Difference between revisions of "उकसाव का इमोशनल अत्याचार -आदित्य चौधरी"
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कुछ घटनाक्रम निश्चय ही किसी दूसरी दिशा की ओर हमें ले जाते हैं जिससे इन आतंकवादी समस्याओं के पीछे कोई और कारण भी नेपथ्य में खड़ा स्पष्ट दिखाई देता है। 'इटली' में सन् 1969 के आसपास आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक अस्थिरता रही, नतीजे के रूप में चारों तरफ़ अराजकता, लूटपाट, अपहरण, हत्या जैसी आतंकी घटनाओं का बोलबाला हुआ, कारण था देश में बढ़ती बेरोज़गारी एवं आर्थिक विषमताएं। वर्ष 1978 में देश में आर्थिक सम्पन्नता एवं राजनीतिक स्थिरता का दौर शुरू हुआ। नतीजा रहा, इटली के आतंकवादी संगठनों की गतिविधियां समाप्त प्राय: हो गईं। | कुछ घटनाक्रम निश्चय ही किसी दूसरी दिशा की ओर हमें ले जाते हैं जिससे इन आतंकवादी समस्याओं के पीछे कोई और कारण भी नेपथ्य में खड़ा स्पष्ट दिखाई देता है। 'इटली' में सन् 1969 के आसपास आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक अस्थिरता रही, नतीजे के रूप में चारों तरफ़ अराजकता, लूटपाट, अपहरण, हत्या जैसी आतंकी घटनाओं का बोलबाला हुआ, कारण था देश में बढ़ती बेरोज़गारी एवं आर्थिक विषमताएं। वर्ष 1978 में देश में आर्थिक सम्पन्नता एवं राजनीतिक स्थिरता का दौर शुरू हुआ। नतीजा रहा, इटली के आतंकवादी संगठनों की गतिविधियां समाप्त प्राय: हो गईं। | ||
'कोलम्बिया' में सन् 1974 में देश की सत्ता और औद्योगिक प्रतिष्ठानों की आम जनता के साथ असमानता की खाई चौड़ी हो गयी- कोई बहुत ज़्यादा अमीर हो गया तो कोई बहुत ज़्यादा ग़रीब, नतीजा- देश के श्रमिकों, युवाओं आदि ने प्रतिबंधित नशीले पदार्थों के व्यवसायियों से हाथ मिलाकर काम करना शुरू कर दिया, बेरोज़गारों के सशस्त्र गुटों ने कोलम्बिया के सार्वजनिक निर्माण और औद्योगिक निवेश को अपने हाथ में ले लिया। | 'कोलम्बिया' में सन् 1974 में देश की सत्ता और औद्योगिक प्रतिष्ठानों की आम जनता के साथ असमानता की खाई चौड़ी हो गयी- कोई बहुत ज़्यादा अमीर हो गया तो कोई बहुत ज़्यादा ग़रीब, नतीजा- देश के श्रमिकों, युवाओं आदि ने प्रतिबंधित नशीले पदार्थों के व्यवसायियों से हाथ मिलाकर काम करना शुरू कर दिया, बेरोज़गारों के सशस्त्र गुटों ने कोलम्बिया के सार्वजनिक निर्माण और औद्योगिक निवेश को अपने हाथ में ले लिया। | ||
− | 'जर्मनी', जहाँ के | + | 'जर्मनी', जहाँ के विद्वान् मैक्समूलर ने वेदों का अनुवाद किया, वहीं जर्मनी अनेक आतंकवादी घटनाओं और संगठनों का कारक भी बना, सन् 1968 में जर्मनी की राजनीतिक आर्थिक सत्ता का डांवाडोल होना। कारण- आर्थिक विषमताओं की पराकाष्ठा, आंद्रें बादर और उलरिक मीनहाफ़ द्वारा रेड आर्मी नामक संगठन की शुरुआत। नतीजा- देश में बैंक डकैती, अपहरण एवं फिरौती और बड़ी आतंकी घटनाओं का बोलबाला। वर्ष 1992 में दोनों जर्मनी एक हुए, राजनीतिक स्थिरता एवं आर्थिक सम्पन्नता का दौर शुरू हुआ तो आतंकी घटनाएं लगभग समाप्त प्राय: हो गईं। |
इस तरह से अनेक उदाहरणों से हम आतंकवाद के मूल में अर्थ की भूमिका को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। सुनियोजित आतंकी हमलों में शेयर बाज़ार की सूझबूझ भी समानान्तर चलती है जो कि उसके आतंकवाद के आर्थिक पहलू को उजागर करती है। एक पहलू ऐसा है जिस पर हमें मुख्य रूप से ग़ौर करना चाहिए- किशोरावस्था और युवावस्था में युवकों और युवतियों में भरी शारीरिक ऊर्जा का उपयोग सही रूप में नहीं हो पा रहा है जो कि पिछले समय में विभिन्न खेलों, दौड़ भाग, कसरत आदि प्रयोग में होता रहता था। अब नवयुवा के पास समय बिताने के लिए टीवी और कंप्यूटर जैसे मनोरंजन के साधन हैं। ज़रूरत इस बात की है कि युवा पीढ़ी को शारीरिक श्रमयुक्त शिक्षा, खेल, मनोरंजन आदि में ज़्यादा से ज़्यादा भाग लेना चाहिए जो कि अब कम ही हो पाता है। | इस तरह से अनेक उदाहरणों से हम आतंकवाद के मूल में अर्थ की भूमिका को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। सुनियोजित आतंकी हमलों में शेयर बाज़ार की सूझबूझ भी समानान्तर चलती है जो कि उसके आतंकवाद के आर्थिक पहलू को उजागर करती है। एक पहलू ऐसा है जिस पर हमें मुख्य रूप से ग़ौर करना चाहिए- किशोरावस्था और युवावस्था में युवकों और युवतियों में भरी शारीरिक ऊर्जा का उपयोग सही रूप में नहीं हो पा रहा है जो कि पिछले समय में विभिन्न खेलों, दौड़ भाग, कसरत आदि प्रयोग में होता रहता था। अब नवयुवा के पास समय बिताने के लिए टीवी और कंप्यूटर जैसे मनोरंजन के साधन हैं। ज़रूरत इस बात की है कि युवा पीढ़ी को शारीरिक श्रमयुक्त शिक्षा, खेल, मनोरंजन आदि में ज़्यादा से ज़्यादा भाग लेना चाहिए जो कि अब कम ही हो पाता है। | ||
कुल मिलाकर जो स्थिति सामने आती है, वह यह स्पष्ट करती है कि आतंकवाद एक व्यवसाय के रूप में स्थापित हो चुका है। जो लोग आतंकवादियों के प्रति किसी धर्म या जाति अथवा क्षेत्र या भाषा के कारण न्यूनाधिक आस्था रखते हैं या मन में किसी प्रकार की कोई सहानुभूति रखते हैं तो वे सिर्फ़ एक निर्मम व्यवसायी की योजना के भागीदार ही हैं। हमें 'जॉन स्टूअर्ट मिल' की उक्ति को भी नहीं भूलना चाहिए कि व्यैक्तिकता को जो भी कुचले, वह तानाशाही है, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाये। | कुल मिलाकर जो स्थिति सामने आती है, वह यह स्पष्ट करती है कि आतंकवाद एक व्यवसाय के रूप में स्थापित हो चुका है। जो लोग आतंकवादियों के प्रति किसी धर्म या जाति अथवा क्षेत्र या भाषा के कारण न्यूनाधिक आस्था रखते हैं या मन में किसी प्रकार की कोई सहानुभूति रखते हैं तो वे सिर्फ़ एक निर्मम व्यवसायी की योजना के भागीदार ही हैं। हमें 'जॉन स्टूअर्ट मिल' की उक्ति को भी नहीं भूलना चाहिए कि व्यैक्तिकता को जो भी कुचले, वह तानाशाही है, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाये। |
Latest revision as of 14:21, 6 July 2017
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|fesabuk par bharatakosh (nee shuruat) bharatakosh ukasav ka imoshanal atyachar -adity chaudhari sthan: hamare hi desh jaise kisi desh ki koee jel... |
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