कन्नड़ भाषा: Difference between revisions
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Revision as of 13:30, 14 September 2010
कन्नड़ भाषा कन्नड़ी भी कहलाती है। दक्षिण-पश्चिम भारत के कर्नाटक राज्य की राजभाषा, जो दक्षिण द्रविड़ शाखा से सम्बद्ध है और साहित्यिक परम्परा वाली चार प्रधान द्रविड़ भाषाओं में दूसरी सबसे प्राचीन भाषा है। हालमिदी स्थित पहला कन्नड़ अभिलेख 450 ई0 का है।
लिपि
कन्नड़ लिपि का विकास अशोक की ब्राह्मी लिपि के दक्षिणी प्रकारों से हुआ है और तेलुगु लिपि से इसका निकट सम्बन्ध है। इन दोनों की उत्पत्ति एक प्राचीन कन्नड़ लिपि (10वीं शताब्दी) से हुई है। इस भाषा के विकास में तीन ऐतिहासिक चरणों की पहचान की गई है।
- प्राचीन कन्नड़ (450-1200 ई0),
- मध्य कन्नड़ (1200-1700 ई0) और
- आधुनिक कन्नड़ (1700 ई0 से वर्तमान काल तक)।
व्याकरण
कन्नड़ मुख्यतः कर्नाटक और इसके पड़ोसी राज्यों में बोली जाती है। तुलु और काडगु बोलने वालों की यह दूसरी भाषा है। 1997 में कन्नड़भाषी लोगों की संख्या अनुमानतः चार करोड़ साठ लाख थी। वाक्य में शब्द क्रम कर्ता–कर्म–क्रिया का होता है, जैसा अन्य द्रविड़ भाषाओं में है। क्रियाओं को पुरुष, वचन और लिंग के आधार पर चिह्नित किया जाता है। इस भाषा में मूर्धन्य व्यंजन होते हैं, उदाहरण के लिए, ट, ड और न की ध्वनियों का उच्चारण तालु पर मुड़ी हुई जिह्वा के छोर की स्थिति से होता है। जो एक ख़ास द्रविड़ लक्षण है। सबसे प्राचीन उपलब्ध व्याकरण नागवर्मा (आरम्भिक 12वीं शताब्दी) का है। केशिराज (1260 ई0) के शब्द मणि दर्पण को अब भी सम्मान प्राप्त है।
सामान्य बोलचाल
कन्नड़ के तीन क्षेत्रीय प्रकारों की पहचान की जा सकती है, दक्षिणी (मैसूर), उत्तरी (धारवाड़) और तटीय (मंगलोर)। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक कारकों के आधार पर इस भाषा में बोलीगत भिन्नताएँ भी परिलक्षित होती हैं। इसी तरह से औपचारिक और सामान्य बोलचाल के प्रकार भी हैं। बंगलोर और मैसूर में बोली जाने वाली भाषा को उत्कृष्ट कोटि का माना जाता है।
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