कंघी

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कंघी - संज्ञा स्त्रीलिंग (संस्कृत कङ्कती, प्राकृत कंकई)[1]

1. छोटा कंघा।

मुहावरा

'कंघी चोटी' - बनाव सिंगार। कंघी चोटी करना = बाल सँवारना। बनाव सिंगार करना।

2. जुलाहों का एक औज़ार।

विशेष- यह बाँस की तीलियों का बनता है। पतली, गज डेढ़ गज लंबी दो तीलियां चार से आठ अंगुल के फासले पर आमने सामने रखी जाती हैं। इन पर बहुत सी छोटी छोटी तथा बहुत पतली और चिकनी तीलियाँ होती हैं जो इतनी सटाकर बाँधी जाती है कि उनके बीच एक एक तागा निकल सके। करघे में पहले ताने का एक एक तार इन आड़ी पतली तीलियों के बीच से निकाला जाता है। बाना बुनते समय इसे जुलाहे राछ के पहले रखते हैं। ताने में प्रत्येक बाना बुनने पर बाने को गँसने के लिए कंधी को अपनी ओर खींचते हैं जिससे बाने सीधे और बराबर बुने जाते हैं। बय। बौला। बैसर।

3. एक पौधे का नाम ।

विशेष- यह पाँच छह फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ पान के प्रकार की पर अधिक नुकीली होती हैं और उनके कोर दानेदार होते हैं। पत्तियों का रंग भूरापन लिए हलका हरा होता है। फूल पीले पीले होते हैं। फूलों के झड़ जाने पर मुकुट के आकार के ढेंढ़ लगते हैं जिनमें खड़ी खड़ी कमरखी या कंगनी होती है। पत्तों और फलों पर छोटे-छोटे घने नरम रोए होते हैं जो छूने में मखमल की तरह मुलायम होते हैं। फल पक जाने पर एक-एक कमरखी के बीच कई-कई काले दाने निकलते हैं। इसकी छाल के रेशे मजबूत होते हैं। इसकी जड़, पत्तियां और बीज सब दवा के काम में आते हैं। वैद्यक में इसको वृष्य और ठंडा माना है। संस्कृत में इसे 'अतिबला' कहते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्द सागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी.ए. (मूल सम्पादक) |प्रकाशक: शंभुनाथ वाजपेयी द्वारा, नागरी मुद्रण वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 718 |

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