मूँगफली: Difference between revisions

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*आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में 'कोरोमण्डल' तथा उत्तरी सरकार तट पर 'कोरोमण्डल' या 'मारीशस' किस्म बोयी जाती है। मुख्य उत्पादक आन्ध्र प्रदेश में [[चित्तूर ज़िला|चित्तूर]], [[अनन्तपुर ज़िला|अनन्तपुर]] और [[कुर्नूल]] ज़िले तथा तमिलनाडु में [[सलेम ज़िला|सलेम]], [[तिरुचिरापल्ली ज़िला|तिरुचिरापल्ली]], उत्तरी और दक्षिणी [[अर्काट]] और [[कोयम्बटूर ज़िला|कोयम्बटूर]] ज़िले हैं।
*आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में 'कोरोमण्डल' तथा उत्तरी सरकार तट पर 'कोरोमण्डल' या 'मारीशस' किस्म बोयी जाती है। मुख्य उत्पादक आन्ध्र प्रदेश में [[चित्तूर ज़िला|चित्तूर]], [[अनन्तपुर ज़िला|अनन्तपुर]] और [[कुर्नूल]] ज़िले तथा तमिलनाडु में [[सलेम ज़िला|सलेम]], [[तिरुचिरापल्ली ज़िला|तिरुचिरापल्ली]], उत्तरी और दक्षिणी [[अर्काट]] और [[कोयम्बटूर ज़िला|कोयम्बटूर]] ज़िले हैं।
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====अन्य प्रदेश====
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#[[मध्य प्रदेश]] में [[मंदसौर ज़िला|मंदसौर]], पश्चिमी निमाड़ और [[धार ज़िला|धार]] ज़िले।
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==राज्यों की पैदावार==
==राज्यों की पैदावार==
मूँगफली के उत्पादन की दृष्टि से देश में [[गुजरात]] का प्रथम स्थान है, जहाँ कुल उत्पादन की 35.95 प्रतिशत मूँगफली पैदा होती है। इसके बाद [[आन्ध्र प्रदेश]] (28.32 प्रतिशत) का दूसरा स्थान और [[तमिलनाडु]] (11.84 प्रतिशत) का तीसरा स्थान है। शेष उत्पादक राज्यों में आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा हैं। पहले मूँगफली एवं उसके तेल का निर्यात, विशेषतः पश्चिमी [[यूरोप]] को किया जाता था, किन्तु अब देश में ही खाद्य-तेलों के अभाव होने से इनका निर्यात नहीं किया जाता है। मूँगफली की खेती का निर्यात अवश्य किया जाता है। कुल उत्पादन का 10 प्रतिशत भूनकर खाने में, 80 प्रतिशत तेल बनान में तथा शेष 10 प्रतिशत अन्य कार्यों एवं बीज में उपयोग होता है।
मूँगफली के उत्पादन की दृष्टि से देश में [[गुजरात]] का प्रथम स्थान है, जहाँ कुल उत्पादन की 35.95 प्रतिशत मूँगफली पैदा होती है। इसके बाद [[आन्ध्र प्रदेश]] (28.32 प्रतिशत) का दूसरा स्थान और [[तमिलनाडु]] (11.84 प्रतिशत) का तीसरा स्थान है। शेष उत्पादक राज्यों में आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा हैं। पहले मूँगफली एवं उसके तेल का निर्यात, विशेषतः पश्चिमी [[यूरोप]] को किया जाता था, किन्तु अब देश में ही खाद्य-तेलों के अभाव होने से इनका निर्यात नहीं किया जाता है। मूँगफली की खेती का निर्यात अवश्य किया जाता है। कुल उत्पादन का 10 प्रतिशत भूनकर खाने में, 80 प्रतिशत तेल बनान में तथा शेष 10 प्रतिशत अन्य कार्यों एवं बीज में उपयोग होता है।
====मूँगफली के गुण====
==गुण==
मूँगफली शरीर में गर्मी पैदा करती है, इसलिए सर्दी के मौसम में ज़्यादा लाभदायक है। यह खाँसी में उपयोगी है व मेदे और [[फेफड़ा|फेफड़े]] को बल देती है। इसे भोजन के साथ भारत की शाक-सब्ज़ी, खीर, खिचड़ी आदि में डालकर नित्य खाना चाहिए। मूँगफली में तेल का अंश होने से यह वायु की बीमारियों को भी नष्ट करती है।  
मूँगफली शरीर में गर्मी पैदा करती है, इसलिए सर्दी के मौसम में ज़्यादा लाभदायक है। यह खाँसी में उपयोगी है व मेदे और [[फेफड़ा|फेफड़े]] को बल देती है। इसे भोजन के साथ भारत की शाक-सब्ज़ी, खीर, खिचड़ी आदि में डालकर नित्य खाना चाहिए। मूँगफली में तेल का अंश होने से यह वायु की बीमारियों को भी नष्ट करती है।
==टिक्का रोग==
[[चित्र:Tikka-Disease.jpg|thumb|250px|टिक्का रोग, मूँगफली]]
टिक्का रोग मूंगफली की फसल में होने वाली एक प्रमुख बीमारी है। यह बीमारी पौधों के पत्तों में दिखाई देती है। इससे पत्तों में धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं। जब मूंगफली के पौधें की उम्र 1- 2 महीने की हो जाती है, तब मेजबान पत्तियों पर धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं। बाद में तने पर परिगलित घाव भी दिखाई देते हैं। जीनस सरकसपोरा (Cercospora) की दो अलग-अलग प्रजातियों के कारण मूंगफली के दो पत्ती धब्बे रोग हैं। इसका दूसरा प्रमुख कारण होता है [[मौसम]] में होने वाला बदलाव, अक्सर बारिश व अत्यधिक [[धूप]] या गर्मी की वजह से यह रोग पनपता है।<ref name="pp">{{cite web |url= https://hindi.krishijagran.com/farm-activities/know-what-is-the-tikka-disease-in-groundnut-how-you-can-get-rid-of-it/|title=जानें क्या है मूंगफली में लगने वाला टिक्का रोग, कैसे पा सकते हैं इससे निजात|accessmonthday=03 जुलाई|accessyear=2023 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.krishijagran.com |language=हिंदी}}</ref>
====लक्षण====
टिक्का रोग से पौधें को काफी नुकसान पहुंचता है। रोग के कारण मूंगफली के पौधों में पतझड़ होने लगता है और 50 प्रतिशत या उससे अधिक तक उपज का नुकसान होता है। खेत की परिस्थितियों में, मूंगफली की फसल की बुवाई के 45-50 दिनों के बाद पछेती पत्ती के धब्बे के प्रारंभिक लक्षण देखे जाते हैं। सबसे प्रमुख लक्षण शुरुआत में पत्ते पर दिखाई देते हैं और बाद में तने पर घाव भी विकसित हो जाते हैं। भूरे रंग के घाव पहले निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो आमतौर पर छोटे और लगभग गोलाकार होते हैं।
====प्रबंधन====
ग्रसित पौधों की पत्ती को जल्द से जल्द तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि उसकी वजह से बाकि पत्तियां ग्रसित ना हो। स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस के तालक-आधारित पाउडर फॉर्मूलेशन के साथ प्रतिरोधी जीनोटाइप और बीज उपचार विकसित करने से पत्ते के पर टिक्का रोग की पनपने की संभावना कम हो जाती है। ट्राइकोडर्मा विराइड (5 प्रतिशत) और वर्टिसिलियम लेकेनी (5 प्रतिशत) का छिड़काव  टिक्का रोग की गंभीरता को कम कर सकता है।


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Latest revision as of 08:23, 3 July 2023

thumb|250px|मूँगफली
Peanut
मूँगफली एक प्रमुख तिलहन फ़सल है। मूँगफली वनस्पतिक प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है। मूँगफली में सभी पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। प्रकृति ने भरपूर मात्रा में मूँगफली को विभिन्न पोषक तत्वों से सजाया-सँवारा है। मूँगफली में प्रोटीन, चिकनाई और शर्करा पाई जाती है। एक अंडे के मूल्य के बराबर मूँगफलियों में जितना प्रोटीन व ऊष्मा होती है, उतनी दूध व अंडे से संयुक्त रूप में भी प्राप्त नहीं होती। मूँगफली वनस्पतिक प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है। मूँगफली पाचन शक्ति बढ़ाने में भी उचित है।

भौगोलिक दशाएँ

यह हल्की मिट्टी में, जिसमें खाद दी गयी हो, पर्याप्त मात्रा में जीवांश मिले हों, अच्छी पैदा होती है। यद्यपि मूँगफली उष्ण-कटिबन्धीय पौधा है, किन्तु यदि गर्मियाँ अच्छी रहें तो इसकी खेती अर्द्ध-उष्ण-कटिबन्धीय भागों में भी की जा सकती है। साधारणतः इसके लिए 75 से 150 सेमी. तक वर्षा पर्याप्त होती है। इससे कम वर्षा होने पर सिंचाई का सहारा लिया जाता है। यह अधिक वर्षा वाले भागों में भी पैदा की जा सकती है।

तापमान

मूँगफली का पौधा इतना मुलायम होता है कि शीतल प्रदेशों में इसे उगाना असम्भव है। साधारणतया इसे 15° सेंटीग्रेट से 25° सेंटीग्रेट तक तापमान की आवश्यकता होती है। पाला फ़सल के लिए हानिकारक होता है। पकते समय शुष्क मौसम का होना आवश्यक है।

बोने का समय

मूँगफली प्रायः खरीफ की फ़सल हैं, जो मई से लेकर अगस्त तक बोयी तथा नवम्बर से जनवरी तक खोदी जाती है। कुल उत्पादन की 80 प्रतिशत मूँगफली खरीफ की फ़सल में ही उत्पादित होती है। दक्षिण भारत में यह रबी की फ़सल काल में पैदा की जाती है। यह साधारणतः शुष्क भूमि की फ़सल है। इसके पकने में 6 महीने तक लगते हैं। यद्यपि अब ऐसी किस्म ही पैदा की जाने लगी है, जो 90 से 100 दिनों में ही पक जाती है। इसे ज्वार, बाजरा, रेंडी, अरहर अथवा कपास के साथ मिलाकर भी बोया जाता है।

भारत का स्थान

[[चित्र:Colourful-Peanut-Gujarat.jpg|thumb|250px|रंग बिरंगी मूँगफली, गुजरात]] भारत में मूँगफली को ग़रीबों का काजू के नाम से भी जाना जाता है। भारत में सिकी हुई मूँगफली खाना काफ़ी प्रचलित है। इसे हम आमतौर पर 'टाइम पास' के नाम से भी जानते हैं। मूँगफली के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में सर्वप्रथम हैं। विश्व के उत्पादन का लगभग 29 प्रतिशत भारत से ही प्राप्त होता है। यह भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण तिलहन है। अकेले इससे देश का लगभग 50 प्रतिशत खाद्य तेल प्राप्त किया जाता है। भारत में इसका उत्पादन महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में काली मिट्टी और दक्षिण के पठार की लाल मिट्टी वाले क्षेत्रों में होती है। गंगा की कछारी बालू मिट्टी में भी यह बोयी जाती है। बलुई मिट्टी में कठोर चिकनी मिट्टी की अपेक्षा अधिक फलियाँ लगती हैं।

उत्पादक क्षेत्र

मूँगफली के कुल उत्पादन क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र राज्यों में हैं। शेष 10 प्रतिशत उत्पादन क्षेत्र राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा राज्यों में हैं। देश में मूँगफली का 17 से 20 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है।

  1. महाराष्ट्र - मूँगफली का महाराष्ट्र में उत्पादन बरसी, शोलापुर, जलगांव, सतारा, धूलिया, कोल्हापुर और ख़ानदेश ज़िलों में किया जाता है। यहाँ 'बम्बई गोल्ड किस्म' की मूँगफली होती है।
  2. कर्नाटक - कर्नाटक में मूँगफली के प्रमुख उत्पादक ज़िले धारवाड़, गुलबर्गी, बेल्लारी, बेलगावी, कोलार, तुमकुर, रायचूर और मैसूर हैं।
  3. गुजरात - गुजरात में 'कराढ़' और सौराष्ट्र में 'लाल नैटाल' और 'बम्बई बोल्ड मूँगफली' पैदा की जाती है। मुख्य उत्पादक ज़िले जूनागढ़, राजकोट, जामनगर, अमरेली, साबरकोटा, बनासकोटा, पंचमहल और सूरत हैं।

thumb|250px|left|मूँगफली का पौधा

अन्य प्रदेश

  1. मध्य प्रदेश में मंदसौर, पश्चिमी निमाड़ और धार ज़िले।
  2. पंजाब में लुधियाना, पटियाला, संगरूर तथा जालन्धर ज़िले।
  3. राजस्थान में चित्तौड़गढ़, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, जयपुर, बीकानेर तथा भरतपुर ज़िले।
  4. उत्तर प्रदेश में हरदोई, सीतापुर, एटा, मैनपुरी, बदायूं और मुरादाबाद ज़िले हैं।

राज्यों की पैदावार

मूँगफली के उत्पादन की दृष्टि से देश में गुजरात का प्रथम स्थान है, जहाँ कुल उत्पादन की 35.95 प्रतिशत मूँगफली पैदा होती है। इसके बाद आन्ध्र प्रदेश (28.32 प्रतिशत) का दूसरा स्थान और तमिलनाडु (11.84 प्रतिशत) का तीसरा स्थान है। शेष उत्पादक राज्यों में आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा हैं। पहले मूँगफली एवं उसके तेल का निर्यात, विशेषतः पश्चिमी यूरोप को किया जाता था, किन्तु अब देश में ही खाद्य-तेलों के अभाव होने से इनका निर्यात नहीं किया जाता है। मूँगफली की खेती का निर्यात अवश्य किया जाता है। कुल उत्पादन का 10 प्रतिशत भूनकर खाने में, 80 प्रतिशत तेल बनान में तथा शेष 10 प्रतिशत अन्य कार्यों एवं बीज में उपयोग होता है।

गुण

मूँगफली शरीर में गर्मी पैदा करती है, इसलिए सर्दी के मौसम में ज़्यादा लाभदायक है। यह खाँसी में उपयोगी है व मेदे और फेफड़े को बल देती है। इसे भोजन के साथ भारत की शाक-सब्ज़ी, खीर, खिचड़ी आदि में डालकर नित्य खाना चाहिए। मूँगफली में तेल का अंश होने से यह वायु की बीमारियों को भी नष्ट करती है।

टिक्का रोग

thumb|250px|टिक्का रोग, मूँगफली टिक्का रोग मूंगफली की फसल में होने वाली एक प्रमुख बीमारी है। यह बीमारी पौधों के पत्तों में दिखाई देती है। इससे पत्तों में धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं। जब मूंगफली के पौधें की उम्र 1- 2 महीने की हो जाती है, तब मेजबान पत्तियों पर धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं। बाद में तने पर परिगलित घाव भी दिखाई देते हैं। जीनस सरकसपोरा (Cercospora) की दो अलग-अलग प्रजातियों के कारण मूंगफली के दो पत्ती धब्बे रोग हैं। इसका दूसरा प्रमुख कारण होता है मौसम में होने वाला बदलाव, अक्सर बारिश व अत्यधिक धूप या गर्मी की वजह से यह रोग पनपता है।[1]

लक्षण

टिक्का रोग से पौधें को काफी नुकसान पहुंचता है। रोग के कारण मूंगफली के पौधों में पतझड़ होने लगता है और 50 प्रतिशत या उससे अधिक तक उपज का नुकसान होता है। खेत की परिस्थितियों में, मूंगफली की फसल की बुवाई के 45-50 दिनों के बाद पछेती पत्ती के धब्बे के प्रारंभिक लक्षण देखे जाते हैं। सबसे प्रमुख लक्षण शुरुआत में पत्ते पर दिखाई देते हैं और बाद में तने पर घाव भी विकसित हो जाते हैं। भूरे रंग के घाव पहले निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो आमतौर पर छोटे और लगभग गोलाकार होते हैं।

प्रबंधन

ग्रसित पौधों की पत्ती को जल्द से जल्द तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि उसकी वजह से बाकि पत्तियां ग्रसित ना हो। स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस के तालक-आधारित पाउडर फॉर्मूलेशन के साथ प्रतिरोधी जीनोटाइप और बीज उपचार विकसित करने से पत्ते के पर टिक्का रोग की पनपने की संभावना कम हो जाती है। ट्राइकोडर्मा विराइड (5 प्रतिशत) और वर्टिसिलियम लेकेनी (5 प्रतिशत) का छिड़काव टिक्का रोग की गंभीरता को कम कर सकता है।


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