की...)


इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और...
-आदित्य चौधरी
प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक

सम्पादकीय विषय सूची
अतिथि रचनाकार 'चित्रा देसाई' की कविता सम्पादकीय आदित्य चौधरी की कविता