Difference between revisions of "वोटरानी और वोटर -आदित्य चौधरी"
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वोटर बनना आसान नहीं है। इसके लिए कई शर्तें हैं जो पूरी करनी पड़ती हैं लेकिन नेताओं की नज़र से अगर देखें तो सबसे अच्छा वोटर वही माना जाता है जो ज़िन्दा ही न हो यानि बहुत पहले ही मर चुका हो क्योंकि इस प्रकार का वोटर बिना किसी मांग के और बिना कोई वादा लिए वोट दे सकता है। दूसरा वह जो कभी भी पोलिंग बूथ पर न जाए लेकिन उसका वोट हर चुनाव में डल जाय। ऊपर वाले दोनों प्रकार के वोटर सबसे अच्छे माने जाते हैं क्योंकि इनका वोट उम्मीदवार के शुभचिंतकों द्वारा ही डाले जाते हैं। ये दोनों ही क़िस्में भारत में या भारत जैसे देशों में ही पायी जाती हैं। | वोटर बनना आसान नहीं है। इसके लिए कई शर्तें हैं जो पूरी करनी पड़ती हैं लेकिन नेताओं की नज़र से अगर देखें तो सबसे अच्छा वोटर वही माना जाता है जो ज़िन्दा ही न हो यानि बहुत पहले ही मर चुका हो क्योंकि इस प्रकार का वोटर बिना किसी मांग के और बिना कोई वादा लिए वोट दे सकता है। दूसरा वह जो कभी भी पोलिंग बूथ पर न जाए लेकिन उसका वोट हर चुनाव में डल जाय। ऊपर वाले दोनों प्रकार के वोटर सबसे अच्छे माने जाते हैं क्योंकि इनका वोट उम्मीदवार के शुभचिंतकों द्वारा ही डाले जाते हैं। ये दोनों ही क़िस्में भारत में या भारत जैसे देशों में ही पायी जाती हैं। | ||
18 वर्ष की आयु तक प्रत्येक भारतीय का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है। इसके बाद वही सीधा-सादा भारतीय नागरिक एक वोटर में परिवर्तित हो जाता है। वोटर बनते ही वह सभी राजनीतिक दलों की 'निगाह' में वैसे ही आ जाता जैसे ईद से पहले कोई तन्दुरुस्त बकरा। इस बेचारे वोटर को तरह-तरह से बहलाया फुसलाया जाता है और जब वो इस लायक़ बन जाता है कि अपने दिमाग़ का इस्तेमाल किए 'बिना' वोट दे सके तो उससे वोट ले लिया जाता है। इस सारी बाज़ीगरी से वोटर के दिमाग़ में यह बैठ जाता है कि वोट देना उसका कर्तव्य नहीं है बल्कि राजनीतिक दलों और नेताओं पर किया जाने वाला एक अहसान है। वोटर अपने वोट का संबंध देश के भविष्य से न मान कर नेताओं के भविष्य से मानने लगता है। | 18 वर्ष की आयु तक प्रत्येक भारतीय का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है। इसके बाद वही सीधा-सादा भारतीय नागरिक एक वोटर में परिवर्तित हो जाता है। वोटर बनते ही वह सभी राजनीतिक दलों की 'निगाह' में वैसे ही आ जाता जैसे ईद से पहले कोई तन्दुरुस्त बकरा। इस बेचारे वोटर को तरह-तरह से बहलाया फुसलाया जाता है और जब वो इस लायक़ बन जाता है कि अपने दिमाग़ का इस्तेमाल किए 'बिना' वोट दे सके तो उससे वोट ले लिया जाता है। इस सारी बाज़ीगरी से वोटर के दिमाग़ में यह बैठ जाता है कि वोट देना उसका कर्तव्य नहीं है बल्कि राजनीतिक दलों और नेताओं पर किया जाने वाला एक अहसान है। वोटर अपने वोट का संबंध देश के भविष्य से न मान कर नेताओं के भविष्य से मानने लगता है। | ||
