अपना भी कोई ख़ाब हो -आदित्य चौधरी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:15, 9 July 2013 by गोविन्द राम (talk | contribs) ("अपना भी कोई ख़ाब हो -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त अवधि))
Jump to navigation Jump to search

50px|right|link=|

अपना भी कोई ख़ाब हो -आदित्य चौधरी

इस ज़िन्दगी की दौड़ में, अपना भी कोई ख़ाब हो
अलसाई सी सुबह कोई, शरमाया आफ़ताब हो

वादों की किसी शाम से, सहमी सी किसी रात में
इज़हार के गीतों को गुनगुनाती, इक किताब हो

छूने के महज़ ख़ौफ़ से, सिहरन भरे ख़याल में
धड़कन के हर सवाल का, साँसों भरा जवाब हो

मिलना हो यूँ निगा़ह का, पलकों के किसी कोर से
ज़ुल्फ़ों की तिरे साये में, लम्हों का इंतिख़ाब हो

फ़ुरसत की दोपहर कोई, गुमसुम से किसी बाग़ में
मैं देखता रहूँ तुझे और वक़्त बेहिसाब हो


टीका टिप्पणी और संदर्भ



वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः