अभिनन्दननाथ: Difference between revisions
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Revision as of 13:41, 21 March 2014
अभिनन्दननाथ जैन धर्म के चतुर्थ तीर्थंकर थे। अभिनन्दननाथ स्वामी का जन्म इक्ष्वाकु वंश में माघ शुक्ल की द्वितीया को पुनर्वसु नक्षत्र में पावन नगरी अयोध्या में हुआ था। इनकी माता का नाम 'सिद्धार्था देवी' और पिता का नाम राजा संवर था। इनका वर्ण सुवर्ण और चिह्न बन्दर था। इनके यक्ष का नाम यक्षेश्वर, जबकि यक्षिणी का नाम व्रजशृंखला था।
- जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान अभिनन्दननाथ स्वामी के गणधरों की संख्या 116 थी।
- इन गणधरों में वज्रनाभ स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
- अभिनन्दननाथ को दीक्षा की प्राप्ति अयोध्या में ही माघ शुक्ल द्वादशी को हुई थी।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद इन्होंने खीर से प्रथम पारणा किया था।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् कठोर तप करने के बाद अभिनन्दननाथ को पौष शुक्ल चतुर्दशी को पावन नगरी अयोध्या में देवदार वृक्ष के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
- जैनियों के मतानुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को सम्मेद शिखर पर भगवान अभिनन्दननाथ निर्वाण को प्राप्त हुए।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री अभिनन्दन जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2012।
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