अमजद ख़ान का प्रेम प्रसंग: Difference between revisions
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अनुशासन अभिनेता [[अमजद ख़ान]] का मूल मन्त्र था। इसलिए जब वह 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के अध्यक्ष बने तो उन्होंने पीत पत्रकारिता का सफाया करने का बीड़ा उठाया। कई बैठक करके अमजद ने सितारों के लिए पत्रकारों से मिलने की आचार संहिता भी तैयार की; परन्तु इससे पूर्व ही उनका निधन हो गया। फ़िल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में [[सत्यजीत रे|सत्यजीत रे]] जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्देशक के साथ काम करके अमजद ख़ान बहुत प्रसन्न एवं संतुष्ट थे। उन्हें बचपन से अंग्रेज़ी फ़िल्में देखने का जबर्दस्त शौक था। इन फ़िल्मों के लिए अमजद स्कूल से भाग जाया करत थे। उनके पिता जयंत को भी यह बात मालुम थी, परन्तु वह हमेशा यही कहते थे कि- "अमजद का असली स्कूल तो यही फ़िल्में हैं। उसे अभिनय इन्हीं फ़िल्मों से सीखना है। | अनुशासन अभिनेता [[अमजद ख़ान]] का मूल मन्त्र था। इसलिए जब वह 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के अध्यक्ष बने तो उन्होंने पीत पत्रकारिता का सफाया करने का बीड़ा उठाया। कई बैठक करके अमजद ने सितारों के लिए पत्रकारों से मिलने की आचार संहिता भी तैयार की; परन्तु इससे पूर्व ही उनका निधन हो गया। फ़िल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में [[सत्यजीत रे|सत्यजीत रे]] जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्देशक के साथ काम करके अमजद ख़ान बहुत प्रसन्न एवं संतुष्ट थे। उन्हें बचपन से अंग्रेज़ी फ़िल्में देखने का जबर्दस्त शौक था। इन फ़िल्मों के लिए अमजद स्कूल से भाग जाया करत थे। उनके पिता जयंत को भी यह बात मालुम थी, परन्तु वह हमेशा यही कहते थे कि- "अमजद का असली स्कूल तो यही फ़िल्में हैं। उसे अभिनय इन्हीं फ़िल्मों से सीखना है। | ||
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अमजद ख़ान का प्रेम प्रसंग
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पूरा नाम | अमजद ख़ान |
जन्म | 12 नवंबर, 1940 |
जन्म भूमि | पेशावर, भारत (आज़ादी से पूर्व) |
मृत्यु | 27 जुलाई, 1992 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
संतान | पुत्र- शादाब ख़ान, सीमाब ख़ान, पुत्री- एहलम ख़ान |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्म अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | शोले, 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला', 'कालिया' आदि। |
प्रसिद्धि | गब्बर सिंह का किरदार |
विशेष योगदान | अमजद ख़ान ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की भूमिका के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अमजद ख़ान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' से की थी। इस फ़िल्म में अमजद ख़ान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी थी। |
अनुशासन अभिनेता अमजद ख़ान का मूल मन्त्र था। इसलिए जब वह 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के अध्यक्ष बने तो उन्होंने पीत पत्रकारिता का सफाया करने का बीड़ा उठाया। कई बैठक करके अमजद ने सितारों के लिए पत्रकारों से मिलने की आचार संहिता भी तैयार की; परन्तु इससे पूर्व ही उनका निधन हो गया। फ़िल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में सत्यजीत रे जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्देशक के साथ काम करके अमजद ख़ान बहुत प्रसन्न एवं संतुष्ट थे। उन्हें बचपन से अंग्रेज़ी फ़िल्में देखने का जबर्दस्त शौक था। इन फ़िल्मों के लिए अमजद स्कूल से भाग जाया करत थे। उनके पिता जयंत को भी यह बात मालुम थी, परन्तु वह हमेशा यही कहते थे कि- "अमजद का असली स्कूल तो यही फ़िल्में हैं। उसे अभिनय इन्हीं फ़िल्मों से सीखना है।
प्रेम प्रसंग
यह बात कम लोगों को पता है कि अमजद ख़ान उस कल्पना अय्यर को प्यार करते थे, जिसने तमाम फ़िल्मों में बेबस-बेगुनाह नायिकाओं पर बेपनाह जुल्म ढाए। भारी डील-डौल वाले गोरे-चिट्टे अमजद और दुबली-पतली इकहरे बदन की सांवली कल्पना अय्यर में देखने-सुनने में खासा अंतर था, लेकिन दोनों में एक गुण समान था। दरअसल, दोनों रुपहले पर्दे पर भोले-भाले निर्दोष पात्रों पर बड़े जुल्म ढाते थे। ये दोनों लोगों की वाहवाही नहीं, हमेशा उनकी हाय बटोरते थे। अमजद ख़ान की प्रेमिका कल्पना मॉडल थीं और एक मॉडल की मंजिल फ़िल्में ही होती हैं। इसलिए कल्पना ने मशहूर कॉमेडियन आई.एस. जौहर की फ़िल्म 'द किस' में काम करके अपनी अभिनय-यात्रा आरंभ की।
गौरतलब है कि आई.एस. जौहर की यह फ़िल्म एक शॉर्ट फ़िल्म थी। जिस तरह अमजद या तो खलनायक के रोल में फ़िल्मों में आए या फिर कैरेक्टर रोल में, उसी तरह कल्पना भी कभी हीरोइन तो नहीं बनीं, लेकिन खलनायिका का रोल उन्होंने भी खूब किया। फ़िल्मों में डांस आइटम भी किए। कुल मिलाकर कल्पना ने भी ढेर सारी फ़िल्में कीं। अमजद और कल्पना की पहली मुलाकात एक स्टूडियो में हुई थी, जहां दोनों अलग-अलग फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। फिर परिचय प्यार में बदला। कल्पना जानती थीं कि अमजद शादीशुदा हैं। उनकी पत्नी शकीला हैं, जो मशहूर लेखक अख्तर-उल-ईमान की बेटी हैं और उनके बच्चे भी हैं। यदि कल्पना अमजद की बीवी बनने के लिए जिद करतीं, तो यह शादी हो जाती, क्योंकि अमजद मुसलमान थे और कानूनन वे चार बीवियां रख सकते थे। कल्पना तो दूसरी ही होतीं, लेकिन दोनों ने जानबूझकर ऐसा नहीं किया, क्योंकि अगर दोनों शादी करते, तो भले ही उसे कानूनी मान्यता मिल जाती, लेकिन अमजद के भरे-पूरे परिवार में तूफान उठ जाता।
जब तक अमजद ख़ान जीवित रहे, वे कल्पना के दोस्त और गाइड बने रहे। अमजद ख़ान चाय के बेहद शौकीन थे। दिन भर में पच्चीस-तीस कप, वह भी चीनी के साथ। उनके फैलते शरीर की वजह चीनी का अधिक इस्तेमाल ही था। कल्पना ने उनकी इस आदत पर कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन जब भी वे कहतीं, अमजद हंसी में बात उड़ा देते। जब अमजद का इंतकाल हुआ, तो कल्पना उनके घर गईं। कल्पना के कई शुभचिंतकों ने उनसे वहां न जाने की सलाह भी दी कि पता नहीं अमजद के परिवार वालों का क्या रवैया हो? कहीं वे उन्हें भीतर आने ही न दें, लेकिन कल्पना ने यह सलाह नहीं मानी। कल्पना जानती थीं कि वे अमजद की ब्याहता नहीं हैं, लेकिन वे एक बेवा की तरह शोक मनाने वहां गईं। अपने उस दोस्त को आखिरी सलाम करने गईं, जिसके साथ उनका बेनाम रिश्ता था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अमजद की प्रेम कहानी का अंत (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
- शोले में महान् जैसा अगर कुछ था तो सिर्फ अमजद ख़ान थे
- अमजद ख़ान-बॉलीवुड के गब्बर सिंह
- अमजद ख़ान धधकते शोलों से उपजा अमजद
- चिरस्मरणीय खलनायक अमजद ख़ान की जीवनी
- जानें कैसे अमजद खान बने गब्बर