शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>शर्मदार की मौत<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>शर्मदार की मौत<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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न जाने कितनी पुरानी बात है कि आचार्य विद्याधर नाम के एक शिक्षक अपना गुरुकुल नगरों की भीड़-भाड़ से दूर एकांत में चलाते थे। दूर-दूर से अनेक धनाढ्यों और निर्धनों के बच्चे उनके यहाँ शिक्षा लेने आते थे। राज्य के राजा का पुत्र भी उनसे गुरुकुल में ही रहकर शिक्षा ले रहा था। आचार्य किसी छात्र से ग़लती या लापरवाही होने पर उनको मारते- | न जाने कितनी पुरानी बात है कि आचार्य विद्याधर नाम के एक शिक्षक अपना गुरुकुल नगरों की भीड़-भाड़ से दूर एकांत में चलाते थे। दूर-दूर से अनेक धनाढ्यों और निर्धनों के बच्चे उनके यहाँ शिक्षा लेने आते थे। राज्य के राजा का पुत्र भी उनसे गुरुकुल में ही रहकर शिक्षा ले रहा था। आचार्य किसी छात्र से ग़लती या लापरवाही होने पर उनको मारते-पीटते नहीं थे लेकिन शारीरिक श्रम करने का दण्ड अवश्य देते थे, जैसे खुरपी से क्यारियाँ बनवाना, लम्बी-लम्बी दौड़ लगवाना या आश्रम के लिए भोजन बनवाने और सफाई आदि में सहायता देना। राजा का बेटा भी इस प्रकार के दण्ड का भागी बनता था। कई वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरांत छात्रों को अपने परिवार से मिलने की अनुमति दी जाती थी, जिससे कि छात्र अपने परिवारीजनों के साथ भी रह सके। तीन वर्ष के उपरांत राजकुमार यशकीर्ति को भी अपने राजमहल भेज दिया गया। राजमहल में रानी ने अपने पुत्र से उसका हालचाल पूछा- | ||
"तुम गुरुकुल में कैसा जीवन बिता रहे हो बेटा ! तुम्हारा मन लग जाता है ?" | "तुम गुरुकुल में कैसा जीवन बिता रहे हो बेटा ! तुम्हारा मन लग जाता है ?" | ||
"और सब कुछ तो ठीक है माँ, लेकिन मुझे दूसरे छात्रों के अनुपात में चार गुना दंड दिया जाता है। जबकि दूसरे छात्रों में से कोई भी राजकुमार नहीं है। सभी हमारे राज्य की प्रजा ही हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि जैसे ही आचार्य विद्याधर को मेरी किसी भूल का पता चलता है, तो वे मुझे दूसरे छात्रों की अपेक्षा दोगुना, | "और सब कुछ तो ठीक है माँ, लेकिन मुझे दूसरे छात्रों के अनुपात में चार गुना दंड दिया जाता है। जबकि दूसरे छात्रों में से कोई भी राजकुमार नहीं है। सभी हमारे राज्य की प्रजा ही हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि जैसे ही आचार्य विद्याधर को मेरी किसी भूल का पता चलता है, तो वे मुझे दूसरे छात्रों की अपेक्षा दोगुना, तीन गुना और कभी-कभी चार गुना तक दंड देते हैं।" | ||
यह सुनकर रानी को क्रोध आ गया और तुरंत आचार्य को गुरुकुल से बुलवाया गया। राजा और रानी एक साथ बैठ कर आचार्य से | यह सुनकर रानी को क्रोध आ गया और तुरंत आचार्य को गुरुकुल से बुलवाया गया। राजा और रानी एक साथ बैठ कर आचार्य से पूछताछ करने लगे- | ||
"क्या यह सही बात है आचार्य कि आप राजकुमार को दूसरे छात्रों की अपेक्षा अधिक दंड देते हैं ?" रानी ने आचार्य से पूछा। | "क्या यह सही बात है आचार्य कि आप राजकुमार को दूसरे छात्रों की अपेक्षा अधिक दंड देते हैं ?" रानी ने आचार्य से पूछा। | ||
