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मंज़िलों की क़ैद से अब छूट भागे रास्ते है बक़ाया ज़िन्दगी आवारगी के वास्ते छोड़ कर रस्मो-रिवाज़ों की गली को आ गए अब हुआ हर शख़्स हाज़िर दोस्ती के वास्ते उसकी महफ़िल और उसके रंग से क्या साबिका अब हज़ारों मस्तियाँ हर बज़्म मेरे वास्ते ये सफ़र ताबीर है उन हसरतों के ख़ाब की जो कभी होती थीं तेरी सुह्बतों के वास्ते अब कोई आक़ा नियम क़ानून क्या बतलाएगा आँधियाँ भी रुक गईं हैं इस सबा के वास्ते माजरा ये देखकर अब दश्त भी हैरान है मंज़िलें चलने लगीं हैं क़ाफ़िलों के वास्ते मौत के आने से पहले एक लम्हा जी लिया कौन रगड़े एड़ियाँ अब ज़िन्दगी के वास्ते
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