अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान, टोंक: Difference between revisions
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अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान, टोंक
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विवरण | 'अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान' कई प्रकार के ऐतिहासिक दस्तावेजों तथा सामग्रियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ मात्र भारत ही नहीं, अपितु विदेशों से भी छात्र शोध के लिये आते हैं। |
राज्य | राजस्थान |
नगर | टोंक |
स्थापना | 4 दिसम्बर, 1978 |
प्रसिद्धि | संस्थान में टोंक के नवाबों द्वारा संग्रहीत हस्त लिखित ग्रंथों, भाषायी साहित्य तथा शासकीय रिकॉर्ड में पाये गए उर्दू, फ़ारसी पुस्तकें व दस्तावेज आदि संग्रहीत हैं। |
संबंधित लेख | राजस्थान अभिलेखागार, राजस्थान का इतिहास |
विशेष | इस शोध संस्थान' में अमरीका, फ़्राँस, इटली, कनाडा, अफ़्रीका, अफ़ग़ानिस्तान, बेल्जियम, इजरायल, जापान, ऑस्ट्रिया, जर्मनी सहित करीब 50 से अधिक देशों के शोधार्थी शोध के लिए आ चुके हैं। |
अन्य जानकारी | भारत के इतिहास को समझने के लिए संस्थान में ऐसी सामग्री मौजूद हैं, जो और कहीं नहीं मिलती। वर्तमान में संस्थान में हस्तलिखित करीब 8513 ग्रंथ, 31432 पुस्तकें, 17701 जनरल पत्रिकाएं आदि संग्रहीत हैं। |
अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान टोंक ज़िला, राजस्थान में स्थित है। राजस्थान सरकार ने वर्ष 1978 में इस शोध संस्थान की स्थापना की थी। इस संस्थान में टोंक के नवाबों द्वारा संग्रहीत हस्त लिखित ग्रंथों, दस्तावेज भाषायी साहित्य तथा शासकीय रिकॉर्ड में पाये गए उर्दू, फ़ारसी पुस्तकें व दस्तावेज संग्रहीत हैं। यहाँ पर मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब द्वारा लिखित 'आलमगिरी क़ुरान शरीफ़' तथा बादशाह शाहजहाँ द्वारा तैयार कराई गई ‘कुरान-ए-कमाल’ रखी गई है। अलगरीबेन पाण्डुलिपि में क़ुरआन के कठिन शब्दों की व्याख्या की गई है। इसे 900 वर्ष पूर्व मिस्र में मोहम्मद बिन अब्दुल्ला ने तैयार किया था।[1]
इतिहास
सन 1867 ई. के दौरान टोंक के तीसरे नवाब मोहम्मद अली ख़ाँ ने बनारस में अपनी नज़र क़ैद के दौरान अदीबों से पुस्तकें लिखवाने का कार्य करवाया। नवाब साहब ने पश्चिम एशिया के मुल्कों, ईरान, इराक, मिस्र, अरब सल्तनतों, देश के विभिन्न शहरों से समय-समय पर विद्वानों को बुलवाया और किताबों, धार्मिक ऐतिहासिक पुस्तकों के लेखन एवं अनुवाद करवाए तथा कई पुस्तकों को संग्रहित किया। उस संग्रह को उनके पुत्र रहीम ख़ाँ टोंक ले आए। 4 दिसम्बर, 1978 को राज्य सरकार के निर्णयानुसार 'अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान' की स्थापना हुई। वहाँ उक्त संग्रह आदि रखे गए। इसकी स्थापना में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत व संस्थापक निदेशक साहबजादा शोकत अली ख़ाँ का अहम योगदान रहा।[2]
संग्रह व पुस्तकें
यहाँ की दुर्लभ पांडुलिपियों में क़ुरआन की लेखनी के कई रूप देखने को मिलते हैं। इसमें 900 वर्ष पुरानी पुस्तक (शब्द कोष), जिसे काफ़ी परिश्रम के बाद तैयार किया था, वह भी मौजूद है। दुर्लभ ग्रंथ 'जादुल मसीरञ्ज' अनेक राजा महाराजा और नवाबों के हाथों से गुजरने के बाद इस संस्थान की शोभा है। 'तारीख़-ए-ताजगंज', जिसमें विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के निर्माण का विस्तृत ब्यौरा है। सन 1696 में लिखी गई तारीखी पुस्तक में जयपुर, उदयपुर तथा कोटा, बूँदी राज्यों के बारे में ऐतिहासिक संदर्भ सामग्री भरी पड़ी है। इसी प्रकार 'तवारीखी इबारनामे' में जैसे 'अकबरनामा', 'जहाँगीरनामा', 'अमीरनामा', 'तारीखें किला रणथंभोर', 'अखलाक-ए-मोहम्मदी' सहित 'रामायण', 'महाभारत' तथा 'गीता' जैसे धार्मिक ग्रंथों के फ़ारसी, अरबी अनुवाद की प्रतिलिपियां भी हैं। भारत के इतिहास को समझने के लिए यहाँ पर ऐसी सामग्री मौजूद है, जो और कहीं नहीं मिलती। वर्तमान में संस्थान में हस्तलिखित करीब 8513 ग्रंथ, 31432 पुस्तकें, 17701 जनरल पत्रिकाएं, 719 फ़रमान, 65000 शराशरीफ के रिकार्ड के दस्तावेज, 9699 मेन्यू स्क्रिप्ट्स, 65032 बैतुल हिकमत व 50647 प्रिंटेड पुस्तकें संग्रहित हैं।
शोधार्थी
साहित्यकारों की तीर्थ स्थली के रूप में भी अपनी पहचान रखने वाले 'अरबी-फ़ारसी शोध संस्थान' में अब तक अमरीका, फ़्राँस, इटली, कनाडा, अफ़्रीका, अफ़ग़ानिस्तान, बेल्जियम, इजरायल, जापान, ऑस्ट्रिया, जर्मनी सहित करीब 50 से अधिक देशों के शोधार्थी शोध के लिए यहां आ चुके हैं। साथ ही देश के कई विद्वानों ने भी यहां से शोध कर नाम रोशन किया है। अब भी यहां पर देश-विदेश के कई शोधार्थी आते हैं।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ धरोहर राजस्थान सामान्य ज्ञान |लेखक: कुँवर कनक सिंह राव |प्रकाशक: पिंक सिटी पब्लिशर्स, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: डी-50 |
- ↑ 2.0 2.1 विश्व प्रसिद्ध अरबी फारसी शोध संस्थान टोंक (हिन्दी) लैंगुऐज एजुकेशन। अभिगमन तिथि: 23 अगस्त, 2014।
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