"जी हाँ! यह सच है।" | "जी हाँ! यह सच है।" | ||
"लेकिन ऐसा क्यों ?" | "लेकिन ऐसा क्यों ?" | ||
"इसका कारण यह है कि राजकुमार के अलावा जो दूसरे छात्र हैं, वह सभी पढ़ लिख कर जिन ज़िम्मेदारियों को निभायेगें वे सामान्य ज़िम्मेदारियाँ होंगीं और उनके द्वारा हुई भूलों का असर समाज के बहुत छोटे हिस्से पर होगा। इस तरह की भूलों को सुधारने के लिए राज्य में कई अधिकारी नियुक्त हैं। राजकुमार यशकीर्ति बड़े होकर महाराज की जगह लेंगे और हमारे राज्य के महाराजा बनेंगे। हमारे राज्य में सबसे बड़ा पद महाराजा का ही है। | "इसका कारण यह है कि राजकुमार के अलावा जो दूसरे छात्र हैं, वह सभी पढ़ लिख कर जिन ज़िम्मेदारियों को निभायेगें वे सामान्य ज़िम्मेदारियाँ होंगीं और उनके द्वारा हुई भूलों का असर समाज के बहुत छोटे हिस्से पर होगा। इस तरह की भूलों को सुधारने के लिए राज्य में कई अधिकारी नियुक्त हैं। राजकुमार यशकीर्ति बड़े होकर महाराज की जगह लेंगे और हमारे राज्य के महाराजा बनेंगे। हमारे राज्य में सबसे बड़ा पद महाराजा का ही है। | ||
यदि कोई भूल या लापरवाही महाराजा से होती है तो उसका असर पूरे राज्य पर पड़ेगा। इस तरह की भूल को सुधारने के लिए महाराज से शक्तिशाली हमारे राज्य में तो कोई नहीं है। फिर उस भूल को कौन सुधारेगा? यही सोचकर मैं राजकुमार की भूलों और लापरवाहियों पर राजकुमार को औरों की अपेक्षा अधिक दंड देता हूँ, जिससे हमारे राज्य को एक योग्य और न्यायप्रिय राजा मिल सके।" | यदि कोई भूल या लापरवाही महाराजा से होती है तो उसका असर पूरे राज्य पर पड़ेगा। इस तरह की भूल को सुधारने के लिए महाराज से अधिक शक्तिशाली हमारे राज्य में तो कोई नहीं है। फिर उस भूल को कौन सुधारेगा? यही सोचकर मैं राजकुमार की भूलों और लापरवाहियों पर राजकुमार को औरों की अपेक्षा अधिक दंड देता हूँ, जिससे हमारे राज्य को एक योग्य और न्यायप्रिय राजा मिल सके।" | ||
"आप सही कहते हैं आचार्य, आप स्वतंत्र रूप से इच्छानुसार राजकुमार को शिक्षा दीजिए, साथ ही मैं आपको अपने राज्य का मंत्री भी नियुक्त करता हूँ।" | "आप सही कहते हैं आचार्य, आप स्वतंत्र रूप से इच्छानुसार राजकुमार को शिक्षा दीजिए, साथ ही मैं आपको अपने राज्य का मंत्री भी नियुक्त करता हूँ।" राजा ने कहा | ||
आचार्य विद्याधर को राज्य का मंत्री नियुक्त कर दिया गया। एक बार दरबार में तीन व्यक्ति अपराधी के रूप में लाये गये। संयोग की बात यह थी कि तीनों ने बिल्कुल एक जैसा ही अपराध किया था। आचार्य ने इस मुक़दमे को बहुत ध्यान से सुना और तीनों अपराधियों को तीन तरह की सज़ा सुनायी। आचार्य विद्याधर ने एक के लिए सज़ा सुनाते हुए कहा- | आचार्य विद्याधर को राज्य का मंत्री नियुक्त कर दिया गया। एक बार दरबार में तीन व्यक्ति अपराधी के रूप में लाये गये। संयोग की बात यह थी कि तीनों ने बिल्कुल एक जैसा ही अपराध किया था। आचार्य ने इस मुक़दमे को बहुत ध्यान से सुना और तीनों अपराधियों को तीन तरह की सज़ा सुनायी। आचार्य विद्याधर ने एक के लिए सज़ा सुनाते हुए कहा- | ||
"इसको ले जाओ और चौराहे पर ले जाकर खम्बे से बाँध दो। इसका मुँह काला करके इसे पच्चीस कोड़े मारकर | "इसको ले जाओ और चौराहे पर ले जाकर खम्बे से बाँध दो। इसका मुँह काला करके इसे पच्चीस कोड़े मारकर छोड़ दो।" | ||
दूसरे के लिए कहा- | दूसरे के लिए कहा- | ||
"इसको रात भर जेल में बंद रखो और सुबह छोड़ दो।" | "इसको रात भर जेल में बंद रखो और सुबह छोड़ दो।" | ||
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विद्याधर ने कहा- | विद्याधर ने कहा- | ||
"महाराज! इसका उत्तर आपको कल मिल जाएगा। इन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पूरा ब्यौरा पता करके मैं आपको कल दे दूँगा। इससे आपको अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। अगले दिन आचार्य विद्याधर ने राजा को प्रश्न का उत्तर दिया- | "महाराज! इसका उत्तर आपको कल मिल जाएगा। इन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पूरा ब्यौरा पता करके मैं आपको कल दे दूँगा। इससे आपको अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। अगले दिन आचार्य विद्याधर ने राजा को प्रश्न का उत्तर दिया- | ||
"महाराज, मैंने उन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पता किया है। जिस अपराधी को मुँह काला करके चौराहे पर कोड़े लगवाये गये थे, वह अब शराब पीकर जुआ खेल रहा है, उस को अपने अपराध और | "महाराज, मैंने उन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पता किया है। जिस अपराधी को मुँह काला करके चौराहे पर कोड़े लगवाये गये थे, वह अब भी शराब पीकर जुआ खेल रहा है, उस को अपने अपराध और दंड से किसी प्रकार की कोई शर्मिंदगी नहीं है। दूसरा अपराधी, जिसे एक रात जेल में रखा गया था, उसे सज़ा से इतनी शर्मिंदगी हुई कि वह सदैव के लिए राज्य छोड़कर चला गया। तीसरा अपराधी जिससे मैंने सिर्फ इतना कहा था कि आप जैसे व्यक्ति से मुझे ऐसे अपराध की उम्मीद नहीं थी, उसे इतनी शर्मिंदगी हुई कि उसने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली।" | ||
राजा ने पूछा- "लेकिन आपको यह कैसे पता चला आचार्य कि तीनों को अलग अलग सज़ा दी जानी चाहिए।" | राजा ने पूछा- "लेकिन आपको यह कैसे पता चला आचार्य कि तीनों को अलग अलग सज़ा दी जानी चाहिए।" | ||
"महाराज! हमारा उद्देश्य अपराध को समाप्त करना है न कि अपराधी को दंडित करना। प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति, आचरण, निष्ठा आदि ऐसे गुण हैं जिनसे वह पहचाना जाता है। जब मैंने इन तीनों अपराधियों की दिनचर्या, आचरण, शिक्षा, पृष्ठभूमि आदि को लेकर कुछ प्रश्न किये तो मुझे मालूम हो गया था कि किस व्यक्ति की क्या प्रकृति है और मैंने यही समझ कर उन्हें भिन्न दंड दिये और उन दंडों का असर भी भिन्न भिन्न ही हुआ।" | "महाराज! हमारा उद्देश्य अपराध को समाप्त करना है न कि अपराधी को दंडित करना। प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति, आचरण, निष्ठा आदि ऐसे गुण हैं जिनसे वह पहचाना जाता है। जब मैंने इन तीनों अपराधियों की दिनचर्या, आचरण, शिक्षा, पृष्ठभूमि आदि को लेकर कुछ प्रश्न किये तो मुझे मालूम हो गया था कि किस व्यक्ति की क्या प्रकृति है और मैंने यही समझ कर उन्हें भिन्न-भिन्न दंड दिये और उन दंडों का असर भी भिन्न-भिन्न ही हुआ।" | ||
आइये अब वापस चलते हैं... | आइये अब वापस चलते हैं... | ||
