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कि तुम कुछ इस तरह आना मेरे दिल की दुछत्ती में लगे ऐसा कि जैसे रौशनी है दिल के आंगन में बरसना फूल बन गेंदा के मेरे भव्य स्वागत को और बन हार डल जाना मेरी झुकती सी गरदन में सुबह की चाय की चुसकी की तुम आवाज़ हो जाना सुगंधित तेल बन बिखरो फिसलना मेरे बालों में रसोई के मसालों सी रोज़ महकाओ घर भर को कढ़ी चावल सा लिस जाना मेरे हाथों में होठों में मचलना, सीऽ-सीऽ होकर चाट की चटख़ारियों में तुम कभी खट्टा, कभी मीठा लगो तुम स्वाद चटनी में मेरी आँखों के गुलशन में रहो राहत भरी झपकन सहमना और सिकुड़ जाना छुईमुई बन के सपनों में कहूँ क्या मैं तो इक सीधा और सादा सा बंदा हूँ ग़रज़ ये है कि मिलता है तुम्हीं से सार जीवन में
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