− | चुनाव शुरू होते हैं। चुनावी सभाओं में नेता हॅलीकॉप्टर से आते हैं और अपने आप को जनता का सेवक बताते हैं, जिससे जनता को तुरंत विश्वास हो जाता है कि भई वाक़ई सही बात है, ये जनता का सेवक ही तो है वरना बेचारा हॅलीकॉप्टर में कैसे चल सकता है। दूसरा ये भी है कि आम आदमी को बड़ा गर्व भी होता है कि देखो ! हम न सही लेकिन हमारा नौकर तो हॅलीकॉप्टर में चल रहा है। अनेक राजनीतिक दल वोटर को तरह-तरह की योजनाएं बना कर यह समझाने का प्रयास करते हैं कि वोटर होना, जीवन की एक | + | चुनाव शुरू होते हैं। चुनावी सभाओं में नेता हॅलीकॉप्टर से आते हैं और अपने आप को जनता का सेवक बताते हैं, जिससे जनता को तुरंत विश्वास हो जाता है कि भई वाक़ई सही बात है, ये जनता का सेवक ही तो है वरना बेचारा हॅलीकॉप्टर में कैसे चल सकता है। दूसरा ये भी है कि आम आदमी को बड़ा गर्व भी होता है कि देखो ! हम न सही लेकिन हमारा नौकर तो हॅलीकॉप्टर में चल रहा है। अनेक राजनीतिक दल वोटर को तरह-तरह की योजनाएं बना कर यह समझाने का प्रयास करते हैं कि वोटर होना, जीवन की एक महान् घटना है और वोटर को ख़ुद यह मालूम नहीं है कि किसे वोट देना है। बेचारा वोटर क्या जाने कि वोट कैसे, किसे और कब देना है इसीलिए चुनावी सभाएं की जाती हैं, रैलियां निकाली जाती हैं और घर-घर जाकर वोट मांगे जाते हैं। शराब पिलाई जाती है, उपहार बाँटे जाते हैं और नक़द रुपया दिया जाता है। विज्ञापनों द्वारा यह प्रचार किया जाता है कि वोट ज़रूर दो। |
ये जो 'वोट ज़रुर दो ये तुम्हारा हक़ है, कर्तव्य है।' का वाक्य, चुनाव के क़रीब आने पर धीरे-धीरे अपना रंग बदलने लगता है ज़रा देखिए कैसे- | ये जो 'वोट ज़रुर दो ये तुम्हारा हक़ है, कर्तव्य है।' का वाक्य, चुनाव के क़रीब आने पर धीरे-धीरे अपना रंग बदलने लगता है ज़रा देखिए कैसे- | ||
चुनाव से 15 दिन पहले (स्थान: कोई सभा स्थल जैसे चौपाल): | चुनाव से 15 दिन पहले (स्थान: कोई सभा स्थल जैसे चौपाल): | ||
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"अरे! ऐसा कैसे हो सकता है कि आपके यहाँ सड़क नहीं है... क्या कह रहे हैं ? स्कूल भी नहीं है... बड़े कमाल की बात है... मैं अभी रिपोर्ट मंगवाता हूँ..." | "अरे! ऐसा कैसे हो सकता है कि आपके यहाँ सड़क नहीं है... क्या कह रहे हैं ? स्कूल भी नहीं है... बड़े कमाल की बात है... मैं अभी रिपोर्ट मंगवाता हूँ..." | ||
अब इसके बाद सारा मामला उन अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया जाता है जो चालाक लोमड़ी होने के बावजूद ख़ुद को भेड़ साबित करने में स्वर्ण पदक विजेता होते हैं। | अब इसके बाद सारा मामला उन अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया जाता है जो चालाक लोमड़ी होने के बावजूद ख़ुद को भेड़ साबित करने में स्वर्ण पदक विजेता होते हैं। | ||
− | ऐसा नहीं है कि जनता यह नहीं जानती कि चुनाव के बाद नेता | + | ऐसा नहीं है कि जनता यह नहीं जानती कि चुनाव के बाद नेता अचानक रंग पलट जाते हैं, जनता सब जानती है लेकिन इसका आनंद लेती है और भाग्यवादी भारत की जनता इस तरह की बातों को भाग्य का लेखा या क़िस्मत की लिखाई ही समझ लेती है। इस तरह देश चलता रहता है और आम आदमी, नेताओं को म्यूज़िकल चेयर वाले खेल की तरह बदलता रहता है। |
Latest revision as of 09:55, 30 January 2018
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|fesabuk par bharatakosh (nee shuruat) bharatakosh votarani aur votar -adity chaudhari chunav ho rahe haian. ek gaanv ke skool mean poliang booth bana hua hai. danadan vot dale ja rahe haian. poliang booth ke as-pas ek adami gale mean ek thaila lataka kar kuchh bech raha hai aur avaz laga raha hai- |
tika tippani aur sandarbh
pichhale sampadakiy