मेरा है वास्ता -आदित्य चौधरी

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जाना पहचाना रास्ता -आदित्य चौधरी

मांगते भीख इंसान इंसान से
सर्द रातों से लड़ती हुई जान से
और गाँवों के बनते वीरान से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

उसके खेतों से और उसके खलिहान से
छोटे जुम्मन की फूफी की दूकान से
उसके कमज़ोर कांधों के सामान से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

आँख से जो न टपकी हो उस बूँद से
कसमसाते हुए दिल की हर गूँज से
बिन लिखे उन ख़तों के मज़मून से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

करवटों से परेशान फ़ुटपाथ से
उस मुहल्ले के बिछड़े हुए साथ से
और हँसिए को थामे हुए हाथ से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

उसके अल्लाह से और भगवान से
उसके भजनों से भी, उसकी आज़ान से
और दंगों में जाती हुई जान से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

उसके चूल्हे की बुझती हुई आग से
उस हवेली की जूठन, बचे साग से
टूटी चूड़ी के फूटे हुए भाग से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

कम्मो दादी की धोती के पैबंद से
और पसीने की आती हुई हुई गंध से
उसके जूआ छुड़ाने की सौगंध से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

उसकी छत से टपकती हुई बूँद से
सरहदों पर बहाए हुए ख़ून से
ज़ुल्म ढाते हुए स्याह क़ानून से

तेरा हो या ना हो, मेरा है वास्ता
जाना पहचाना लगता है ये रास्ता

है मेरा वास्ता है मेरा वास्ता
है मेरा वास्ता है मेरा वास्ता



टीका टिप्पणी और संदर्भ



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