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{{:यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी' -आदित्य चौधरी}} | {{:यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी' -आदित्य चौधरी}} | ||
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| | | <center>भारतकोश पर अतिथि रचनाकार<br />'श्रीमती चित्रा देसाई' की एक कविता</center> | ||
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[छोटी थी -चित्रा देसाई|छोटी थी]] <small>-[[छोटी थी -चित्रा देसाई|चित्रा देसाई]]</small></font></div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[छोटी थी -चित्रा देसाई|छोटी थी]] <small>-[[छोटी थी -चित्रा देसाई|चित्रा देसाई]]</small></font></div> | ||
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आज पूरे ज़िद्दी बन जाऐं। | आज पूरे ज़िद्दी बन जाऐं। | ||
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<center>भारतकोश प्रशासक<br />'श्री आदित्य चौधरी' की एक कविता</center> | {| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;" | ||
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| <center>भारतकोश प्रशासक<br />'श्री आदित्य चौधरी' की एक कविता</center> | |||
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ -आदित्य चौधरी|कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ]] <small>-[[कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ -आदित्य चौधरी|आदित्य चौधरी]]</small></font></div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ -आदित्य चौधरी|कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ]] <small>-[[कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ -आदित्य चौधरी|आदित्य चौधरी]]</small></font></div> | ||
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Revision as of 10:56, 18 January 2013
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सम्पादकीय
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी' -आदित्य चौधरी यमलोक में यमराज अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। चित्रगुप्त अपने बही खाते से अपरिमित ब्रह्माण्ड में व्याप्त 84 लाख योनियों का असंख्य-असंख्य युगों, चतुर्युगों और मंवंतरों का लेखा-जोखा देख रहे हैं। किसने क्या कर्म किए और वे कैसे थे, किसे स्वर्ग दें किसे नर्क, किसे मोक्ष मिले और किसे पशु योनि। यह सब चल ही रहा था कि सचिव ने घोषणा की-
यदि इस प्रकार की व्यवस्था हो सके तो सुधार संभव है वरना तो सब बेकार की बातें हैं।..." |
कविताएँ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह व्यवस्था बड़े शहरों के लिए ही होगी इस कड़े में यह व्यवस्था होती है कि जैसे ही इस कड़े पर दवाब बढ़ता है या इसे खोला जाता है इसकी सूचना निकटतम पुलिस तंत्र को मिल जाती है और पुलिस वहाँ पहुंच जाती है। इसके बटन को दबाने से ही पुलिस को बुलाया जा सकता है।