मर गए होते -आदित्य चौधरी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 12: Line 12:
मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते
मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते
जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते
जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते
मालूम गर ये होता बुरा मानते हो तुम
मालूम गर ये होता बुरा मानते हो तुम
इतने तो शर्मदार हैं, क्यों घर गए होते
इतने तो शर्मदार हैं, क्यों घर गए होते
Line 17: Line 18:
इक दोस्ती का वास्ता तुमसे नहीं रहा
इक दोस्ती का वास्ता तुमसे नहीं रहा
पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते
पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते
उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार<ref>मुफ़लिसी = दरिद्रता, ग़रीबी, फ़कीरी</ref>
उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार<ref>मुफ़लिसी = दरिद्रता, ग़रीबी, फ़कीरी</ref>
आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते<ref>आसाइश = सुख, चैन, आराम, समृद्धि, खुशहाली</ref><ref>बज़्म = सभा, महफिल</ref>
आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते<ref>आसाइश = सुख, चैन, आराम, समृद्धि, खुशहाली</ref><ref>बज़्म = सभा, महफिल</ref>
Line 22: Line 24:
हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले
हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले
इक रोज़ ख़त्म करते हैं, वो कर गए होते   
इक रोज़ ख़त्म करते हैं, वो कर गए होते   
माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम<ref>माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित</ref>
माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम<ref>माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित</ref>
कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते<ref>पास = रक्षा, हिफ़ाज़त, निगरानी, लिहाज़</ref>
कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते<ref>पास = रक्षा, हिफ़ाज़त, निगरानी, लिहाज़</ref>
Line 27: Line 30:
पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे   
पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे   
अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते<ref>तौर = शैली, आचरण, व्यवहार, रंगढंग </ref>
अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते<ref>तौर = शैली, आचरण, व्यवहार, रंगढंग </ref>
'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार<ref>मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला</ref><ref>रहमत = दया, कृपा, करुणा, तरस</ref>
'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार<ref>मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला</ref><ref>रहमत = दया, कृपा, करुणा, तरस</ref>
ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना, किसी बात का करने या न करने का हुक्म देना</ref>  
ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना, किसी बात का करने या न करने का हुक्म देना</ref>  

Revision as of 07:05, 16 January 2014

50px|right|link=|

मर गए होते -आदित्य चौधरी

मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते
जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते

मालूम गर ये होता बुरा मानते हो तुम
इतने तो शर्मदार हैं, क्यों घर गए होते

इक दोस्ती का वास्ता तुमसे नहीं रहा
पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते

उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार[1]
आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते[2][3]

हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले
इक रोज़ ख़त्म करते हैं, वो कर गए होते   

माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम[4]
कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते[5]

पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे   
अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते[6]

'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार[7][8]
ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते[9]  


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुफ़लिसी = दरिद्रता, ग़रीबी, फ़कीरी
  2. आसाइश = सुख, चैन, आराम, समृद्धि, खुशहाली
  3. बज़्म = सभा, महफिल
  4. माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित
  5. पास = रक्षा, हिफ़ाज़त, निगरानी, लिहाज़
  6. तौर = शैली, आचरण, व्यवहार, रंगढंग
  7. मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला
  8. रहमत = दया, कृपा, करुणा, तरस
  9. ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना, किसी बात का करने या न करने का हुक्म देना