तामेश्वरनाथ मंदिर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "करीब" to "क़रीब")
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
(7 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{पुनरीक्षण}}
संत कबीर नगर जनपद मुख्यालय खलीलाबाद से मात्र सात कि.मी. की दूरी पर स्थित देवाधिदेव महादेव बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर (तामेश्वरनाथ धाम) की महत्ता अन्नत (आदि) काल से चली आ रही है। वर्तमान में भी इस स्थान की महिमा व आस्था का केन्द्र होने के कारण भक्तों का तांता लगा रहता है।  
संत कबीर नगर जनपद मुख्यालय [[खलीलाबाद]] से मात्र सात कि.मी. की दूरी पर स्थित देवाधिदेव महादेव बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर (तामेश्वरनाथ धाम) की महत्ता अन्नत (आदि) काल से चली आ रही है। वर्तमान में भी इस स्थान की महिमा व आस्था का केन्द्र होने के कारण भक्तों का तांता लगा रहता है।  
[[चित्र:Tameshwar-Nath temple.jpg|thumb|350px| बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर (तामेश्वरनाथ धाम)]]
[[चित्र:Tameshwar-Nath temple.jpg|thumb|350px| बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर (तामेश्वरनाथ धाम)]]
;कालांतर में तामेश्वरनाथ मंदिर  
;कालांतर में तामेश्वरनाथ मंदिर  
जनश्रुति के अनुसार यह स्थल महाभारत काल में महाराजा विराट के राज्य का जंगली इलाका रहा। यहां पांडवों का वनवास क्षेत्र रहा है और अज्ञातवास के दौरान कुंती ने पांडवों के साथ यहां कुछ दिनों तक निवास किया था। इसी स्थल पर माता कुंती ने शिवलिंग की स्थापना की थी, यह वही शिवलिंग है।  
जनश्रुति के अनुसार यह स्थल महाभारत काल में महाराजा विराट के राज्य का जंगली इलाका रहा। यहां पांडवों का वनवास क्षेत्र रहा है और अज्ञातवास के दौरान कुंती ने पांडवों के साथ यहां कुछ दिनों तक निवास किया था। इसी स्थल पर माता कुंती ने शिवलिंग की स्थापना की थी, यह वही शिवलिंग है।  


यही वह स्थान है जहां क़रीब ढाई हजार वर्ष पूर्व दुनिया में बौद्ध धर्म का संदेश का परचम लहराने वाले महात्मा बुद्ध ने मुण्डन संस्कार कराने के पश्चात अपने राजश्री वस्त्रों का परित्याग कर दिया था। भगवान बुद्ध के यहां मुण्डन संस्कार कराने के नाते यह स्थान मुंडन के लिए प्रसिद्ध है। महाशिव रात्रि पर यहां भारी संख्या में लोग यहां अपने बच्चों का मुंडन कराने के लिए उपस्थित होते है।  
यही वह स्थान है जहां क़रीब ढाई हज़ार वर्ष पूर्व दुनिया में बौद्ध धर्म का संदेश का परचम लहराने वाले महात्मा बुद्ध ने मुण्डन संस्कार कराने के पश्चात् अपने राजश्री वस्त्रों का परित्याग कर दिया था। भगवान बुद्ध के यहां मुण्डन संस्कार कराने के नाते यह स्थान मुंडन के लिए प्रसिद्ध है। महाशिव रात्रि पर यहां भारी संख्या में लोग यहां अपने बच्चों का मुंडन कराने के लिए उपस्थित होते है।  


;तामेश्वरनाथ मंदिर और महंत
;तामेश्वरनाथ मंदिर और महंत
Line 18: Line 18:
;शिवलिंग के बारे में किवदंती  
;शिवलिंग के बारे में किवदंती  
[[चित्र:Tameshwar-Nath shivling.jpg|thumb|350px| बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर का शिवलिंग]]
[[चित्र:Tameshwar-Nath shivling.jpg|thumb|350px| बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर का शिवलिंग]]
ताम्रवर्ण के शिवलिंग तामेश्वरनाथ के बारे में किवदंती है कि साढ़े तीन सौ साल पहले खलीलाबाद से 8 किमी दक्षिण एक वृद्धा ब्राह्मणी को मायके पैदल जाते समय, खेत में कुछ उभरे तामई वर्ण के शिवलिंग का पहले साक्षात्कार हुआ। इसकी जानकारी जब अन्य लोगों को हुई तो उत्सुकता वश उसे खोद कर निकालना चाहा पर उसकी जड़ नहीं पा सके। इस अचानक निकले शिवलिंग की चर्चा औरंगजेब के कारकून खलीलुर्रहमान (नवाब) तक पहुंची तो उसने मजदूर लगवाकर उसे खेत से निकाल कर अन्यत्र ले जाने का प्रयास किया। पूरे दिन खुदाई करने के बाद भी रात में फिर मंदिर जस का तस हो जाता था। यह क्रम महीनों चलता रहा जिससे क्षुब्ध होकर नवाब ने मूर्ति ही निकालनी चाही तो शिव लिंग के पास भारी संख्या में बिच्छू, सर्प व मधुमक्खियां निकलने लगी और कई लोगों की जाने गयीं। घबराकर उसने काम बंद करवा दिया। मजबूर होकर नवाब को फैसला वापस लेना पड़ा। अंत में हिंदू मान्यता का समादर करते हुए वहीं मंदिर बनाकर छत लगाना पड़ा। तब से इस स्थान का महात्म्य बढ़ गया। बाद में ज्यो ज्यो लोगों की मनौतियां पूरी होती गई आस्था बढ़ती गई।  
ताम्रवर्ण के शिवलिंग तामेश्वरनाथ के बारे में किवदंती है कि साढ़े तीन सौ साल पहले [[खलीलाबाद]] से 8 किमी दक्षिण एक वृद्धा ब्राह्मणी को मायके पैदल जाते समय, खेत में कुछ उभरे तामई वर्ण के शिवलिंग का पहले साक्षात्कार हुआ। इसकी जानकारी जब अन्य लोगों को हुई तो उत्सुकता वश उसे खोद कर निकालना चाहा पर उसकी जड़ नहीं पा सके। इस अचानक निकले शिवलिंग की चर्चा औरंगजेब के कारकून खलीलुर्रहमान (नवाब) तक पहुंची तो उसने मज़दूर लगवाकर उसे खेत से निकाल कर अन्यत्र ले जाने का प्रयास किया। पूरे दिन खुदाई करने के बाद भी रात में फिर मंदिर जस का तस हो जाता था। यह क्रम महीनों चलता रहा जिससे क्षुब्ध होकर नवाब ने मूर्ति ही निकालनी चाही तो शिव लिंग के पास भारी संख्या में बिच्छू, सर्प व मधुमक्खियां निकलने लगी और कई लोगों की जाने गयीं। घबराकर उसने काम बंद करवा दिया। मजबूर होकर नवाब को फैसला वापस लेना पड़ा। अंत में हिंदू मान्यता का समादर करते हुए वहीं मंदिर बनाकर छत लगाना पड़ा। तब से इस स्थान का महात्म्य बढ़ गया। बाद में ज्यो ज्यो लोगों की मनौतियां पूरी होती गई आस्था बढ़ती गई।  


;तामेश्वरनाथ मंदिर में पूजा पाठ  
;तामेश्वरनाथ मंदिर में पूजा पाठ  
तामेश्वरनाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का यही कहना है कि यहां मनौती करने वालों की सारी मनोकामनाएं यहां दर्शन और जलाभिषेक करने से पूर्ण हो जाती हैं। तामेश्वरनाथ मे वैसे तो हर सोमवार को लोग आकर जलाभिषेक करते है और मेला जैसा दृश्य रहता है। लेकिन वर्ष में तीन बार यहां विशाल मेला लगता है जिसमें ज़िले ही नहीं पूरे पूर्वांचल के लोग जुटकर जलाभिषेक करते है।  
तामेश्वरनाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का यही कहना है कि यहां मनौती करने वालों की सारी मनोकामनाएं यहां दर्शन और जलाभिषेक करने से पूर्ण हो जाती हैं। तामेश्वरनाथ मे वैसे तो हर सोमवार को लोग आकर जलाभिषेक करते है और मेला जैसा दृश्य रहता है। लेकिन वर्ष में तीन बार यहां विशाल मेला लगता है जिसमें ज़िले ही नहीं पूरे पूर्वांचल के लोग जुटकर जलाभिषेक करते है।  


इस स्थान पर अनेक संतों और महात्माओं ने अनुष्ठान एवं सत्संग के आयोजन किए है। पर इस क्षेत्र के लोग जो देश विदेश में कार्यरत हैं, वे भी घर आने पर भगवान शिव का अभिषेक एवं पूजा पाठ कराते हैं। लोगों के अनुसार यहां अंगे्रजों के जमाने में अचानक काशी से एक फक्कड़ बाबा पहुंचे। उनका मन यहां रम गया। उनके पास जो भी अपना दुख दर्द लेकर पहुंचता था तो वे कहते बाबा को जल चढ़ाओ, बाबा से मांगो, पर स्वयं से मांगने पर गाली देते थे। शिवरात्रि पर सुदूर प्रांतों से भी लोग यहां दर्शन पूजा के लिए आते हैं। स्वामी करपात्रीजी, जगद्गुरु शंकराचार्य अभिनव विद्यार्थी जी महाराज, महर्षि देवरहवा बाबा आदि महापुरुषों ने इस मंदिर पर आकर पूजा अर्चना की है।
इस स्थान पर अनेक संतों और महात्माओं ने अनुष्ठान एवं सत्संग के आयोजन किए है। पर इस क्षेत्र के लोग जो देश विदेश में कार्यरत हैं, वे भी घर आने पर भगवान शिव का अभिषेक एवं पूजा पाठ कराते हैं। लोगों के अनुसार यहां अंगे्रजों के जमाने में अचानक काशी से एक फक्कड़ बाबा पहुंचे। उनका मन यहां रम गया। उनके पास जो भी अपना दु:ख दर्द लेकर पहुंचता था तो वे कहते बाबा को जल चढ़ाओ, बाबा से मांगो, पर स्वयं से मांगने पर गाली देते थे। शिवरात्रि पर सुदूर प्रांतों से भी लोग यहां दर्शन पूजा के लिए आते हैं। स्वामी करपात्रीजी, जगद्गुरु शंकराचार्य अभिनव विद्यार्थी जी महाराज, महर्षि देवरहवा बाबा आदि महापुरुषों ने इस मंदिर पर आकर पूजा अर्चना की है।


श्रावण मास के शुभारम्भ से पूर्व ही मेले जैसा दृश्य रहता है। श्रावण मास में जलाभिषेक के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु उमड़े रहते है। कावंरियों व शिव भक्तों के जमावड़े से धाम गुलजार रहती है। सोमवार को यह दृश्य देखते ही बनता जब जयकारे से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहता है। तेरस पर्व के अवसर पर भारी तादाद में श्रद्धालु लोग दूर -दराज से यहां पहुंचते है।  
श्रावण मास के शुभारम्भ से पूर्व ही मेले जैसा दृश्य रहता है। श्रावण मास में जलाभिषेक के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु उमड़े रहते है। कावंरियों व शिव भक्तों के जमावड़े से धाम गुलज़ार रहती है। सोमवार को यह दृश्य देखते ही बनता जब जयकारे से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहता है। तेरस पर्व के अवसर पर भारी तादाद में श्रद्धालु लोग दूर -दराज से यहां पहुंचते है।  


;तामेश्वरनाथ मंदिर पर मेला
;तामेश्वरनाथ मंदिर पर मेला
Line 34: Line 34:




{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{उत्तर प्रदेश के मन्दिर}}{{उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल}}
[[Category:नया पन्ना अक्टूबर-2011]]
[[Category:उत्तर प्रदेश के मन्दिर]][[Category:उत्तर_प्रदेश]][[Category:उत्तर_प्रदेश_के_धार्मिक_स्थल]][[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]]
 
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_धार्मिक_स्थल]][[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]]

Latest revision as of 07:47, 23 June 2017

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

संत कबीर नगर जनपद मुख्यालय खलीलाबाद से मात्र सात कि.मी. की दूरी पर स्थित देवाधिदेव महादेव बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर (तामेश्वरनाथ धाम) की महत्ता अन्नत (आदि) काल से चली आ रही है। वर्तमान में भी इस स्थान की महिमा व आस्था का केन्द्र होने के कारण भक्तों का तांता लगा रहता है। thumb|350px| बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर (तामेश्वरनाथ धाम)

कालांतर में तामेश्वरनाथ मंदिर

जनश्रुति के अनुसार यह स्थल महाभारत काल में महाराजा विराट के राज्य का जंगली इलाका रहा। यहां पांडवों का वनवास क्षेत्र रहा है और अज्ञातवास के दौरान कुंती ने पांडवों के साथ यहां कुछ दिनों तक निवास किया था। इसी स्थल पर माता कुंती ने शिवलिंग की स्थापना की थी, यह वही शिवलिंग है।

यही वह स्थान है जहां क़रीब ढाई हज़ार वर्ष पूर्व दुनिया में बौद्ध धर्म का संदेश का परचम लहराने वाले महात्मा बुद्ध ने मुण्डन संस्कार कराने के पश्चात् अपने राजश्री वस्त्रों का परित्याग कर दिया था। भगवान बुद्ध के यहां मुण्डन संस्कार कराने के नाते यह स्थान मुंडन के लिए प्रसिद्ध है। महाशिव रात्रि पर यहां भारी संख्या में लोग यहां अपने बच्चों का मुंडन कराने के लिए उपस्थित होते है।

तामेश्वरनाथ मंदिर और महंत

इसके बाद इस स्थान की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती गयी और कालांतर में यह ताम्रगढ़ बांसी नरेश राज्य में आ गया जिन्होंने यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की भारी तादाद को देखते हुए मंदिर का निर्माण कराया। जहां स्थापित शिव लिंग पर जलाभिषेक व यहां रूद्धाभिषेक, शिव आराधना के लिए दूर-दराज के भक्त आते और मनवांछित फल प्राप्त करते रहते हैं।

बांसी के राजा ने क़रीब डेढ़ सौ साल पहले मंदिर की पूजा अर्चना के लिए गोरखपुर जनपद के हरनही के समीप जैसरनाथ गांव से गुसाई परिवार बुलाकर उन्हें जिम्मदारी सौंप दी। तबसे उन्हीं के वंशज यहां के पूजा पाठ का जिम्मा संभाल रहे हैं। इस बात की पुष्टि अवकाश प्राप्त शिक्षक और महंत रामरक्षा भारती करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों में एक बुजुर्ग ने तामेश्वरनाथ मंदिर के सामने जीवित समाधि ले ली थी, वे सिद्ध व्यक्ति थे। उनकी समाधि पर आज भी शिवार्चन के बाद गुड़भंगा चढ़ाया जाता है।

यह मंदिर आठ फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। इससे प्राचीन मंदिर परिसर में छोटे-बड़े नौ और सटे ही पांच अन्य मन्दिर है। इनमें एक मंदिर मुख्य मंदिर के ठीक सामने है जो देवताओं का नहीं अपितु देव स्वरूप उस मानव का है जिसने जीते जी यहां पर समाधि ले ली थी। समाधि लिए मानव के बारे में लोगों का कहना है कि वह समय समय पर उपस्थित होकर विघ्र बाधा व कठिनाईयों का निराकरण करते है, जिन्हें गोस्वामी बुझावन भारती बाबा के नाम से पुकारा जाता है। इन्हीं के वंशज यहां के गोस्वामी भारतीगण है, जो बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर की देखभाल करते है।

इस स्थान का नाम ताम्रगढ़ और बाद में तामा पड़ा। बताया जाता है कि तामा गांव के उत्तर दो बड़े तालाब थे जिसे वर्तमान में लठियहवां व झझवा नाम से पुकारा जाता है। पूरब दिशा में भी इसी तरह का तालाब-पोखरे व भीटा स्थित है। इसके सटे ही कोटिया है। इस नाम से प्रतीत होता है कि यहां पर कोई कोटि या दुर्ग रहा है। पुराने लोगों का यह भी कहना है कि यहां पहले थारू जाति के लोग रहा करते थे। इसका बिगड़ा रूप तामा है जो अब तामेश्वरनाथ धाम नाम से प्रचलित है। लोगों का मानना है मंदिर निर्माण से पूर्व शिव लिंग ऊपर उठ गया था और ऐसा शिव लिंग किसी भी स्थान पर नहीं मिलता। मंदिर के ठीक पूरब ईटों से बना एक विशाल पोखरा है। यहीं से जल लेकर लोग जलाभिषेक करते है। बताया जाता है कि प्रसिद्ध संत देवरहवा बाबा को यहीं से प्रेरणा प्राप्त हुई थी।

