धान

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:48, 14 September 2012 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''धान''' (अंग्रेज़ी : Paddy) सम्पूर्ण विश्व में पैदा होने ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

धान (अंग्रेज़ी : Paddy) सम्पूर्ण विश्व में पैदा होने वाली प्रमुख फ़सलों में से एक है। प्रमुख खाद्यान्न चावल इसी से प्राप्त होता है। धान भारत सहित एशिया और विश्व के अधिकांश देशों का मुख्य खाद्य है। मक्का के बाद धान की फ़सल ही मुख्य रूप से विश्व में बड़े पैमाने पर उत्पन्न की जाती है। किसी अन्य खाद्यान्न की अपेक्षा धान की खपत विश्व में सर्वाधिक है।

खेत तैयार करना

धान की खेती के लिए ग्रीष्म की जुताई करने के बाद 2-3 जुताइयाँ और करके खेत को तैयार करना चाहिए। इसके साथ ही मजबूत मेड़बन्‍दी भी होनी चाहिए, जिससे खेत में वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके। हरी खाद के रूप में यदि ढैचा या सनई का प्रयोग कर रहे हैं तो धान की बुवाई के समय ही फ़ॉस्फ़ोरस का प्रयोग भी कर लेना चाहिए। धान की रोपाई के लिए एक सप्ताह पूर्व ही खेत की सिंचाई कर दें, जिससे की खरपतवार न उगने पायें। इसके बाद रोपाई के समय खेत में पानी भर कर जुताई करना चाहिए।

बीज शोधन

धान की नर्सरी बनाने से पहले बीजों का भली प्रकार से शोधन अवश्य करें। इसके लिए जहाँ पर जीवाणु झुलसा या जीवाणुधारी रोग की समस्या हो, वहाँ 25 किग्रा. बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाक्लीन या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन को मिलाकर बीजों को पानी में रात भर भिगोकर रख देना चाहिए। अगले दिन बीजों को छाया में सुखाकर नर्सरी डालनी चाहिए। यदि शाकाणु झुलसा की समस्या क्षेत्रों में नहीं है तो 25 किग्रा. बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद अगले दिन निकालकर अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 8-10 लीटर पानी में घोलकर बीज मे मिला दें। इसके बाद बीजों को छाया में अंकुरित करके नर्सरी में डालें।

पौधों की रोपाई

पौधों को रोपने के लिए स्क्रपर की सहायता से पौधे इस प्रकार निकाले जायें, जिससे की छनी हुई मिट्टी की मोटाई तक का हिस्सा उठकर आये। इन पौधों को पैडी ट्रान्सप्लान्टर की ट्रे में रखें। मशीन में लगे हत्थे को जमीन की ओर हल्के झटके के साथ दबायें। ऐसा करने से ट्रे में रखी पौध की स्लाइस 6 पिकर काटकर 6 स्थानों पर खेत में लगा दें। इसके बाद हत्थे को अपनी ओर खींच कर पीछे की ओर कदम बढाकर मशीन को उतना खींचना चाहिए, जितना पौधे से पौधे की दूरी रखना चाहते हैं। सामान्यत: यह दूरी 10 सेमी. होनी चाहिए। फिर से हत्थे को जमीन की ओर हल्के झटके से दबाना चाहिए। इस प्रकार ही पौधों को रोपित करते जायें। पौधे रोपे जाने के बाद जो पौधे मर जायें, उनके स्थान पर जल्द ही दूसरे पौधों को लगा देना चाहिए, जिससे प्रति इकाई पौधों की संख्या कम न हो पाये। धान की अच्छी पैदावार के लिए उपज के प्रति वर्ग मीटर में 250 से 300 बालियाँ अवश्य होनी चाहिए।

सिंचाई

उत्तर प्रदेश में सिंचाई की क्षमता के अच्छे अवसर मौजूद हैं, फिर भी धान का लगभग 60-62 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचित है, जबकि धान की फ़सल के लिए सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। फ़सल की कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक किल्ले फूटने, बाली निकलने, फूल खिलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना चाहिए। फूल खिलने की अवस्था पौधे के लिए अति संवेदनशील होती है। परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है। इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5 से 7 सेमी. सिंचाई करना अच्छा रहता है। खेत में पानी रहने से फ़ॉस्फ़ोरस, लोहा तथा मैंगनीज आदि तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम उगते हैं।

रोग

धान की फ़सल को कई रोगों से हानि पहुँचती है, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-

  1. सफ़ेद रोग
  2. पत्तियों का भूरा रोग
  3. जीवाणु झुलसा रोग
  4. शीथ झुलसा रोग
  5. जीवाणुधारी रोग
  6. झोंका रोग

रोग से बचाव के उपाय

धान की फ़सल को प्रमुख रोगों के प्रभाव से बचाने के लिए निम्न उपाये अपनाये जा सकते हैं-

  1. गर्मी में गहरी जुताई एवं मेड़ों तथा खेत के आस-पास के क्षेत्र को खरपतवार से सदैव मुक्त रखना चाहिये।
  2. समय-समय पर रोग प्रतिरोध प्रजातियों के मानक बीजों की बुवाई करनी चाहिये।
  3. नर्सरी डालने से पहले क्षेत्र विशेष की समयानुसार बीज शोधन अवश्य कर लेना चाहिये।
  4. जीवाणु झुलसा की समस्या वाले क्षेत्रों में 25 किग्रा. बीज के लिए 38 ग्राम ई.एम.सी. तथा 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन को 45 लीटर पानी में रात भर भिगो दें। दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालें।
  5. तराई एवं पहाड़ी वाले क्षेत्रों में बीज को 3 ग्राम थाइरस, 1.5 ग्राम /कार्बेन्डाजिम मिश्रण से उपचारित करना चाहिये।
  6. नर्सरी, सीधी बुवाई अथवा रोपाई के बाद खैर रोग के लिए एक सुरक्षात्मक छिड़काव 5 किग्रा. ज़िंक सल्फ़ेट को 20 किग्रा. यूरिया और 1000 लीटर पानी में साथ मिलाकर प्रति हेक्टर की दर से हफ़्ते बाद छिड़काव करना चाहिये।
  7. बड़े क्षेत्र में रोग की महामारी से बचने के लिए एकाधिक प्रजातियों को लगाना चाहिए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः