महेन्द्र सिंह धोनी: Difference between revisions

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Revision as of 06:31, 7 July 2017

महेन्द्र सिंह धोनी
व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम महेन्द्र सिंह धोनी
अन्य नाम माही, एम.एस., एम.एस.डी
जन्म 7 जुलाई, 1981
जन्म भूमि रांची, बिहार (अब झारखंड)
ऊँचाई 5' 9"
अभिभावक पिता- श्री पानसिंह व माता- श्रीमती देवकी देवी
पत्नी साक्षी धोनी
खेल परिचय
बल्लेबाज़ी शैली दाएँ हाथ के बल्लेबाज़
गेंदबाज़ी शैली दाएँ हाथ के मध्यम तेज
टीम भारत, चेन्नई सुपरकिंग्स, बिहार, झारखण्ड
भूमिका विकेटकीपर, बल्लेबाज
पहला टेस्ट 2-6 दिसम्बर, 2005 विरुद्ध श्रीलंका
पहला वनडे 23 दिसम्बर, 2004 में बांग्लादेश के विरुद्ध
कैरियर आँकड़े
प्रारूप टेस्ट क्रिकेट एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय टी-20 अन्तर्राष्ट्रीय
मुक़ाबले 90 296 76
बनाये गये रन 4876 9496 1209
बल्लेबाज़ी औसत 38.09 51.32 36.63
100/50 6/33 10/64 0/1
सर्वोच्च स्कोर 224 183 नाबाद 56
फेंकी गई गेंदें 96 36 -
विकेट - 1 -
गेंदबाज़ी औसत - 31.00 -
पारी में 5 विकेट - - -
मुक़ाबले में 10 विकेट - - -
सर्वोच्च गेंदबाज़ी - 1/14 -
कैच/स्टम्पिंग 226/37 224/80 25/11
अन्य जानकारी महेन्द्र सिंह धोनी भारत को दो क्रिकेट विश्व कप[1] जिताने वाले पहले कप्तान हैं। भारत सरकार ने उन्हें 2007-08 के लिए राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और पद्म श्री से सम्मानित किया है।
बाहरी कड़ियाँ क्रिकइंफो
अद्यतन

महेन्द्र सिंह धोनी (अंग्रेज़ी:Mahendra Singh Dhoni, जन्म:7 जुलाई, 1981 रांची) भारतीय क्रिकेट टीम के नियमित कप्तान एवं विकेटकीपर बल्लेबाज़ हैं। जिनकी कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में नंबर एक का ताज हासिल कर चुकी है। पहले उन्होंने टी-ट्वेंटी विश्वकप 2007 में भारत को जीत हासिल करवाई फिर टेस्ट और एकदिवसीय में भी भारत को नंबर एक तक पहुंचाया। सूझबूझ भरी कप्तानी, मैदान पर शांत रवैया और किसी भी तरह की जोखिम लेने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले कप्तान धोनी युवाओं में एक आदर्श के रुप में देखे जाते हैं।

जीवन परिचय

महेन्द्र सिंह धोनी का जन्म बिहार (अब झारखंड) के रांची में 7 जुलाई, 1981 में हुआ। उनके पिता का नाम पानसिंह व माता का नाम देवकी देवी है। उनका पैतृक गांव उत्तराखंड में है लेकिन बाद में उनके पिता रांची बस गए थे। धोनी के भाई का नाम नरेन्द्र और बहन का नाम जयंती है। धोनी की पत्नी का नाम साक्षी है।

आरंभिक जीवन

अपने शुरुआती दिनों में धोनी लंबे-लंबे बाल रखते थे। धोनी को तेज रफ्तार बाइक और कारों का शौक़ है। आज भी जब कभी धोनी को वक्त मिलता है तो वह अपनी पसंदीदा बाइक पर रांची के चक्कर लगाते हैं। रांची के डीएवी जवाहर विद्या मंदिर, श्यामली से पढ़ाई पूरी करने के साथ धोनी ने खेलों में भी सक्रिय रुप से हिस्सा लेना शुरु कर दिया। उन्हें पहले फुटबॉल का बहुत शौक़ था और वह अपनी फुटबॉल टीम के गोलकीपर थे। ज़िला स्तर पर खेलते हुए उनके कोच ने उन्हें क्रिकेट खेलने की सलाह दी। यह सलाह धोनी के लिए इतनी फायदेमंद साबित हुई कि वह भारतीय क्रिकेट टीम से सबसे कामयाब कप्तान बन चुके हैं। शुरू में वह अपने क्रिकेट से ज़्यादा अपनी विकेटकीपिंग के लिए सराहे जाते थे लेकिन वक्त के साथ साथ उन्होंने बल्ले से भी तूफान लाने शुरू कर दिए और एक विस्फोटक बल्लेबाज के रुप में उभरकर सामने आए। वे दाएं हाथ के बल्लेबाज है। इसके अलावा वे एक विशेषज्ञ विकेटकीपर भी है। उनकी गिनती सबसे सफल भारतीय कप्तान के रूप में की जाती है।

खेल जीवन

दसवीं कक्षा से ही क्रिकेट खेलने वाले धोनी बिहार अंडर 19 की टीम से भी खेल चुके हैं। 1998-1999 के दौरान कूच बेहार ट्रॉफी से धोनी के क्रिकेट को पहली बार पहचान मिली। इस टूर्नामेंट में धोनी ने 9 मैचों में 488 रन बनाए और 7 स्टपिंग भी कीं। इसी प्रदर्शन के बाद उन्हें साल 2000 में पहली बार रणजी में खेलने का मौका मिला। 18 साल के धोनी ने बिहार की टीम से रणजी में प्रदार्पण किया। रणजी में खेलते हुए 2003-04 में कड़ी मेहनत के कारण धोनी को जिम्बॉब्वे और केन्या दौरे के लिए भारतीय ‘ए’ टीम में चुना गया। जिम्बॉब्वे– 11 के ख़िलाफ़ उन्होंने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 7 कैच व 4 स्टंपिंग की। इस दौरे पर धोनी ने 7 मैचों में 362 रन भी बनाए।

राष्ट्रीय टीम में चयन

जिम्बॉब्वे के दौर पर उनकी कामयाबी को देखते हुए तत्कालीन क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली ने उन्हें टीम में लेने की सलाह दी। साल 2004 में धोनी को पहली बार भारतीय क्रिकेट टीम में जगह मिली। हालांकि वह अपने पहले मैच में कोई ख़ास प्रभाव नहीं डाल सके और शून्य के स्कोर पर रन आउट हो गए। इसके बाद धोनी को कई अहम मुकाबलों में मौका दिया गया लेकिन उनका बल्ला हमेशा शांत ही रहा। लेकिन 2005 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ खेलते हुए धोनी ने 123 गेंदों पर 148 रनों की ऐसी तूफानी पारी खेली कि सभी इस खिलाड़ी के मुरीद बन गए। और इसके कुछ ही दिनों बाद श्रीलंका के ख़िलाफ़ खेलते हुए धोनी ने ऐसा करिश्मा किया कि विश्व के सभी विस्फोटक बल्लेबाजों को अपनी गद्दी हिलती नजर आई। धोनी ने श्रीलंका के ख़िलाफ़ इस मैच में नंबर तीन पर बल्लेबाजी करते हुए 183 रनों की मैराथन पारी खेली जो किसी भी विकेटकीपर बल्लेबाज का अब तक का सर्वाधिक निजी स्कोर है। इस मैच के बाद से धोनी को ‘सिक्सर किंग’ के नाम से जाना जाने लगा। लोग उनसे हर मैच में छक्का लगाने की उम्मीद करने लगे। मैच को छक्का मार कर जीतना धोनी का स्टाइल बन गया। देखते ही देखते रांची का यह सितारा वनडे क्रिकेट का नंबर एक खिलाड़ी बन गया।

टी-ट्वेंटी विश्व कप (2007)

साल 2007 में भारतीय क्रिकेट टीम एकदिवसीय विश्व कप में बुरी तरह से हार गई। ऐसे में टी-ट्वेंटी की बागडोर धोनी के हाथों में दे दी गई। धोनी ने टी-ट्वेंटी विश्व कप में ऐसा जलवा बिखेरा कि देखने वाले देखते रह गए। फ़ाइनल मैच में धोनी की सूझबूझ ने भारत को टी-ट्वेंटी का चैंपियन बना दिया। क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में उन्होंने भारत को विश्व में नंबर एक के पायदान पर ला खड़ा किया। कहते हैं धोनी अगर मिट्टी को भी हाथ लगा दें तो वह सोना बन जाती है और ऐसा इसलिए क्योंकि वह जो भी दांव जिस भी खिलाड़ी पर खेलते हैं वह अधिकांशत सफल ही होता है फिर चाहे टी-ट्वेंटी 2007 के फ़ाइनल मैच में अंतिम ओवर जोगिंदर शर्मा से डलवाना हो या फिर क्रिकेट विश्व कप 2011 में फार्म से बाहर चल रहे युवराज सिंह को मौका देना या क्रिकेट विश्व कप 2011 के फ़ाइनल में खुद फार्म से बाहर होने के बावजूद नंबर तीन पर उतरना, धोनी का हर फैसला कामयाब साबित हुआ।

विश्व कप (2011)

साल 2011 में धोनी ने एकदिवसीय क्रिकेट विश्व कप के फाइनल मुकाबले में भी अपनी सूझबूझ भरी पारी से भारत को विश्व कप दिलाने में अहम भूमिका निभाई और भारत के एकमात्र ऐसे कप्तान बने जिसने भारत को दो बार अपनी कप्तानी में विजेता बनाया। धोनी ने आईपीएल में भी चेन्नई सुपरकिंग्स को जीत दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई। अपने फैसलों की वजह से मैदान पर वह सबसे चहेते क्रिकेटर बन चुके हैं।

विवाह

साल 2010 में धोनी ने अपने बचपन की दोस्त साक्षी से विवाह कर लिया। हमेशा विज्ञापनों में छाए रहने वाले धोनी अपनी निजी ज़िंदगी में कैमरे से दूर रहते हैं और इसका एक उदाहरण उनका विवाह भी है जिसमें उनके क़रीबी चाहने वाले लोग ही शामिल रहे।

उतार चढ़ाव

धोनी के खेल की जितना प्रशंसा हुई है उतनी ही उनकी आलोचना भी हुई है। कई लोग मानते हैं कि कप्तान बनने के बाद वह आक्रमक नहीं रहे। साथ ही उनकी विकेटकीपिंग पर भी कई बार सवाल खड़े हुए हैं। धोनी पर अपने चहेते साथी खिलाड़ियों को ज्यादा से ज्यादा मौके देने का भी आरोप लगता रहा है। मैदान पर बेहद शांत रहने वाले धोनी इस मामले में भी शांत रहते हैं और अपने आलोचकों का जवाब अपने प्रदर्शन से देते हैं। एक ऐसा समय भी था जब क्रिकेट प्रेमियों ने गुस्से में आकर महेन्द्र सिंह धोनी का घर तोड़ दिया था और धोनी ने कहा था कि जिन लोगों ने मेरा घर तोड़ा है एक दिन वही इस घर को बनाएंगे भी, और हुआ भी वही।

सम्मान और पुरस्कार

क्रिकेट में उनकी सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2007-08 के लिए राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और पद्म श्री से सम्मानित किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पहला विश्व कप- टी-ट्वेंटी 2007 में और दूसरा विश्व कप- एकदिवसीय 2011 में

बाहरी कड़ियाँ

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