अन्ना मणी

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अन्ना मणी (अंग्रेज़ी: Anna Mani, जन्म- 23 अगस्त, 1918; मृत्यु- 16 अगस्त, 2001) भारतीय भौतिक और मौसम वैज्ञानिक थीं। वह भारत के मौसम विभाग की उप-निदेशक भी रही थीं। अन्‍ना मण‍ि वह महिला थीं, जिनके कारण देश में मौसम की भविष्‍यवाणी करना आसान हुआ। उन्‍होंने मौसम की भविष्‍यवाणी करने वाले ऐसे उपकरण तैयार किए, जिनसे सटीक जानकारी मिलना आसान हुआ।

परिचय

अन्ना मणि का जन्म 23 अगस्त, 1918 को पीरूमेडू, त्रवनकोर (केरल) में एक ईसाई परिवार में हुआ था। उनके पिता एक सिविल इंजीनियर और अज्ञेयवादी थे। अन्ना मणि आठ भाई-बहन में सातवें नंबर की थीं। वह बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृति की थीं। उनका पढ़ाई के प्रति बहुत ही गहरा नाता रहा। इसके अलावा वह गांधीजी के वायकोम सत्याग्रह से काफी प्रभावित रही थीं। अन्ना मणी राष्ट्रवादी आंदोलन से इतना प्रभावित हुई कि उन्होंने इस आंदोलन के बाद से केवल खादी के कपड़े पहनना शुरू कर दिया था। पढ़ाई व शोध में गहरी रूचि के कारण उन्होंने शादी तक नही की थी।[1]

पुस्तकों से प्रेम

अन्ना मणि का परिवार शुरू से ही उच्च-वर्गीय पेशेवर परिवार था। इनके परिवार वाले शिक्षा को लेकर काफी जागरूक व शिक्षा के महत्व को भली-भांति जानते थे। परिवार का मानना था लड़कों को अगर आप उच्च स्तरीय शिक्षा देते हैं तो बेटियों को भी कम से कम प्राथमिक शिक्षा तो जरूर दें। इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि अन्ना मणि ने अपने जीवन के प्रारंभिक 8 वर्षों के दौरान ही मलयालम सार्वजनिक पुस्कालय की लगभग सभी किताबों को पढ़ डाला था। जब वह 12 वर्ष की हुईं, तब तक अंग्रेज़ी की उस दौरान चलने वाली सभी किताबें पढ़ डाली थीं।

अन्ना मणि से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब उनका 8वां जन्मदिन मनाया जा रहा था, तब उनके घरवालों की तरफ से हीरे की बालियों के एक सेट के रूप में पारंपरिक उपहार दिए जा रहे थे, लेकिन उन्होंने यह लेने से मना कर दिया और इसके बजाय एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के एक सेट को चुना। इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी पढ़ाई व किताबों के प्रति कितनी गहरी रूचि रही होगी।

शिक्षा

अन्ना मणि ने 1939 में चेन्नई (भूतपूर्व मद्रास) के प्रेसिडेन्सी काॅलेज से भौतिक और रसायन विज्ञान में बीएससी ओनर्स की डिग्री के साथ में स्नातक की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने 1940 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में शोध के लिए छात्रवृत्ति भी ली। इसके बाद वह 1945 में भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई के लिए इंपीरियल काॅलेज, लंदन भी गईं, जहां से उन्होंने मौसम संबंधी उपकरणों की विशेषज्ञता हासिल कर ली। सन 1948 में अन्ना मणि जब वापस भारत लौटीं तो उन्होंने पुणे स्थित मौसम विभाग में नौकरी करना प्रारंभ कर दिया, जहां से उन्होंने मौसम विज्ञान उपकरणों कें विषय में कई शोध पत्र भी लिखे। सन 1969 में उप महानिदेशक के पद पर उनका तबादला दिल्ली में हुआ। इसके बाद वह कुछ समय के लिए मिस्र में डब्ल्यूएमओ सलाहकार के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद वह आगे चलकर 1976 में भारतीय मौसम विभाग की उप-निदेशक पद से सेवानिवृत हुईं।[1]

कॅरियर

अन्ना मणि ने पचाई काॅलेज से स्नातक की पढ़ाई के बाद प्रोफेसर सी. वी. रमन के अधीन काम करना प्रारंभ कर दिया था। मणि ने रूबी और हीरे के ऑप्टिकल पर भी गहराई से शोध किया था। उनके द्वारा पांच शोध पत्र भी लिखे गये। उन्होंने अपना पीएचडी शोध प्रबंध भी प्रस्तुत किया, लेकिन उनको पीएचडी की डिग्री हासिल नहीं हुई, क्योंकि उनके पास भौतिकी में मास्टर की डिग्री नहीं थी। अन्ना मणि 1948 में भारत लौटीं और पुणे स्थित मौसम विभाग में शामिल हुईं। उसके बाद उन्होंने मौसम संबंधी उपकरणों पर कई शोध पत्र भी प्रकाषित किए। माना जाता है कि उनके ज्यादातर शोध ब्रिटेन से आयातित मौसम संबंधी उपकरण पर थे।

अन्ना मणि मौसम यंत्रों की दृष्टि से भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहती थीं। उन्होंने करीब 100 विभिन्न मौसम उपकरणों के चित्र को मानकीकृत किया। इसके अलावा 1957-1958 आते-आते उन्होंने सौर विकिरण को मापने के लिए स्टेशनों का एक नेटवर्क भी स्थापित कर दिया था। अन्ना मणि ने बंगलौर में एक कार्यशाला को भी स्थापित किया जो हवा की गति और सौर ऊर्जा को मापने का कार्य करती थी। इसके अलावा उन्होंने ओजोन परत पर भी गहरा शोध किया, जिसके चलते आगे चलकर उन्हें 'इंटरनेशनल ओजोन एसोसिएशन' का सदस्य भी बनाया गया। अन्ना मणि के द्वारा ही थुम्बा राॅकेट लाॅन्चिंग में मौसम संबंधी वेधशाला और एक इंस्ट्रूमेंटेशन टाॅवर को स्थापित किया गया था।

उपलब्धियाँ

  • अन्ना मणि को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, अमेरिकी मौसम विज्ञान सोसायटी, अंतर्राष्ट्रीय सौर ऊर्जा सोसायटी, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, मौसम विज्ञान और वायुमंडलीय भौतिकी के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ से जोड़ा गया।[1]
  • सन 1987 में उनके कार्य के प्रति लगन व योगदान के बदले उन्हें आईएनएसअ के. आर. रामनाथन पदक से नवाजा गया।

मृत्यु

16 अगस्त, 2001 को अन्ना मणि ने तिरुअनंतपुरम में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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