अद्भुत रामायण: Difference between revisions
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Revision as of 07:44, 7 November 2017
अदभुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य विशेष है। इस ग्रन्थ के प्रणेता 'वाल्मीकि' थे। किन्तु ग्रन्थ की भाषा और रचना से ऐसा प्रतीत होता है कि किसी बहुत परवर्ती कवि ने 'अद्भुत रामायण' का प्रणयन किया था।
कथानक
इस ग्रन्थ का कथानक सचमुच अद्भुत है। राज्याभिषेक होने के उपरांत मुनिगण राम के शौर्य की प्रशस्ति गाने लगे तो सीता जी मुस्कुरा उठीं। सीता जी से हँसने का कारण पूछने पर उन्होंने श्रीराम को बताया कि आपने केवल 'दशानन' (रावण) का वध किया है, लेकिन उसी का भाई सहस्रानन अभी जीवित है। उसके पराभव के बाद ही आपकी शौर्य गाथा का औचित्य सिद्ध हो सकेगा। श्रीराम ने इस पर चतुरंग सेना सजाई और विभीषण, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान आदि के साथ समुद्र पार करके सहस्रस्कंध पर चढ़ाई की। सीता भी साथ थीं। परंतु युद्ध स्थल में सहस्रानन ने मात्र एक बाण से ही श्रीराम की समस्त सेना एवं वीरों को अयोध्या में फेंक दिया। रणभूमि में केवल श्रीराम और सीता रह गए। राम अचेत थे; सीता जी ने 'असिता' अर्थात् काली का रूप धारण कर सहस्रमुख का वध किया।[1]
अन्य ग्रंथों की रचना
हिन्दी में भी इस कथानक को लेकर कई काव्य ग्रंथों की रचना हुई है, जिनका नाम या तो 'अद्भुत रामायण' है या 'जानकीविजय'। 1773 ई. में पण्डित शिवप्रसाद ने, 1786 ई. में राम जी भट्ट ने, 18वीं शताब्दी में बेनीराम ने, 1800 ई. में भवानीलाल ने तथा 1834 ई. में नवलसिंह ने अलग-अलग 'अद्भुत रामायण' की रचना की। 1756 ई. में प्रसिद्ध कवि और 1834 ई. में बलदेवदास ने 'जानकीविजय' नाम से इस कथानक को अपनी-अपनी रचना का आधार बनाया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अदभुत रामायण (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 01 फ़रवरी, 2014।
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