शिवलिंग के बारे में किवदंती

thumb|350px| बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर का शिवलिंग ताम्रवर्ण के शिवलिंग तामेश्वरनाथ के बारे में किवदंती है कि साढ़े तीन सौ साल पहले खलीलाबाद से 8 किमी दक्षिण एक वृद्धा ब्राह्मणी को मायके पैदल जाते समय, खेत में कुछ उभरे तामई वर्ण के शिवलिंग का पहले साक्षात्कार हुआ। इसकी जानकारी जब अन्य लोगों को हुई तो उत्सुकता वश उसे खोद कर निकालना चाहा पर उसकी जड़ नहीं पा सके। इस अचानक निकले शिवलिंग की चर्चा औरंगजेब के कारकून खलीलुर्रहमान (नवाब) तक पहुंची तो उसने मज़दूर लगवाकर उसे खेत से निकाल कर अन्यत्र ले जाने का प्रयास किया। पूरे दिन खुदाई करने के बाद भी रात में फिर मंदिर जस का तस हो जाता था। यह क्रम महीनों चलता रहा जिससे क्षुब्ध होकर नवाब ने मूर्ति ही निकालनी चाही तो शिव लिंग के पास भारी संख्या में बिच्छू, सर्प व मधुमक्खियां निकलने लगी और कई लोगों की जाने गयीं। घबराकर उसने काम बंद करवा दिया। मजबूर होकर नवाब को फैसला वापस लेना पड़ा। अंत में हिंदू मान्यता का समादर करते हुए वहीं मंदिर बनाकर छत लगाना पड़ा। तब से इस स्थान का महात्म्य बढ़ गया। बाद में ज्यो ज्यो लोगों की मनौतियां पूरी होती गई आस्था बढ़ती गई।

तामेश्वरनाथ मंदिर में पूजा पाठ

तामेश्वरनाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का यही कहना है कि यहां मनौती करने वालों की सारी मनोकामनाएं यहां दर्शन और जलाभिषेक करने से पूर्ण हो जाती हैं। तामेश्वरनाथ मे वैसे तो हर सोमवार को लोग आकर जलाभिषेक करते है और मेला जैसा दृश्य रहता है। लेकिन वर्ष में तीन बार यहां विशाल मेला लगता है जिसमें ज़िले ही नहीं पूरे पूर्वांचल के लोग जुटकर जलाभिषेक करते है।

इस स्थान पर अनेक संतों और महात्माओं ने अनुष्ठान एवं सत्संग के आयोजन किए है। पर इस क्षेत्र के लोग जो देश विदेश में कार्यरत हैं, वे भी घर आने पर भगवान शिव का अभिषेक एवं पूजा पाठ कराते हैं। लोगों के अनुसार यहां अंगे्रजों के जमाने में अचानक काशी से एक फक्कड़ बाबा पहुंचे। उनका मन यहां रम गया। उनके पास जो भी अपना दु:ख दर्द लेकर पहुंचता था तो वे कहते बाबा को जल चढ़ाओ, बाबा से मांगो, पर स्वयं से मांगने पर गाली देते थे। शिवरात्रि पर सुदूर प्रांतों से भी लोग यहां दर्शन पूजा के लिए आते हैं। स्वामी करपात्रीजी, जगद्गुरु शंकराचार्य अभिनव विद्यार्थी जी महाराज, महर्षि देवरहवा बाबा आदि महापुरुषों ने इस मंदिर पर आकर पूजा अर्चना की है।

श्रावण मास के शुभारम्भ से पूर्व ही मेले जैसा दृश्य रहता है। श्रावण मास में जलाभिषेक के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु उमड़े रहते है। कावंरियों व शिव भक्तों के जमावड़े से धाम गुलज़ार रहती है। सोमवार को यह दृश्य देखते ही बनता जब जयकारे से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहता है। तेरस पर्व के अवसर पर भारी तादाद में श्रद्धालु लोग दूर -दराज से यहां पहुंचते है।

तामेश्वरनाथ मंदिर पर मेला

तामेश्वरनाथ धाम में शिवरात्रि पर्व पर मेले हर साल दस दिनों तक चलता है।

पर्यटन स्थल

ऐतिहासिक शिवमंदिर तामेश्वरनाथ को पर्यटन स्थल घोषित किया जा चुका है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख