दिलों के टूट जाने की -आदित्य चौधरी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 16:52, 29 April 2015 by आदित्य चौधरी (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

50px|right|link=|

दिलों के टूट जाने की -आदित्य चौधरी

नहीं आवाज़ होती है, दिलों के टूट जाने की
ज़रूरत क्या है फिर तुमको, इसे सुनने-सुनाने की

मेरे तन्हाई के आलम में सारे ख़ाब फीके थे
तुम्हारी ज़िद थी फिर इनको, बहारों से सजाने की

जो मैं था वो तो रहने ही कहाँ तुमने दिया मुझको
जो मैं अब हो गया तुम सा, तो ज़िद है छोड़ जाने की

मैं ख़ुश कितना हूँ ये तुमको बताने के लिए आया
तुम्हें फ़ुर्सत कहाँ नाचीज़ को दिल से लगाने की

हज़ारों ख़्वाइशों को छोड़ के तुमको ही चाहा था
तुम्हें बेचैनियां रहती हैं अब सारे ज़माने की



वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः