कनक साहा

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कनक साहा (अंग्रेज़ी: Kanak Saha, जन्म- 4 फ़रवरी, 1977) खगोल भौतिकी तथा खगोल विज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान हैं। उन्होंने भारत की प्रथम वैधशाला एस्ट्रोसेट के माध्यम से हाई रेडशिफ्ट पर एक सबसे प्रारंभिक आकाशगंगा का पता लगाया है जिसकी दूरी धरती से 9.3 बिलियन प्रकाश वर्ष मानी जाती है। खगोल भौतिकी में कनक साहा के काम को एक बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। खगोल विज्ञान में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2021 में भारत का सर्वोच्च विज्ञान पुरस्कार 'शांतिस्वरूप भटनागर' प्रदान किया गया था। एक भारतीय खगोल भौतिक विज्ञानी के रूप में डॉ. कनक साहा का योगदान सराहनीय रहा है।

प्रारंभिक जीवन

कनक साहा का जन्म 4 फरवरी, 1977 को पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में हुआ था। उनको आकाश में तारे की देखने और उन्हें गिनने का शौक बचपन से ही था। पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में स्थित दिनहाटा नामक गाँव में एक सब्जी विक्रेता के घर पैदा हुए कनक साहा के बारें में किसी को पता नहीं था कि एक दिन वह एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन जायेंगे। अपने गाँव दिनहाटा के खुले आकाश में तारों को निहारना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। बचपन से उन्हें आकाश के तारे बहुत प्रभावित करते थे।

एक बार अपने टीचर के सहयोग से उन्हें दूरबीन से आकाशीय पिंड को स्पष्ट रूप से देखने का मौका मिला। तारे और ग्रह को इतना साफ देखना उनके जीवन का सबसे आकर्षक अनुभव साबित हुआ। तभी से उनके मन में खगोलशास्त्री बनने का बिचार आया। इस प्रकार कॉलेज में भी उन्होंने भौतिक विज्ञान को चुना ताकि उनका सपना पूरा हो सके। डॉ. साहा ने भौतिक विज्ञान में अपना स्नातक सन 1998 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज कोलकाता से पूरा किया। उसके बाद बनारस हिन्दी विश्वविद्यालय में नामांकन हुआ, जहाँ से उन्होंने 2001 में एम.एस.सी. की परीक्षा पास की। उन्होंने अपना पढ़ाई को जारी रखा तथा 2008 में अपनी पीएच.डी. भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलौर से पूरी की।

कार्य व उपलब्धियां

डॉ. कनक साहा ने प्रारंभिक ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं का निर्माण तथा उनके विकास के बारें में गहन शोध किया। उन्होंने अपनी टीम के साथ लगातार दो वर्षों तक कड़ी मेहनत की। आईयूसीएए में एस्ट्रोनॉमी के एसोसिएट प्रोफेसर कनक साहा के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने उस बक्त बड़ी सफलता हासिल की, जब उन्होंने अत्यंत ही प्रारम्भिक आकाशगंगा की खोज की। उन्होंने भारत की प्रसिद्ध वैधशाला एस्ट्रोसेट में काम करते हुए हाई रेडशिफ्ट पर एक प्रारंभीक आकाशगंगा को खोजने में सफलता प्राप्त की।

कनक साहा तथा उनकी अगुआई में गठित वैज्ञानिक के टीम के 2 साल के सतत मेहनत के बाद उन्हें इस आकाशगंगा के बारें में सफलता मिली। उनके इस कार्य का प्रसिद्ध नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में भी प्रकाशित की गई थी। डॉ कनक साहा के टीम में भारत के अलावा स्विट्जरलैंड, फ्रांस, अमेरिका, जापान और नीदरलैंड के वैज्ञानिक भी शामिल थे। कहा जाता है कि इस आकाशगंगा का पता 2016 में ही लग चुका था लेकिन डेटा का सावधानीपूर्वक विश्लेषण कर सटीक नतीजे पर पहुचने में करीब दो साल का वक्त लगा। उनके वैज्ञानिक अनुसंधान को देखते हुए भारत सरकार की इकाई वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया।

विदेश यात्रा

डॉ. कनक साहा ने अपने कॅरियर के दौरान अनेकों देश का दौरा किया। उन्होंने जिनेवा, म्यूनिख, बाल्टीमोर और ताइवान का दौरा कर वहाँ शोध किया। डॉ. कनक साहा जिस परिवेश से उठकर आज यहाँ तक पहुंचे, वह युवाओं के लिए प्रेरणादायक है।

पुरस्कार व सम्मान=

उन्हें सितंबर 2021 में भारत के विज्ञान का सबसे बड़े सम्मान 'शांतिस्वरूप भटनागर' से अलंकृत किया गया था। यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा उन्हें एक अलग तरह की आकाशगंगा की खोज के लिए प्रदान किया गया। इसके पहले फ़रवरी 2021 में उन्हें 'एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया' के 'न्यू डिस्कवरी अवार्ड' से सम्मानित किया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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