निशाचर निरा मैं -आदित्य चौधरी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:17, 18 February 2015 by गोविन्द राम (talk | contribs) ('{| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;" |- | <noinclude>[[चित्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

50px|right|link=|

निशाचर निरा मैं -आदित्य चौधरी

निशाचर निरा मैं
छायाहीन
प्रतिबिम्बित मानसयुक्त,
अचेतन मन का स्वामी
उत्कंठा लिए
मैं सार्वकालिक, सार्वभौमिक सत्य
खोजता लगातार

हताश फिर भी,
नियत भविष्य के लिए
स्वागत द्वारों को नकार
मैं हिचकता हुआ
लगातार

सोच वही...
और क्यों नहीं बदल पाता
हर बार

ज्योंही हिला पत्ता पीपल का,
चौंका निशाचर मैं
अनिवार

लिए भूत अपना,
भेंट करने, भविष्य को
साकार

फूलों की झाड़ी
में काँटों की आड़ लिए
भौंका किया लगातार

लिप्त आडम्बरों से
सकुचाता हुआ
व्यवस्थित अव्यवस्था के लिए
भाड़ झोंका किया
लगातार

चौंका मैं पीपल के पत्ते से
बार बार



वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः