गोपाचल पर्वत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''गोपाचल पर्वत''' ग्वालियर, मध्य प्रदेश में ग्वालि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Gopachal-Parvat.jpg|thumb|250px|मूर्ति, गोपाचल पर्वत]]
'''गोपाचल पर्वत''' [[ग्वालियर]], [[मध्य प्रदेश]] में ग्वालियर क़िले के अंचल में स्थित है। यह स्थान [[जैन]] मूर्तियों के समूहों के लिए प्रसिद्ध है। [[पर्वत]] को तराशकर यहाँ पर सन 1398 से 1536 के मध्य हज़ारों विशाल दिगंबर जैन मूर्तियों का निर्माण किया गया था। [[तोमर|तोमर वंश]] के राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह के शासन काल में इन विशाल मूर्तियों का निर्माण किया गया था।
'''गोपाचल पर्वत''' [[ग्वालियर]], [[मध्य प्रदेश]] में ग्वालियर क़िले के अंचल में स्थित है। यह स्थान [[जैन]] मूर्तियों के समूहों के लिए प्रसिद्ध है। [[पर्वत]] को तराशकर यहाँ पर सन 1398 से 1536 के मध्य हज़ारों विशाल दिगंबर जैन मूर्तियों का निर्माण किया गया था। [[तोमर|तोमर वंश]] के राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह के शासन काल में इन विशाल मूर्तियों का निर्माण किया गया था।
====जैन तीर्थ स्थल====
====जैन तीर्थ स्थल====
गोपाचल पर्वत सृष्टि को [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] तथा [[हिन्दू धर्म]] में आई बलि-प्रथा को पूर्णत: समाप्त करने का सन्देश देता है। यहाँ रूढ़ियों तथा आडम्बरों में सुधार करने वाले [[जैन धर्म]] के [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। इनमें छह इंच से लेकर 57 फुट तक की मूर्तियाँ भी बनाई गईं। इन मूर्तियों में 'आदिनाथ' ([[ऋषभदेव]]) भगवान की बावनगजा तथा भगवान [[पार्श्वनाथ तीर्थंकर|पार्श्वनाथ]] की पद्मासन प्रतिमाएँ भी शामिल हैं। जैन मूर्तियों की दृष्टि से ग्वालियर दुर्ग जैन तीर्थ है, इसलिए इस पहाड़ी को '''जैनगढ़''' के नाम से भी जाना जाता है।
गोपाचल पर्वत सृष्टि को [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] तथा [[हिन्दू धर्म]] में आई बलि-प्रथा को पूर्णत: समाप्त करने का सन्देश देता है। यहाँ रूढ़ियों तथा आडम्बरों में सुधार करने वाले [[जैन धर्म]] के [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। इनमें छह इंच से लेकर 57 फुट तक की मूर्तियाँ भी बनाई गईं। इन मूर्तियों में 'आदिनाथ' ([[ऋषभदेव]]) भगवान की बावनगजा तथा भगवान [[पार्श्वनाथ तीर्थंकर|पार्श्वनाथ]] की पद्मासन प्रतिमाएँ भी शामिल हैं। जैन मूर्तियों की दृष्टि से ग्वालियर दुर्ग जैन तीर्थ है, इसलिए इस पहाड़ी को '''जैनगढ़''' के नाम से भी जाना जाता है।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Religious-Places/Gopachal-Parvat|title=गोपाचल पर्वत|accessmonthday=14 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
====किंवदंतियाँ====
====किंवदंतियाँ====
यह किंवदंती है कि डूंगरसिंह ने जिस श्रद्धा एवं [[भक्ति]] से जैनमत का पोषण किया था, उसके विपरीत [[शेरशाह सूरी]] ने [[पर्वत]] की इन मूर्तियों को तोड़ा और उन्हें खण्डित करवा दिया। उसने एक बार स्वयं पार्श्वनाथ की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार उठाई थी, लेकिन उस समय उसकी भुजाओं में शक्ति नहीं रह गई। इस चमत्कार से भयभीत होकर शेरशाह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। बाद में [[मुग़ल]] सम्राट [[अकबर]] ने [[चंद्रप्रभ]] की मूर्ति हटवाकर, [[बाबर]] की सेना की मदद करने वाले 'मोहम्मद गौस' के शव को वहाँ दफना दिया, जिसे आज 'मोहम्मद गौस का मक़बरा' कहा जाता है। इसका प्रमाण महाकवि खड़गराय की इन पंक्तियों से प्राप्त हो जाता है-
यह किंवदंती है कि डूंगरसिंह ने जिस श्रद्धा एवं [[भक्ति]] से जैनमत का पोषण किया था, उसके विपरीत [[शेरशाह सूरी]] ने [[पर्वत]] की इन मूर्तियों को तोड़ा और उन्हें खण्डित करवा दिया। उसने एक बार स्वयं पार्श्वनाथ की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार उठाई थी, लेकिन उस समय उसकी भुजाओं में शक्ति नहीं रह गई। इस चमत्कार से भयभीत होकर शेरशाह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। बाद में [[मुग़ल]] सम्राट [[अकबर]] ने [[चंद्रप्रभ]] की मूर्ति हटवाकर, [[बाबर]] की सेना की मदद करने वाले 'मोहम्मद गौस' के शव को वहाँ दफना दिया, जिसे आज 'मोहम्मद गौस का मक़बरा' कहा जाता है। इसका प्रमाण महाकवि खड़गराय की इन पंक्तियों से प्राप्त हो जाता है-
Line 8: Line 9:


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
==वीथिका==
<gallery>
चित्र:Gopachal-Parvat-1.jpg|मूर्ति, गोपाचल पर्वत
चित्र:Gopachal-Parvat-2.jpg|मूर्तियाँ, गोपाचल पर्वत
</gallery>
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
Line 14: Line 20:
{{जैन धर्म}}
{{जैन धर्म}}
  [[Category:जैन धर्म]]
  [[Category:जैन धर्म]]
[[Category:जैन धर्म कोश]]
[[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
[[Category:जैन धार्मिक स्थल]]
[[Category:जैन धार्मिक स्थल]]
[[Category:जैन मन्दिर]]
[[Category:जैन मन्दिर]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 13:41, 21 March 2014

thumb|250px|मूर्ति, गोपाचल पर्वत गोपाचल पर्वत ग्वालियर, मध्य प्रदेश में ग्वालियर क़िले के अंचल में स्थित है। यह स्थान जैन मूर्तियों के समूहों के लिए प्रसिद्ध है। पर्वत को तराशकर यहाँ पर सन 1398 से 1536 के मध्य हज़ारों विशाल दिगंबर जैन मूर्तियों का निर्माण किया गया था। तोमर वंश के राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह के शासन काल में इन विशाल मूर्तियों का निर्माण किया गया था।

जैन तीर्थ स्थल

गोपाचल पर्वत सृष्टि को अहिंसा तथा हिन्दू धर्म में आई बलि-प्रथा को पूर्णत: समाप्त करने का सन्देश देता है। यहाँ रूढ़ियों तथा आडम्बरों में सुधार करने वाले जैन धर्म के तीर्थंकरों की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। इनमें छह इंच से लेकर 57 फुट तक की मूर्तियाँ भी बनाई गईं। इन मूर्तियों में 'आदिनाथ' (ऋषभदेव) भगवान की बावनगजा तथा भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमाएँ भी शामिल हैं। जैन मूर्तियों की दृष्टि से ग्वालियर दुर्ग जैन तीर्थ है, इसलिए इस पहाड़ी को जैनगढ़ के नाम से भी जाना जाता है।[1]

किंवदंतियाँ

यह किंवदंती है कि डूंगरसिंह ने जिस श्रद्धा एवं भक्ति से जैनमत का पोषण किया था, उसके विपरीत शेरशाह सूरी ने पर्वत की इन मूर्तियों को तोड़ा और उन्हें खण्डित करवा दिया। उसने एक बार स्वयं पार्श्वनाथ की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार उठाई थी, लेकिन उस समय उसकी भुजाओं में शक्ति नहीं रह गई। इस चमत्कार से भयभीत होकर शेरशाह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। बाद में मुग़ल सम्राट अकबर ने चंद्रप्रभ की मूर्ति हटवाकर, बाबर की सेना की मदद करने वाले 'मोहम्मद गौस' के शव को वहाँ दफना दिया, जिसे आज 'मोहम्मद गौस का मक़बरा' कहा जाता है। इसका प्रमाण महाकवि खड़गराय की इन पंक्तियों से प्राप्त हो जाता है-

विधिना विधि ऐसी दई, सोई भई जु आइ,
इन्द्र प्रभु के धौंहरे, रहे गौस सुख पाई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोपाचल पर्वत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 मार्च, 2012।

संबंधित लेख