रात नहीं कटती थी रात में -आदित्य चौधरी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:19, 25 June 2012 by गोविन्द राम (talk | contribs) ('{| width="100%" style="background:transparent;" |- valign="top" | style="width:85%"| {| width="100%" class="headbg37" style="border:thin ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

50px|right|link=|

रात नहीं कटती थी रात में -आदित्य चौधरी


रात नहीं कटती थी रात में अब दिन में भी कटी नहीं
ऐसी परत जमी चेहरों पर कोहरे की फिर हटी नहीं

बी पॉज़िटिव-बी पॉज़िटिव कह कह कर जी ऊब गया
इतना जीया सन्नाटे को सन्नाटा भी रूठ गया

मस्त ज़िन्दगी जीलो यारो इसमें कोई हर्ज़ नहीं
संजीदा रिश्ते को तलाशो तो दिन रातों चैन नहीं

दूर हैं हम जो तुमसे इतने ये अपनी तक़्दीर नहीं
इल्म नहीं है हमको जिसका साज़िश है तदबीर नहीं

वक़्त निगेहबाँ होता जब ख़ाबों में रंग होते हैं
एक ख़ाब मैंने भी देखा जिसमें रंगत दिखी नहीं

उसे भुला दूँ जिसमें बसा था पूरा ये संसार मिरा
शक़ की बिनाह पर मुझको छोड़ा कोई बहस तक़रीर नहीं

दिन जैसे जंगल बातों का सांय-सांय करता रहता
किसी तिलस्मी खोज में जैसे अय्यारी करता फिरता

इसने टोका उसने पूछा क्यों किस्मत क्या खुली नहीं ?
रात नहीं कटती थी रात में अब दिन में भी कटी नहीं

सम्पादकीय विषय सूची
अतिथि रचनाकार 'चित्रा देसाई' की कविता सम्पादकीय आदित्य चौधरी की कविता



वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः