चिल्ला जाड़ा -आदित्य चौधरी
'चिल्ला जाड़ा' -आदित्य चौधरी मकर संक्रांति निकल गयी, सर्दी कम होने के आसार थे, लेकिन हुई नहीं, होती भी कैसे 'चिल्ला जाड़े' जो चल रहे हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं- बाबरनामा मैंने क़रीब तीस साल पहले पढ़ा था और फिर दोबारा पढ़ा चार साल पहले...। बाबरनामा को विश्व की श्रेष्ठ आत्मकथाओं में गिना जाता है। यह बाबर की दैनन्दिनी (डायरी) जैसा है। पूरा तो उपलब्ध नहीं है पर जितना भी है, कमाल का है। लेकिन हाँ... बाबर ने भी कुछ ऐसे ही बचकाने शोध कर डाले हैं जैसे मैंने 'चिल्ला जाड़े' को लेकर किया। हिमालय की शिवालिक पहाड़ी श्रृंखला के लिए बाबर ने जो शिवालिक का उच्चारण सुना वह था 'सवालक'। बाबर ने जो हिसाब लगाया वह काफ़ी दिलचस्प था। तत्कालीन स्थानीय मान्यता के अनुसार हिमालय की सवालाख पहाड़ियाँ मानी जाती थीं उसने सोचा कि सवालाख को पंजाबी उच्चारण में 'सवालख्ख' या 'सवालक' कहते हैं इसलिए इन पहाड़ियों का नाम 'सवालक' होगा। -आदित्य चौधरी प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक |
टीका टिप्पणी और संदर्भ