चुनार क़िला

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:53, 2 May 2015 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

[[चित्र:Chunar-Fort.jpg|thumb|250px|चुनार क़िला, उत्तर प्रदेश
Chunar Fort, Uttar Pradesh]] चुनार क़िला उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले में विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा नदी के तट पर है। चुनार का प्राचीन नाम 'चरणाद्रि' था। चौदहवीं शताब्दी में यह दुर्ग चंदेलों के अधिकार में था। सोलहवीं शताब्दी में चुनार को बिहार तथा बंगाल को जीतने के लिए पहला बड़ा नाका समझा जाता था। चुनार का विख्यात दुर्ग राजा भर्तृहरि के समय का कहा जाता है।

इतिहास

चुनार का प्रसिद्ध क़िला राजा भर्तृहरि के समय का माना जाता है। इनकी मृत्यु 651 ई. में हुई थी।[1] किंवदंती है कि सन्न्यास लेने के उपरान्त जब भर्तृहरि विक्रमादित्य के मनाने पर भी घर नहीं लौटे तो उनकी रक्षार्थ विक्रमादित्य ने यह क़िला बनवा दिया था। उस समय यहाँ घना जंगल था। क़िले का संबंध 'आल्हा-ऊदल' की कथा से भी बताया जाता है। यह स्थान जहाँ आल्हा की पत्नी मुनवा का महल था, अब 'सुनवा बुर्ज' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके पास ही 'माडो' नामक स्थान है, जहाँ आल्हा का विवाह हुआ था। चुनार का दुर्ग प्रयाग के दुर्ग की अपेक्षा अधिक दृढ़ तथा विशाल है। क़िले के नीचे सैंकड़ों वर्षों से गंगा की तीक्ष्ण धारा बहती रही, किंतु दुर्ग की भित्तियों को कोई हानि नहीं पहुँच सकी है। इसके दो ओर गंगा बहती है तथा एक ओर गहरी खाई है।[[चित्र:Chunar-Fort-1.jpg|thumb|250px|left|चुनार क़िला, उत्तर प्रदेश
Chunar Fort, Uttar Pradesh]] यह दुर्ग चुनार के प्रसिद्ध बलुआ पत्थर का बना है और भूमितल से काफ़ी ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मुख्य द्वार लाल पत्थर का है और उस पर सुंदर नक़्क़ाशी है। क़िले का परकोटा प्राय: दो गज चौड़ा है। उपर्युक्त माड़ो तथा सुनवा बुर्ज दुर्ग के भीतर अवस्थित हैं। यहीं राजा भर्तृहरि का मंदिर है, जहाँ उन्होंने अपना सन्न्यास काल बिताया था। क़िले के निकट ही सवा सौ या डेढ़ सौ फुट गहरी बावड़ी है। किले में कई गहरे तहखाने भी हैं, जिनमें सुरंगे बनी हैं।

आधिपत्य

शेरशाह सूरी ने 1530 ई. में चुनार के क़िलेदार ताज ख़ाँ की विधवा 'लाड मलिका' से विवाह करके चुनार के शाक्तिशाली क़िले पर अधिकार कर लिया था। उसे यहाँ मलिका की काफ़ी सम्पत्ति भी मिली।

रक्षक दुर्ग

वर्ष 1532 ई. में जब मुग़ल बादशाह हुमायूँ ने चुनार का घेरा डाला, तो चार महीने के घेरे के बाद भी सफ़लता हाथ नहीं लगी। अंत में हुमायूँ ने सन्धि कर ली और चुनार का क़िला शेरशाह के पास ही रहने दिया। 1538 ई. में हुमायूँ ने तोपखाने की सहायता से तथा चालाक़ी से छह महीनों के प्रयास के बाद चुनारगढ़ पर अधिकार कर लिया। अगस्त, 1561 ई. में अकबर ने चुनार को अफ़ग़ानों से जीता और इसके बाद यह दुर्ग मुग़ल साम्राज्य का पूर्व में रक्षक दुर्ग बन गया। [[चित्र:Chunar-Fort-2.jpg|thumb|250px|चुनार क़िला, उत्तर प्रदेश
Chunar Fort, Uttar Pradesh]]

स्मारक

चुनार के क़िले में कई महत्त्वपूर्ण स्मारक आज भी उपस्थित हैं। इनमें प्रमुख हैं-

  1. 'कामाक्षा मन्दिर'
  2. 'भर्तहरि का मन्दिर'
  3. 'दुर्गाकुण्ड'

यहाँ की प्रसिद्ध मस्जिद 'मुअज्जिन' है, जिसमें मुग़ल सम्राट फ़र्रुख़सियर के समय में मक्का से लाये हसन-हुसैन के पहने हुए वस्त्र सुरक्षित हैं।

मौर्यकालीन स्तम्भ

गुप्त काल से लेकर अठारहवीं सदी तक के अनेक अभिलेख यहाँ से प्राप्त हुए हैं। मौर्य कालीन स्तम्भ चुनार के भूरे बलुआ पत्थर को तराशकर बनाये गये थे। अनुमान किया जाता है कि चुनार के आस-पास मौर्य काल में एक कला केन्द्र था, जो मौर्य सरकार के सरंक्षण में काम करता था। चुनार में मिट्टी की सुन्दर वस्तुएँ बनती थीं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री नं. ला. डे के अनुसार पाल राजाओं ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था।
  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः