पानीपत युद्ध द्वितीय: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " ई0" to " ई.") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "लड़ाईयाँ " to "लड़ाइयाँ ") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''पानीपत का द्वितीय युद्ध''' [[5 नवम्बर]], 1556 ई. में लड़ा गया था। यह युद्ध [[दिल्ली]] के [[अफ़ग़ान]] शासक आदिलशाह सूर के वीर [[हिन्दू]] सेनानायक [[हेमचन्द्र विक्रमादित्य]] (हेमू) और [[अकबर]] की मुग़ल सेना के मध्य हुआ। हेमू यह युद्ध मुग़ल सेनापति [[बैरम ख़ाँ]] की कूटनीतिक चाल से हार गया। [[आँख]] में एक तीर लग जाने से हेमू की सेना बिखर गई और उसे हार का सामना करना पड़ा। | |||
{{tocright}} | {{tocright}} | ||
'' | ==युद्ध की पृष्ठभूमि== | ||
हेमू ने अपने स्वामी के लिए 24 लड़ाइयाँ लड़ी थीं, जिसमें उसे 22 में सफलता मिली थी। हेमू [[आगरा]] और [[ग्वालियर]] पर अधिकार करता हुआ, [[7 अक्टूबर]], 1556 ई. को तुग़लकाबाद पहुँचा। यहाँ उसने मुग़ल तर्दी बेग को परास्त कर [[दिल्ली]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। हेमू ने राजा 'विक्रमादित्य' की उपाधि के साथ एक स्वतन्त्र शासक बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। हेमू की इस सफलता से चिंतित [[अकबर]] और उसके कुछ सहयोगियों के मन में [[क़ाबुल]] वापस जाने की बात कौंधने लगी। परंतु [[बैरम ख़ाँ]] ने अकबर को इस विषम परिस्थति का सामना करने के लिए तैयार कर लिया, जिसका परिणाम था- "पानीपत की द्वितीय लड़ाई"। | |||
====हेमू की पराजय==== | |||
यह संघर्ष [[पानीपत]] के मैदान में [[5 नवम्बर]], 1556 ई. को [[हेमू]] के नेतृत्व में [[अफ़ग़ान]] सेना एवं बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में [[मुग़ल]] सेना के मध्य लड़ा गया। [[दिल्ली]] और [[आगरा]] के हाथ से चले जाने पर दरबारियों ने बैरम ख़ाँ को सलाह दी कि हेमू इधर भी बढ़ सकता है। इसीलिए बेहतर है कि यहाँ से क़ाबुल चला जाए। लेकिन बैरम ख़ाँ ने इसे पसन्द नहीं किया। बाद में बैरम ख़ाँ और अकबर अपनी सेना लेकर पानीपत पहुँचे और वहीं जुआ खेला, जिसे तीन साल पहले अकबर के दादा यानी [[बाबर]] ने खेला था। हेमू की सेना संख्या और शक्ति, दोनों में बढ़-चढ़कर थी। पोर्तुगीजों से मिली तोपों का उसे बड़ा अभिमान था। 1500 महागजों की काली घटा मैदान में छाई हुई थी। 5 नवम्बर को हेमू ने मुग़ल दल में भगदड़ मचा दी। युद्ध का प्रारम्भिक क्षण हेमू के पक्ष में जा रहा था, लेकिन इसी समय उसकी आँख में एक तीर लगा, जो भेजे के भीतर घुस गया, वह संज्ञा खो बैठा। नेता के बिना सेना में भगदड़ मच गई। हेमू को गिरफ्तार करके बैरम ख़ाँ ने मरवा दिया। | |||
==दिल्ली पर मुग़ल क़ब्ज़ा== | |||
कहा जाता है की बैरम ख़ाँ ने [[अकबर]] से अपने दुश्मन का सिर काटकर 'ग़ाज़ी' बनने की प्रार्थना की थी, लेकिन अकबर ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। अकबर इस समय अभी मुश्किल से 14 वर्ष का हो पाया था। उसमें इतना विवेक था कि इसे मानने के लिए कुछ इतिहासकार तैयार नहीं हैं। [[हिन्दू]] चूक गए, पर हेमू की जगह उन्होंने अकबर जैसे शासक को पाया, जिसने आधी शताब्दी तक भेद-भाव की खाई को पाटने की कोशिश की। पानीपत की दूसरी लड़ाई के फलस्वरूप दिल्ली और आगरा अकबर के अधिकार में आ गये थे। इस लड़ाई के फलस्वरूप दिल्ली के तख़्त के लिए [[मुग़ल|मुग़लों]] और [[अफ़ग़ान|अफ़ग़ानों]] के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुग़लों के पक्ष में निर्णीत हो गया और अगले तीन सौ वर्षों तक [[दिल्ली]] का तख़्त मुग़लों के पास ही रहा। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{भारत के युद्ध}} | |||
[[Category:मध्य काल]][[Category:भारत के युद्ध]][[Category:इतिहास कोश]] | |||
{{लेख प्रगति | |||
|आधार= | |||
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | |||
|माध्यमिक= | |||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
}} | |||
[[Category: | |||
[[Category:इतिहास कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 14:20, 30 June 2017
पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवम्बर, 1556 ई. में लड़ा गया था। यह युद्ध दिल्ली के अफ़ग़ान शासक आदिलशाह सूर के वीर हिन्दू सेनानायक हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर की मुग़ल सेना के मध्य हुआ। हेमू यह युद्ध मुग़ल सेनापति बैरम ख़ाँ की कूटनीतिक चाल से हार गया। आँख में एक तीर लग जाने से हेमू की सेना बिखर गई और उसे हार का सामना करना पड़ा।
युद्ध की पृष्ठभूमि
हेमू ने अपने स्वामी के लिए 24 लड़ाइयाँ लड़ी थीं, जिसमें उसे 22 में सफलता मिली थी। हेमू आगरा और ग्वालियर पर अधिकार करता हुआ, 7 अक्टूबर, 1556 ई. को तुग़लकाबाद पहुँचा। यहाँ उसने मुग़ल तर्दी बेग को परास्त कर दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया। हेमू ने राजा 'विक्रमादित्य' की उपाधि के साथ एक स्वतन्त्र शासक बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। हेमू की इस सफलता से चिंतित अकबर और उसके कुछ सहयोगियों के मन में क़ाबुल वापस जाने की बात कौंधने लगी। परंतु बैरम ख़ाँ ने अकबर को इस विषम परिस्थति का सामना करने के लिए तैयार कर लिया, जिसका परिणाम था- "पानीपत की द्वितीय लड़ाई"।
हेमू की पराजय
यह संघर्ष पानीपत के मैदान में 5 नवम्बर, 1556 ई. को हेमू के नेतृत्व में अफ़ग़ान सेना एवं बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल सेना के मध्य लड़ा गया। दिल्ली और आगरा के हाथ से चले जाने पर दरबारियों ने बैरम ख़ाँ को सलाह दी कि हेमू इधर भी बढ़ सकता है। इसीलिए बेहतर है कि यहाँ से क़ाबुल चला जाए। लेकिन बैरम ख़ाँ ने इसे पसन्द नहीं किया। बाद में बैरम ख़ाँ और अकबर अपनी सेना लेकर पानीपत पहुँचे और वहीं जुआ खेला, जिसे तीन साल पहले अकबर के दादा यानी बाबर ने खेला था। हेमू की सेना संख्या और शक्ति, दोनों में बढ़-चढ़कर थी। पोर्तुगीजों से मिली तोपों का उसे बड़ा अभिमान था। 1500 महागजों की काली घटा मैदान में छाई हुई थी। 5 नवम्बर को हेमू ने मुग़ल दल में भगदड़ मचा दी। युद्ध का प्रारम्भिक क्षण हेमू के पक्ष में जा रहा था, लेकिन इसी समय उसकी आँख में एक तीर लगा, जो भेजे के भीतर घुस गया, वह संज्ञा खो बैठा। नेता के बिना सेना में भगदड़ मच गई। हेमू को गिरफ्तार करके बैरम ख़ाँ ने मरवा दिया।
दिल्ली पर मुग़ल क़ब्ज़ा
कहा जाता है की बैरम ख़ाँ ने अकबर से अपने दुश्मन का सिर काटकर 'ग़ाज़ी' बनने की प्रार्थना की थी, लेकिन अकबर ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। अकबर इस समय अभी मुश्किल से 14 वर्ष का हो पाया था। उसमें इतना विवेक था कि इसे मानने के लिए कुछ इतिहासकार तैयार नहीं हैं। हिन्दू चूक गए, पर हेमू की जगह उन्होंने अकबर जैसे शासक को पाया, जिसने आधी शताब्दी तक भेद-भाव की खाई को पाटने की कोशिश की। पानीपत की दूसरी लड़ाई के फलस्वरूप दिल्ली और आगरा अकबर के अधिकार में आ गये थे। इस लड़ाई के फलस्वरूप दिल्ली के तख़्त के लिए मुग़लों और अफ़ग़ानों के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुग़लों के पक्ष में निर्णीत हो गया और अगले तीन सौ वर्षों तक दिल्ली का तख़्त मुग़लों के पास ही रहा।
|
|
|
|
|