मैं हूँ स्तब्ध सी -आदित्य चौधरी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:27, 19 February 2015 by गोविन्द राम (talk | contribs) ("मैं हूँ स्तब्ध सी -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त अवधि)))
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

50px|right|link=|

मैं हूँ स्तब्ध सी -आदित्य चौधरी

मैं हूँ स्तब्ध सी
ये देख कर अस्तित्व तेरा
कितना है ये किसका
कितना ये है मेरा

मुझ से तुझको जोड़ा
तुझको मुझसे जोड़ा
ऐसे, इस तरहा से
किसकी ये माया है
कैसे तू आई है

पंखों की रचना है
रिमझिम सी काया है
झिलमिल सा साया है

तू जब भी रोती है
सपनों में खोती है
शैतानी बोती है
तुझको मालुम क्या
ऊधम है तेरा क्या

घर-भर के रहती है
पल भर में बहती है
गंगा और जमना क्या
आखों में रहती है

जब भी तू कहती है
मम्मा-अम्मा मुझको
जाने क्या सिहरन सी
रग-रग में बहती है

तेरा जो पप्पा है
पूरा वो हप्पा है
दांतो से काट-काट
गोदी में गप्पा है

मैं हूँ अब ख़ुश कितनी
ये किसको बतलाऊँ
समझेगा कौन इसे
किस-किस को समझाऊँ

यूँ ही इक बात मगर
कहती हूँ तुम सबसे
बच्चे ही आते हैं
ईश्वर का रूप धरे

इनकी जो सेवा है
अल्लाह की ख़िदमत है
साहिब का नूर हैं ये
ईश्वर की मेवा है

इनमें हर मंदिर है
इनमें हर मस्जिद है
गिरजे और गुरुद्वारे
इनके ही सजदे हैं

कोई भी बच्चा हो
कितना भी झूठा हो
कितना भी सच्चा हो

बस ये ही समझो तुम
उसके ही दम से तो
ये सारी दुनिया है

उससे ही रौशन हैं
सूरज और तारे सब
उसकी मुस्कानों में
जीवन की रेखा है



वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः