शौनक ऋषि: Difference between revisions

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*शौनक ऋषि के यज्ञ में उग्रश्रवा ने [[महाभारत]] की कथा सुनायी थी।
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*कुछ [[ग्रंथ]] भी शौनक ऋषि द्वारा रचित किये गए थे।([[महाभारत]], [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 1,19; [[अनुशासनपर्व महाभारत|अनुशासनपर्व]] 30.65)
*कुछ [[ग्रंथ]] भी शौनक ऋषि द्वारा रचित किये गए थे।<ref>[[महाभारत]], [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 1,19; [[अनुशासनपर्व महाभारत|अनुशासनपर्व]] 30.65</ref>
*वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व [[संस्कार|संस्कारों]] को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला था। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।<ref>{{cite web |url= http://oyepages.com/blog/view/id/516e5d94bc54b2e20f00001e/context/BP|title= ऋषियों के आविष्कार तथा उनकी महानता|accessmonthday= 15 नवम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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शौनक ऋषि भृगुवंशी शुनक ऋषि के पुत्र थे। ये प्रसिद्ध वैदिक आचार्य थे। नैमिषारण्य में इन्होंने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था, जो बारह वर्षों तक चलता रहा था।[1]

  • शौनक ऋषि के यज्ञ में उग्रश्रवा ने महाभारत की कथा सुनायी थी।
  • कुछ ग्रंथ भी शौनक ऋषि द्वारा रचित किये गए थे।[2]
  • वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला था। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संपादन: राणा प्रसाद शर्मा |पृष्ठ संख्या: 501 |
  2. महाभारत, आदिपर्व 1,19; अनुशासनपर्व 30.65
  3. ऋषियों के आविष्कार तथा उनकी महानता (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 15 नवम्बर, 2013।

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