ये तो तय नहीं था कि -आदित्य चौधरी

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ये तो तय नहीं था कि -आदित्य चौधरी

ये तो तय नहीं था कि
तुम यूँ चले जाओगे
और जाने के बाद
फिर याद बहुत आओगे

मैं उस गोद का अहसास
भुला नहीं पाता
तुम्हारी आवाज़ के सिवा
अब याद कुछ नहीं आता

तुम्हारी आँखों की चमक
और उनमें भरी
लबालब ज़िन्दगी
याद है मुझको

उन आँखों में
सुनहरे सपने थे
वो तुम्हारे नहीं
मेरे अपने थे

मैं उस उँगली की पकड़
छुड़ा नहीं पाता
उस छुअन के सिवा
अब याद कुछ नहीं आता

तुम्हारी बलन्द चाल
की ठसक
और मेरा उस चाल की
नक़ल करना
याद है मुझको

तुम्हारे चौड़े कन्धों
और सीने में समाहित
सहज स्वाभिमान
याद है मुझको

तुम्हारी चिता का दृश्य
मैं अब तक भुला नहीं पाता
तुम्हारी याद के सिवा कुछ भी
मुझे रुला नहीं पाता

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