मनुष्य और जानवर में सामान्य रूप से कुछ अंतर माने जाते हैं। वे हैं- | मनुष्य और जानवर में सामान्य रूप से कुछ अंतर माने जाते हैं। वे हैं- | ||
हँसना, सामान्यत: जानवर हँस नहीं सकते। | हँसना, सामान्यत: जानवर हँस नहीं सकते। | ||
दूसरा अंतर है अँगूठे का इस्तेमाल। जिस तरह मनुष्य अपने अँगूठे और तर्जनी से पॅन-पॅन्सिल पकड़ कर लिखने का काम कर सकता है इस प्रकार कोई जानवर अँगूठे के साथ तर्जनी का इस्तेमाल करके कोई वस्तु नहीं पकड़ सकता। | दूसरा अंतर है अँगूठे का इस्तेमाल। जिस तरह मनुष्य अपने अँगूठे और तर्जनी से पॅन-पॅन्सिल पकड़ कर लिखने का काम कर सकता है इस प्रकार कोई जानवर अँगूठे के साथ तर्जनी का इस्तेमाल करके कोई वस्तु नहीं पकड़ सकता। | ||
तीसरा अंतर है तर्कशक्ति। जानवर अपनी बुद्धि का प्रयोग तार्किक धरातल पर नहीं कर सकते। इसीलिए जानवर को दो प्रकार से ही शिक्षित किया जा सकता है- डरा कर और भोजन के लालच से किंतु मनुष्य के लिए एक तीसरा तरीक़ा भी प्रयोग में लाया गया। वह था प्रेम द्वारा | तीसरा अंतर है तर्कशक्ति। जानवर अपनी बुद्धि का प्रयोग तार्किक धरातल पर नहीं कर सकते। इसीलिए जानवर को दो प्रकार से ही शिक्षित किया जा सकता है- डरा कर और भोजन के लालच से किंतु मनुष्य के लिए एक तीसरा तरीक़ा भी प्रयोग में लाया गया। वह था प्रेम द्वारा सिखाना। तीसरा याने प्रेम से सीखने वाला तरीक़ा सबसे अधिक सहज और प्रभावशाली होता है। | ||
मनुष्य और जानवर में सबसे बड़ा फ़र्क़ यह है कि मनुष्य प्यार की भाषा को समझ कर अपने आचार-व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है और स्वयं को अनुशासित कर सकता है जो कि जानवर नहीं कर सकता। क्या सभी मनुष्य प्यार से सीख लेते हैं ? नहीं ऐसा नहीं है। हरेक मनुष्य ऐसा नहीं कर पाता। इसीलिए नियम और दण्ड विधान बने हैं और सख़्ती से ही लागू किए जाने पर इनका पालन होता है। | मनुष्य और जानवर में सबसे बड़ा फ़र्क़ यह है कि मनुष्य प्यार की भाषा को समझ कर अपने आचार-व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है और स्वयं को अनुशासित कर सकता है जो कि जानवर नहीं कर सकता। क्या सभी मनुष्य प्यार से सीख लेते हैं ? नहीं ऐसा नहीं है। हरेक मनुष्य ऐसा नहीं कर पाता। इसीलिए नियम और दण्ड विधान बने हैं और सख़्ती से ही लागू किए जाने पर इनका पालन होता है। | ||
जो जितना शर्मदार है उतना ही | जो जितना शर्मदार है उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है। जब पानी का जहाज़ डूबता है तो जहाज़ के कप्तान के ज़िम्मेदारी होती है कि वह सभी यात्रियों को बचाए यदि वह सभी यात्रियों को न बचा पाये तो उसे जहाज़ के साथ ही डूबना होता है। कप्तान इसीलिए कप्तान होता है कि वह ज़िम्मेदारी वहन करता है। पुराने समय में दो जहाज़ों के डूबने की घटना प्रसिद्ध हैं। एक इंग्लैण्ड का जहाज़ डूबा तो उन्होंने बूढ़े, बच्चे और स्त्रियों को पहले बचाया और जवान आदमी जहाज़ के साथ डूब गए। इस घटना की पूरे विश्व में प्रशंसा हुई। दूसरी घटना फ्रांस के जहाज़ के डूबने की है जिसमें जवान लोगों ने ख़ुद को बचाया और बूढ़े और स्त्रियों को डूब जाने दिया। इस घटना की पूरे विश्व में निंदा हुई। | ||
आज-कल हालात ही कुछ अजब हैं, जिसे देखो वही ज़िम्मेदारी से भाग रहा है। पुराने दिनों को याद करें तो- [[आंध्र प्रदेश]] के महबूब नगर की एक रेल दुर्घटना (सन् 1956) में 112 लोग मारे गए तत्कालीन रेल मंत्री [[लाल बहादुर शास्त्री]] जी ने इस दुर्घटना की ज़िम्मेदारी लेते हुए तुरंत इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन प्रधान मंत्री [[पं. जवाहरलाल नेहरू]] ने इसे स्वीकार नहीं किया। दोबारा रेल दुर्घटना [[तमिलनाडु]] में हुई तो शास्त्री जी ने फिर त्यागपत्र दे दिया जिसे प्रधान मंत्री ने सदन में यह बताकर स्वीकार कर लिया कि ग़लती शास्त्री जी की नहीं है लेकिन सदन में एक ज़िम्मेदार मंत्री का उदाहरण बनाने के लिए यह इस्तीफ़ा स्वीकार किया जाता है। | |||
एक और उदाहरण देखें- | एक और उदाहरण देखें- | ||
एक बार वैज्ञानिक [[जगदीश चंद्र बोस|जगदीश चंद्र बसु]] जी अपनी खोज का प्रदर्शन कर रहे थे। जिसमें उन्हें साबित करना था कि पेड़-पौधों हमारी तरह ही जीवित हैं। इस प्रदर्शन में उन्हें ज़हर की जगह चीनी पीस कर दे दी गई। बसु ने पौधे पर ज़हर का प्रभाव दिखाने के लिए पौधे को चीरा लगा कर उसमें ज़हर भर दिया। पौधे पर कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने यह कहते हुए उसे खा लिया कि जो ज़हर पौधे पर असर विहीन है वह मुझे भी नहीं मार सकता। उनके विश्वास और अपने किए हुए के प्रति ज़िम्मेदारी के अहसास ने ही उनसे ऐसा करवाया। | एक बार वैज्ञानिक [[जगदीश चंद्र बोस|जगदीश चंद्र बसु]] जी अपनी खोज का प्रदर्शन कर रहे थे। जिसमें उन्हें साबित करना था कि पेड़-पौधों हमारी तरह ही जीवित हैं। इस प्रदर्शन में उन्हें ज़हर की जगह चीनी पीस कर दे दी गई। बसु ने पौधे पर ज़हर का प्रभाव दिखाने के लिए पौधे को चीरा लगा कर उसमें ज़हर भर दिया। पौधे पर कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने यह कहते हुए उसे खा लिया कि जो ज़हर पौधे पर असर विहीन है वह मुझे भी नहीं मार सकता। उनके विश्वास और अपने किए हुए के प्रति ज़िम्मेदारी के अहसास ने ही उनसे ऐसा करवाया। | ||
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-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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Latest revision as of 08:02, 1 August 2013
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी न जाने कितनी पुरानी बात है कि आचार्य विद्याधर नाम के एक शिक्षक अपना गुरुकुल नगरों की भीड़-भाड़ से दूर एकांत में चलाते थे। दूर-दूर से अनेक धनाढ्यों और निर्धनों के बच्चे उनके यहाँ शिक्षा लेने आते थे। राज्य के राजा का पुत्र भी उनसे गुरुकुल में ही रहकर शिक्षा ले रहा था। आचार्य किसी छात्र से ग़लती या लापरवाही होने पर उनको मारते-पीटते नहीं थे लेकिन शारीरिक श्रम करने का दण्ड अवश्य देते थे, जैसे खुरपी से क्यारियाँ बनवाना, लम्बी-लम्बी दौड़ लगवाना या आश्रम के लिए भोजन बनवाने और सफाई आदि में सहायता देना। राजा का बेटा भी इस प्रकार के दण्ड का भागी बनता था। कई वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरांत छात्रों को अपने परिवार से मिलने की अनुमति दी जाती थी, जिससे कि छात्र अपने परिवारीजनों के साथ भी रह सके। तीन वर्ष के उपरांत राजकुमार यशकीर्ति को भी अपने राजमहल भेज दिया गया। राजमहल में रानी ने अपने पुत्र से उसका हालचाल पूछा- |